पुराण विषय अनुक्रमणिका(अ-अनन्त) Purana Subject Index

Adhyayana - Anapatya

Puraanic contexts of words like Adhvaryu, Anagha, Ananga, Ananta/infinite etc. are given here.

अध्ययन कूर्म २.१४.६४( अनध्याय काल/स्थिति ), गरुड १.९६.५१( अनध्याय हेतु स्थितियां ), नारद १.२५.४६( वेद के अनाध्याय काल का कथन ), १.६०( वायु प्रवाह होने पर वेद के अनध्याय का कारण ), भविष्य २.१.८( पुराणादि के अनध्याय काल की स्थितियां ), विष्णुधर्मोत्तर १.६४( अनध्याय काल ), ३.२५७( स्वाध्याय की प्रशंसा ) adhyayana 


अध्यात्म नारद १.४४.२१( अध्यात्म विषयक चिन्तना : भरद्वाज द्वारा भृगु से पृच्छा ), १.४६( केशिध्वज द्वारा साण्डिक्य को अध्यात्म ज्ञान का कथन ), भागवत २.१०.८( आध्यात्मिक, आधिभौतिक आदि त्रैत की अनिवार्यता का कथन ), लक्ष्मीनारायण ३.१७७( आकाश, वायु आदि भूतों के अधिभूत, अधिदैव व अध्यात्म का कथन ) द्र. मोक्ष adhyaatma

अध्वर शिव ३.२९.३५( नभग द्वारा यज्ञभाग प्राप्त करने के संदर्भ में अध्वर से शिष्ट वस्तु के रुद्रभाग होने की कथा ), लक्ष्मीनारायण ३.३३.३०( अध्वर नामक कल्प में सत्ययुग धर्म की स्थापना के लिए सत्य नारायण का प्राकट्य ) द्र. यज्ञ adhvara 

अध्वर्यु पद्म ५.१०.३५ ( राम के अश्वमेध यज्ञ में वाल्मीकि के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.४७.४८( परशुराम के अश्वमेध यज्ञ में काश्यप के अध्वर्यु होने का उल्लेख ; परशुराम द्वारा सम्पूर्ण पृथिवी काश्यप को दक्षिणा में देना ), भागवत ४.४.३३( दक्ष यज्ञ विध्वंस के संदर्भ में यज्ञ के अध्वर्यु भृगु द्वारा दक्षिणाग्नि में आहुति द्वारा ऋभुगण को उत्पन्न करना ), ४.५.१९( वीरभद्र द्वारा भृगु की श्मश्रु नोचे जाने का उल्लेख ), ४.७.५( अध्वर्यु भृगु का बस्त/बकरे की श्मश्रु से युक्त होना ), ९.११.२( राम द्वारा अध्वर्यु को दक्षिणा में प्रतीची दिशा दान का उल्लेख ), ९.१६.२१( परशुराम द्वारा अध्वर्यु को प्रतीची दिशा दक्षिणा में देने का उल्लेख ), मत्स्य १४३.११( त्रेतायुग में विश्वभुक्  इन्द्र के अश्वमेध यज्ञ में अध्वर्यु द्वारा प्रैषकाल में पशु की हिंसा का प्रश्न : ऋषियों द्वारा अहिंसा का और उपरिचर वसु द्वारा हिंसा का समर्थन ), स्कन्द ३.२.२३.१०( ब्रह्मा के सत्र के ऋत्विजों में जमदग्नि व गौतम के अध्वर्यु - द्वय बनने का उल्लेख ), ५.१.२८.७७ ( सोम के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में भृगु के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ५.१.६३.२४१( बलि के अश्वमेध यज्ञ में अत्रि के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), ६.५.५( त्रिशङ्कु के यज्ञ में विश्वामित्र का अध्वर्यु बनना ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में पुलस्त्य के अध्वर्यु तथा अत्रि के प्रतिप्रस्थाता बनने का उल्लेख ), ६.१८७.११( यज्ञ के चतुर्थ दिन पुलस्त्य - पुत्र विश्वावसु राक्षस द्वारा पशु की गुदा का भक्षण करने का वृत्तान्त, प्रतिप्रस्थाता द्वारा शाप), ७.१.२३.९३( प्रभास क्षेत्र में सोम/चन्द्रमा के यज्ञ में वसिष्ठ के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), हरिवंश १.२५.२४( चन्द्रमा के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में भृगु का अध्वर्यु होना ), ३.१०.५( श्रीहरि की बाहुओं से होता व अध्वर्यु की उत्पत्ति का उल्लेख ), महाभारत आदि ५३.६( जनमेजय के सर्प सत्र में पिङ्गल के अध्वर्यु होने का उल्लेख ), आश्वमेधिक २८.६( यज्ञ में छाग पशु की हिंसा के संदर्भ में अध्वर्यु व यति के संवाद का वर्णन ) adhvaryu

