Agnishvaata - Agneeshoma अग्निष्वात्त - अग्नीषोम
Puraanic contexts of words like Agnihotra, Agneeshoma are described here.अग्निष्वात्त गरुड १.८९.४१( पितर, प्राची दिशा के रक्षक ), देवीभागवत ८.२१( अग्निष्वात्त पितरों की अतल लोक से ऊपर स्थिति, वंशजों के कल्याणकामी ), ब्रह्माण्ड १.२.१३.६( यज्ञ न करने वाले गृहस्थ पितर ), १.२.१३.३३(अग्निष्वात्त पितरों द्वारा मेना कन्या हिमवान् को पत्नी रूप में देने का उल्लेख), २.३.१०.७७(अग्निष्वात्त पितरों की कन्या पीवरी द्वारा शुक से ५ पुत्रों व १ कन्या को जन्म देने का कथन), वायु ५२.६८( आर्त्तव रूप पितर ), शिव ७.१.१७.४७( २ प्रकार के पितरों में से एक, मेना - पिता ), स्कन्द ५.१.५८( अग्निष्वात्त पितरगण का क्रौञ्च पर्वत में निवास ), हरिवंश १.१८.२६( पितरों का गण, वंश वर्णन ) agnishvaatta
अग्निहोत्र कूर्म २.२४.९( अग्निहोत्र कर्म का महत्त्व ), देवीभागवत ११.२२.२३( प्राणाग्निहोत्र विधि का वर्णन ), ७.२०.३१( वाक्य अनृत होने पर अग्निहोत्र आदि क्रियाओं के विफल होने का उल्लेख ), नारद १.५५.७९( फलित ज्योतिष के संदर्भ में अग्निहोत्र गृह में जीव/बृहस्पति द्वारा जन्म लेने का उल्लेख ), पद्म १.१४.८३( अग्निहोत्र की प्रशंसा ), २.१२.६२( नियम व दान का तपोरत दुर्वासा के समक्ष अग्निहोत्री के रूप में प्रकट होने का उल्लेख ), ३.३१.१२३( शालग्राम शिला के चक्र में श्रीहरि की अर्चना करने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३७.९( आरण्यक मुनि का राम के दर्शन को अग्निहोत्र के फल की प्राप्ति कह कर हर्षित होना ), ब्रह्माण्ड १.२.२१.१६०( अग्निहोत्र कर्म से पितृयान मार्ग में गति ), भविष्य १.१८२.३९( अग्निहोत्र और दारकर्म में मैथुन की समानता के कारण विवाह का दाराग्निहोत्र नाम ), भागवत ६.१८.१( सविता व पृश्नि की सन्तानों में से एक ), ३.१३.३६( यज्ञ वराह के चर्वणों में अग्निहोत्र का न्यास ), ७.१५.४८( अशान्ति उत्पन्न करने वाले प्रवृत्तिपरक कर्मों में से एक ), ९.११.१८( राम द्वारा परलोक गमन से पूर्व १३ सहस्र वर्षों तक अखण्ड अग्निहोत्र करने का उल्लेख ), ९.१५.२५( सहस्रबाहु अर्जुन द्वारा जमदग्नि ऋषि की अग्निहोत्री गौ के हरण व परशुराम द्वारा गौ की पुन: प्राप्ति का वर्णन ), मत्स्य १०७.१६( ऊर्ध्वपाद - अध:शिर होकर ज्वाला पान से अग्निहोत्री रूप में जन्म लेने का उल्लेख ),१२४.९८( पितृयान मार्ग पर प्रजाकामी अग्निहोत्री ऋषियों की स्थिति ), १८३.८१( अविमुक्त क्षेत्र में सुवर्ण पुष्प दान से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति ), वायु १०४.८३( अग्निहोत्र का आनन में न्यास ), विष्णु २.८.५३( वर्षपर्यन्त सूर्य की स्थिति में परिवर्तन का वर्णन, अग्निहोत्र में मन्देहा राक्षसों के नाश का कथन ), ६.८.३०( विष्णु पुराण श्रवण से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.५८.१७( अग्निहोत्र से केशव की तुष्टि का उल्लेख ), १.१३६.३४( काम रहित अग्निहोत्र से गन्धर्वत्व आदि प्राप्ति का उल्लेख ), १.१३६.३५( अग्निहोत्र से पुरूरवा को गन्धर्वत्व प्राप्ति, अग्निहोत्र की अग्नियों का चतुर्व्यूह में वर्गीकरण), शिव १.२४.७( अग्निहोत्र की भस्म के त्रिपुण्ड्र धारण में उपयोग का उल्लेख ), ५.१२.