Ajeegarta - Anjana - Anjanaa अजीगर्त - अञ्जन - अञ्जना
अजीगर्त
टिप्पणी : ब्रह्म पुराण २.८० में आया वर्णन ऐतरेय ब्राह्मण ७.१५ का विस्तार मात्र है। ऋग्वेद १.२४-१.३० व ९.३ सूक्तों के ऋषि शुनःशेप को आजीगर्तिः, अर्थात् अजीगर्त का पुत्र कहा गया है।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अञ्जन
टिप्पणी : अञ्जु धातु कान्ति अर्थ में आती है। उपनिषदों में आत्मा के स्वरूप को अञ्जसा जानने के उल्लेख आते हैं। अथर्ववेद ४.९ में त्रैककुद पर्वत पर उत्पन्न अञ्जन की महिमा का तथा १९.४४ व १९.४५ में अञ्जन की महिमा का गुणगान किया गया है। इन स्थानों पर अञ्जन केवल आंख में ही नहीं लगाया जाता, अपितु वह मणि बनाने, स्नान करने व पान करने के लिए भी प्रयुक्त होता है। चूंकि पुराणों व ब्राह्मणों में अञ्जन का सम्बन्ध साम या गज से भी है, अतः हो सकता है कि अञ्जन का सम्बन्ध भक्ति से हो।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अञ्जना
टिप्पणी : यद्यपि काशकृत्स्न धातु कोश में अज धातु की व्याख्या में अञ्जन शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन साधना का मार्ग तभी प्रशस्त होता है जब अञ्जना की व्युत्पत्ति अज धातु से हो। तब अञ्जना की साधना को अथर्ववेद ९.५ की अज पञ्चौदन को पकाने की साधना मान सकते हैं। अञ्जना व अद्रिका के सम्बन्ध के लिए अद्रिका पर टिप्पणी द्रष्टव्य है।
त्रैककुद अञ्जन को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि आनन्दमय कोश, विज्ञानमय कोश व मनोमय कोश तीन ककुद हैं। आनन्दमय कोश में स्थित शिव की शक्ति जब कपि रूपी मनोमय कोश में अवतरित होती है तो उससे कुरूप हनुमान का जन्म होता है जिसे अञ्जना पर्वत से नीचे फेंक देती है। हनुमान की साधना शिव के वीर्य को मनोमय, प्राणमय व अन्नमय कोश में अवतरित कराने की साधना है। इसे दूसरा त्रैककुद कह सकते हैं।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.