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अध्वा अग्नि २७.६१( दीक्षा क्रम में शिष्य की देह में सृष्टि व संहार क्रम से दैविक, भौतिक व आध्यात्मिक अध्वों की कल्पना व उनका शोधन ), ब्रह्म १.१०५.१००( यमलोक में कष्टदायक नरक के मार्ग की अध्वा संज्ञा ), भागवत ५.१३.१९( रहूगण व जड भरत संवाद के अन्तर्गत जीव का अध्वा में भटकना और ज्ञान की असि लेकर अध्वा को पार करने का निर्देश ), ५.१४.२७( शुकदेव द्वारा परीक्षित् को अध्वा में फंसे जीव द्वारा प्राप्त उपसर्गों/कष्टों का वर्णन करना ), विष्णुधर्मोत्तर २.७३.२००( अध्वा में ऊसर प्रदेश में पक्वान्न लिए हुए मूत्र त्याग करने पर प्रायश्चित्त विधान का कथन ), २.१२४.४८( अध्वा में प्रशस्त या अप्रशस्त शकुन देखने पर, नदी पार करने पर, रथ द्वारा यात्रा आदि करने पर जपनीय मन्त्रों का उल्लेख ), ३.२७३.२( तीर्थयात्रा प्रसंग में अध्वा के क्लेश - दुःख उठाने पर ही तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होने का वर्णन ), शिव ७.१.२९( पराशक्ति के षड~ अध्वा रूप में ६ विभाग ), ७.२.१७( षड~ अध्वा : शिष्य की योग्यता की परीक्षा ), स्कन्द ४.२.९७.९९( अध्वकेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : मोह विनाशक ), ५.३.१०३.१००( अमावास्या को अध्वा में जाने पर पितरों के रेणुभोजक होने आदि का कथन ), महाभारत उद्योग ३४.४७( यान द्वारा अध्वा पर विजय पा लेने का उल्लेख ), ३९.७७( देहधारियों के लिए अध्वा के जरा होने का उल्लेख ), शान्ति ३२५.१६( शुकदेव द्वारा खेचर की भांति अध्वा को पार करने का उल्लेख ), आश्वमेधिक ३९.१३( सूर्य के उदित होने पर अध्वगों को उष्णता से कष्ट प्राप्ति का कारण : रजोगुण की प्रधानता होना ), ४६.२७( सूर्य द्वारा निर्दिष्ट अध्वा पर कीटवत् चलने का निर्देश ) adhvaa  
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अनंशा गर्ग १.११.५८( कंस द्वारा योगमाया की अवतार अनंशा का वध ) 

अनघ नारद १.११७.८२( अनघ अष्टमी व्रत की विधि ), भविष्य ४.५८( अनघ अष्टमी व्रत : दत्तात्रेय का अनघ उपनाम, अनघ - पत्नी के हरण पर दत्तात्रेय द्वारा असुर का वध, कार्तवीर्य महिमा का कथन ), वामन ९०.१७( ओजस तीर्थ में विष्णु का शम्भु व अनघ नाम से वास ), वायु ६९.१/२.८.१( एक  मौनेय गन्धर्व ), ९९.१३३/२.३७.१२९( त्रसु - पुत्र, रन्तिनार - पौत्र ), विष्णु १.१०.१३( वसिष्ठ व ऊर्जा - पुत्र ), ३.२.३१( ११वें मन्वन्तर में एक ऋषि ), स्कन्द ४.१.२९.२०( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) anagha 