१२( वर्षा ऋतु में तालाब में जल एकत्र करने से अग्निहोत्र फल प्राप्ति का उल्लेख ), स्कन्द २.१.५.२१( रावण द्वारा सीताहरण के प्रसंग में अग्निहोत्रगत अग्नि द्वारा वास्तविक सीता के स्थान पर कृत्रिम सीता के प्रतिस्थापन का उल्लेख ), २.८.६.२०१( गोविन्द को धूप समर्पित करने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.१.३.५७( वर्तुलाकार गार्हपत्य अग्नि में ब्रह्मा, अर्धचन्द्राकार दक्षिणाग्नि में विष्णु तथा चतुष्कोणीय आहवनीय अग्नि में हर की पूजा का कथन ), ५.३.१३९.८( सोम तीर्थ में वैदिक ब्राह्मण को भोजन देने से अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.२०८.५( देव ऋणों में से एक अग्निहोत्र का उल्लेख ), ६.२१५.१९( अग्निहोत्र के फल के रूप में वेदों का श्लोक ), ७.१.४.५९( श्री सोमेश्वर की यात्रा से अग्निहोत्र आदि के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ७.१.१२९.१५( शूद्रान्न से निवृत्ति न होने पर अग्निहोत्री की आत्मा, ब्रह्मा और तीनों अग्नियों के नाश का उल्लेख ), ७.१.१२९.१७( शूद्रान्न से अग्निहोत्र आहुति देने पर द्विज के चाण्डाल होने का उल्लेख ), ७.१.२०७.५०( अग्रज के होते हुए दाराग्निहोत्र संयोग करने पर परिवेत्ता संज्ञा होने का उल्लेख ), महाभारत आदि ११.२( अग्निहोत्र में रत खगम ब्राह्मण द्वारा सहस्रपाद ऋषि को सर्प होने के शाप का वृत्तान्त ), १.२१३.८( अग्निहोत्र कर्म के लिए उद्धत अर्जुन का नागकन्या उलूपी द्वारा नागलोक में कर्षण, अर्जुन द्वारा नागलोक में अग्निकर्म सम्पन्न करना व उलूपी से इरावान~ पुत्र उत्पन्न करना ), सभा ५.११३( नारद - युधिष्ठिर संवाद के अन्तर्गत वेदों के फल अग्निहोत्र इत्यादि श्लोक का उल्लेख ), वन ८२.३६( कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर में वास से १०० अग्निहोत्र फल की प्राप्ति का उल्लेख ), १३६.१७( ऋषि द्वारा उत्पन्न राक्षस से भयभीत होकर यवक्रीत मुनि का पिता भरद्वाज के अग्निहोत्र गृह में पलायन करना तथा वहां शूद्र द्वारा पकडे जाने पर राक्षस द्वारा यवक्रीत का वध आदि ), १८६.१७( अग्निहोत्र से प्रकट सरस्वती देवी द्वारा तार्क्ष्य मुनि को अग्निहोत्र क्रिया की सफलता के लिए याजक के अपेक्षित गुणों का वर्णन करना ), २२०.१८( अग्निहोत्र होने पर तप/पाञ्चजन्य के पुत्र बृहदुक्थ की प्रतिष्ठा का उल्लेख ), २२१.२३( अग्निहोत्र कर्म में दुष्टता/त्रुटि पर विभिन्न अग्नियों के लिए इष्टि विधान का वर्णन ), २२२.४, २२४.२८+ ( सह अग्नि व मुदिता के पुत्र अद्भुत अग्नि की गृहपति नाम से प्रतिष्ठा, अद्भुत द्वारा आहवनीय अग्नि में हुत आहुति को देवताओं तक पहुंचाना, अद्भुत अग्नि की सप्तर्षि - पत्नियों पर आसक्ति, समागम से स्कन्द कार्तिकेय के जन्म का विस्तृत वर्णन ), २९३.११( अग्निहोत्र से प्रकट सावित्री द्वारा राजा अश्वपति को कन्या प्राप्ति का वरदान, सावित्री – सत्यवान् का प्रसंग ), ३११.१०+ ( मृग रूप धारी यक्ष द्वारा ब्राह्मण के अग्निहोत्र के उपकरणों अरणि व मन्थ का हरण, पांचों पाण्डवों द्वारा मृग का पीछा करना, तृषित होने पर सरोवर से जल पान की चेष्टा करने पर यक्ष द्वारा प्राणरहित करना, युधिष्ठिर का बक रूप धारी यक्ष से वार्तालाप, युधिष्ठिर द्वारा प्रश्नों के उत्तर देने पर यक्ष का यम/धर्म के रूप में प्रकट होना, अरणि व मन्थ की प्राप्ति आदि ), विराट ४.