Atharva - Adbhuta
अथर्वा
टिप्पणी : आत्मा के दो रूप हैं – पिता और पुत्र या गुरु और शिष्य। अहंकार को धारण करने वाला मन पुत्र है और उससे सूक्ष्म अथर्वा पिता। अथवा मनोमय कोश का आत्मा शिष्य है और विज्ञानमय कोश का आत्मा गुरु। विज्ञानमय कोश में आत्मा का रूप अथर्वा कहलाता है। अथर्वा अर्थात् अथ-अर्वाक्, अब विज्ञानमय से नीचे के कोशों में अवतरण आरम्भ हो गया। मनोमय से लेकर अन्नमय कोश तक आत्मा का रूप आथर्वण कहलाता है। वह आथर्वण अपने सच्चे स्वरूप अथर्वा को भूला हुआ है। - फतहसिंह
अथर्ववेद के बहुत से सूक्तों के ऋषि अथर्वा हैं। अथर्वशिरोपनिषद व अथर्वशिखोपनिषद भी अथर्वा शब्द की ओंकार के माध्यम से व्याख्या करते हैं।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अदिति
टिप्पणी : मनुष्य व्यक्तित्व की अखण्ड इकाई का नाम अदिति और खण्डित, आसुरी इकाई का नाम दिति है। - फतहसिंह
ऋग्वेद में ४.१८ व १०.७२ सूक्तों की ऋषिका अदिति है तथा सूक्तों ४.१८ व १०.१८५ की देवता है। अथर्ववेद में अदिति देवता के बहुत से सूक्त हैं। अथर्ववेद का एक प्रसिद्ध मन्त्र है – दितिः शूर्पम् अदिति शूर्पग्राही, अर्थात् दिति छाज है जिसे अदिति पकड कर अन्न को साफ करती है।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अद्भुत
टिप्पणी : षड्-विंश ब्राह्मण के छठें अध्याय में विभिन्न अद्भुतों/उत्पातों और उनके प्रायश्चित्तों का विस्तृत वर्णन है। अद्भुत और उत्पात को समान अर्थों में लेना आश्चर्यजनक लगता है। अद्भुत में अद्भुत क्या है? शतपथ ब्राह्मण ६.६.२.१४ में सह-पुत्र अद्भुत से प्रार्थना की गई है कि वह हमारे लिए सर्पि का, घृत का द्रवण करे। ऐसा अनुमान है कि मुदिता स्थिति में यह घृत द्रवण ही अद्भुत उत्पात उत्पन्न करता होगा।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.