अनङ्ग अग्नि १९१( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत की विधि ), गरुड १.११७( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत : मासानुसार अनङ्ग के नाम व पूजा द्रव्य ), देवीभागवत १२.११.१२( अनङ्गमेखला : ६४ कलाओं में से एक ), १२.११.७९( अनङ्गकुसुमा : ६४ कलाओं में से एक ), भविष्य ४.९०१( अनङ्ग त्रयोदशी व्रत ), स्कन्द ७.१.१५८( अनङ्गेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण अनङ्गपुर के राजा बृहद~वर्चा द्वारा तापी तट पर दान, प्रतिग्रह के पाप से विप्रों का कृष्ण वर्ण होना ), २.१९१.८२( अङ्ग के पिता कर्दम का उपनाम ), ३.२१.५९( अनङ्ग नामक २६वें वत्सर में प्लक्ष नारायण के प्राकट्य का वृत्तान्त ), कथासरित् १२.१७.४( अनङ्गपुर वासी मदनसेना नामक कन्या पर धर्मदत्त वणिक् की आसक्ति व मदनसेना द्वारा समुद्रदत्त से विवाह के पश्चात् धर्मदत्त के पास जाने का वृत्तान्त ), १८.१.७०( विक्रमादित्य के अनङ्गदेव नामक दूत द्वारा सिंह देश के राजा की कन्या को स्वामी विक्रमादित्य के लिए स्वीकार करना ), १८.१.१०४, १८.२.२१७( दुन्दुभि यक्ष की कन्या मदनमञ्जरी द्वारा अनङ्गदेव को अपना वृत्तान्त सुनाना व राजा विक्रमादित्य द्वारा किए गए उपकार के प्रत्युत्तर में दो स्वर्गीय कन्याएं व मृगशावक भेंट करना ) द्र. काम ananga 

अनङ्गप्रभा कथासरित् ९.२.१७०( समर विद्याधर व अनङ्गवती की पुत्री, शाप के कारण खड्गधर पति की प्राप्ति, मनुष्य जीवन में अनेक पति प्राप्ति के पश्चात् मदनप्रभ पति की प्राप्ति ) 

अनङ्गमञ्जरी भविष्य ३.२.२०( अर्थदत्त वैश्य की पुत्री, सुवर्ण - भार्या, विप्र को रति दान, मरण ), कथासरित् १२.६.३३०( अनङ्गोदय राजा की पुत्री, श्रीदर्शन से विवाह की कथा, पूर्व जन्मों का वृत्तान्त ), १२.२८.६( अर्थदत्त वैश्य की कन्या, मणिवर्मा - पत्नी, कमलाकर पर आसक्ति, प्रेम, वियोग, मरण व पुनर्जीवन ) anangamanjaree

अनङ्गरति कथासरित् ९.२.९४( महावराह राजा व पद्मरति की कन्या, चार वीरों द्वारा प्राप्ति की चेष्टा, अनङ्गरति का शरीर त्याग विद्याधरी बनना ), १२.१६.१३( वीरदेव व पद्मरति की कन्या, चार वीरों द्वारा प्राप्ति की चेष्टा की कथा ),  

अनङ्गलीला कथासरित् १२.२.४८( राजा धर्मगोप की कन्या, भद्रबाहु राजा द्वारा युक्ति से अनङ्गलीला को प्राप्त करने की कथा ) 

अनङ्गलेखा ब्रह्माण्ड ४.१९.२५( ललिता के चक्रराज रथ पर स्थित एक देवी ), स्कन्द ४.१.२४.६१( पाण्ड्य नरेश - पुत्री, वृद्धकाल - पत्नी, पूर्व जन्म में तुर्वसु - पुत्री, नैध्रुव - पत्नी ), ४.२.६७.४१( गन्धर्व - कन्या रत्नावली की सखी ), ४.२.६७.८९( अनङ्गलेखा द्वारा पृथिवी वासियों के चित्रों का लेखन ) anangalekhaa 