२( राजा विराट के नगर में अज्ञातवास से पूर्व पाण्डवों द्वारा अग्निहोत्र की रक्षा का कार्य पुरोहित धौम्य को सौंपना ), शान्ति ११०.९( अग्निहोत्र परायण होकर अपनी दारा से समागम करने पर दुर्गुणों से पार होने का उल्लेख ), १६५.२१( अग्निहोत्र के अनधिकारी गण ), २९२.२१( विप्र को वेद - त्रयी रूपी आहिताग्नि की प्राप्ति होने पर अग्निहोत्र क्रिया की अनिवार्यता का उल्लेख ), आश्रम १५.३( युद्ध के अन्त में राजा धृतराष्ट्र द्वारा अग्निहोत्र को आगे करके वन गमन का उल्लेख ),लक्ष्मीनारायण ३.३४.१०७( कल्याणिका - पति व कल्याणी लक्ष्मी - पिता अग्निहोत्री द्विज का उल्लेख ) द्र. यज्ञ agnihotraComments on Agnihotra
अग्नीषोम गरुड ३.२०.२२ (मित्रविन्दा द्वारा अग्नीषोम की अभीप्सा का उल्लेख), नारद १.४२.२१( अग्नि व सोम : चन्द्र व सूर्य के रूप में विराट विष्णु के नयन ), १.८०.२८६( कृष्ण के अग्नीषोमात्मक रूप का ध्यान ), ब्रह्माण्ड २.३.७२.१८८( अग्नीषोम विधिज्ञ : शिव का विशेषण/नाम ), शिव ७.१.२७.१३( शिव व पार्वती के अग्नीषोमात्मक होने का कथन ), ७.१.२८( विश्व की अग्नीषोमात्मक स्थिति : शिव व शक्ति का रूप ), हरिवंश १.४०.५४( स्थूल देह के स्तर पर शुक्र व शोणित तथा कफ व पित्त के उदाहरणों से जगत को अग्नीषोमात्मक कहना ), १.४९.२०( अग्नीषोममय लोक में अग्नि व सोम के सनातन विष्णु होने का उल्लेख ), २.२५.११( अक्रूर की व्रज यात्रा के प्रसंग में अक्रूर का सायंकाल अग्नीषोमात्मक संधि में व्रज में प्रवेश करने का उल्लेख ), महाभारत सभा ७.२१( अग्नीषोम - द्वय का इन्द्र सभा में उपस्थित रहने का उल्लेख ), वन २२१.१५( मनु/भानु व निशा के पुत्रों में से दो ), शान्ति १८२.१८( अग्नीषोम/चन्द्रार्क का उल्लेख ), २८८.३३( इस जगत को अग्नीषोमात्मक जान लेने पर अद्भुत भावों/माया से मुक्ति का उल्लेख ), ३४१.५०( अग्नीषोम - द्वय के एक योनि होने का उल्लेख ), ३४२.१( अग्नीषोम के एक योनि होने के कारण की विस्तृत व्याख्या : सृष्टि के आदि में पुरुष से ब्रह्म/ब्राह्मण/सोम तथा क्षत्र/क्षत्रिय अग्नि का प्राकट्य, वेद मन्त्रों में अग्नि का ब्राह्मणत्व सिद्ध होना, वडवामुख द्वारा समुद्र के लवण जल को पीकर शुद्ध करना, इन्द्र - त्वष्टा विश्वरूप व इन्द्र - नहुष आख्यान आदि ), ३४२.६७/३५२.२(अग्नीषोम के कारण हृषीकेश नाम की निरुक्ति), अनुशासन ६३.४०( अग्नीषोम - द्वय द्वारा प्राणियों को उत्पन्न करने वाले शुक्र का सृजन व पुष्टि करने का उल्लेख ), ८५.८६( स्वर्ण की उत्पत्ति के संदर्भ में स्वर्ण के अग्नीषोमात्मक/अग्निष्टोमात्मक होने का उल्लेख ), ९७.१०( बलि वैश्वदेव कर्म में सर्वप्रथम अग्नीषोम को आहुति देने का निर्देश ), आश्वमेधिक २०.१०( आत्मा? में अग्नीषोम की स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ ६.१.८१.८०( जगत की कार्य-कारण अग्नीषोमात्मकता की व्याख्या के रूप में सूर्य द्वारा सोम का पान करने पर सोम का सूर्य की किरणों में परिवर्तित होना, शुक्ल पक्ष में सोम का पुन: आप्यायन होना, वडवामुख अग्नि द्वारा समुद्र का पान करके धूम उद्गार के रूप में पुन: जल को प्रकट करना आदि ; बाह्य व आन्तरिक संक्रान्तियों को जानने का निर्देश ) agneeshoma