पुराण विषय अनुक्रमणिका(अ-अनन्त) Purana Subject Index

Anga

अङ्ग

टिप्पणी : ऋग्वेद १०.१३८ सूक्त का ऋषि ऊरु - पुत्र अङ्ग है । सामान्य जीवन में पति और पत्नी के अङ्ग से अङ्ग मिला कर एक होने की पराकाष्ठा ऋग्वेद १०.१०९.५ में दिखाई गई है जहां ब्रह्मचारी देवताओं के साथ एक - अङ्ग होता है । अथर्ववेद के बहुत से मन्त्रों में अङ्गों से व्याधियों को निकालने का उल्लेख है । समाधि तथा मृत्यु के पूर्व अङ्गों से प्राणों का प्रत्याहार करना होता है । अथर्ववेद २.३४.५, ४.५.४, १८.२.२४ इत्यादि में इस तथ्य का उल्लेख है । कहा गया है कि ऐसा न हो कि प्रत्याहार में किसी अङ्ग से प्राणों का कर्षण छूट जाए और प्रेत पूर्णाङ्ग होकर यात्रा न कर सके । अथर्ववेद १०.७ सूक्त स्कम्भ सूक्त है जो समाधि के व्युत्थान की अवस्था प्रतीत होती है । इस सूक्त में प्रश्न उठाया गया है कि शरीर रूपी ज्योति स्तम्भ के किस अङ्ग में तप, श्रद्धा, सत्य आदि के स्थान हैं । अथर्ववेद ११.९.६ के अनुसार जैसे माता के गर्भ में बालक के अङ्ग होते हैं, ऐसे ही यज्ञ के अङ्गों का निर्माण उच्छिष्ट(शेष) शक्ति से होता है । अथर्ववेद १.१२.२ यह संकेत करता है कि अङ्गों में दिव्य ज्योति आने पर कोई अङ्क /लक्षण विकसित होता है ।

प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.

 

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