अनङ्गवती भविष्य ४.८५( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनङ्गवती का काम - पत्नी प्रीति बनना ), मत्स्य १००( विभूति द्वादशी व्रत के प्रभाव से अनङ्गवती का काम - पत्नी प्रीति बनना ), स्कन्द ७.१.३९( वेश्या, शूद्र दम्पत्ति से केदारेश्वर लिङ्ग के समक्ष जागरण के माहात्म्य का कथन ), कथासरित् ९.२.१७०( समर विद्याधर राज - पत्नी, अनङ्गप्रभा कन्या को शाप ) anangavatee

अनङ्गवल्ली लक्ष्मीनारायण ४.५६.३( गर्भ भ्रूण घातिनी अनङ्गवल्ली की कथा श्रवण से मुक्ति ) 

अनङ्गोदय कथासरित् १२.६.३३०( हंस द्वीप का राजा, स्वकन्या अनङ्गमञ्जरी का श्रीदर्शन राजकुमार से विवाह )

अनन्त अग्नि ४६.१०( शिलाओं में अनन्त मूर्ति के परिज्ञान हेतु चिह्नों का कथन - अनन्तो नागभोगाङ्गो नैकाभो नैकमूर्त्तिमान्।), ५६.३१( दस दिशाओं के अधिपतियों के संदर्भ में अनन्त से अधोदिशा की रक्षा की प्रार्थना - अनन्तागच्छ चक्राढ्य कूर्म्मस्थाहिगणेश्वर। अधोदिशं रक्ष रक्ष अनन्तेश नमोस्तु ते ।।), १२०.१५( अन्तहीन संख्याओं वाली अनन्त प्रकृति के परा नाम का उल्लेख - अनन्तस्य न तस्यान्तः सङ्ख्यानं नापि विद्यते। हेतुभूतमशेषस्य प्रकृतिः सा परा मुने ॥ ..), १९२.७( कार्तिक शुक्ल चर्तुदशी को अनन्त पूजा की विधि - अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान् समभ्युद्धर वासुदेव ॥ अनन्तरूपे विनियोजयस्व अनन्तरूपाय नमो नमस्ते ।), १९६.१८( अनन्त व्रत की महिमा - मार्गशीर्षे मृगशिरे गोमूत्राशो यजेद्धरिं । अनन्तं सर्वकामानामनन्तो भगवान् फलं ॥), ३०४.२३( दीक्षा के संदर्भ में अनन्त योग पीठ पर शिव का आवाहन - अनन्तयोगपीठाय आवाह्याथ हृदब्जतः । स्फटिकाभं चतुर्बाहुं फलशूलधरं शिवम् ॥ ), ३०५.१०( सैन्धवारण्य में विष्णु का अनन्त नाम - अनन्तं सैन्धवारण्ये दण्डके शार्ङ्गधारिणम् ।।), गरुड ३.२.३५(अनन्त गुण पूर्णता से श्रीहरि की ब्रह्म संज्ञा - अनन्तगुणपूर्णत्वाद्ब्रह्मेति हरिरुच्यते ॥),  देवीभागवत ८.२०.१८+ ( अनन्त का पाताल लोक के नीचे वास, महिमा - सङ्कर्षणं सात्वतीयाः कर्षणं द्रष्ट्टदृश्ययोः ॥ ), ९.१.१०२(तुष्टि – पति - यया विना परिक्षीणाः पुमांसो योषितोऽपि च । अनन्तपत्‍नी तुष्टिश्च पूजिता वन्दिता भवेत् ॥  ), नारद १.१७.९७(   के अनन्तशायी नारायण की अर्चनविधि - अनन्तशायिनं देवं नारायणमनामयम् । पञ्चामृतेन प्रथमं स्नापयेद्भक्तिसंयुतः ।।.. ), १.४२.२५( पृथिवी, जल, अग्नि आदि की अन्तता व आकाश की अनन्तता का वर्णन - अनंतमेतदाकाशं सिद्धदैवतसेवितम् । रम्यं नानाश्रयाकीर्णं यस्यांतो नाधिगम्यते ।। ), १.६६.१०६( अनन्त की शक्ति विजरा का उल्लेख - पूर्णोदर्या तु श्रीकण्ठो ह्यनन्तो विजरान्वितः  ), १.१२३.२३( अनन्त चतुर्दशी व्रत व उद्यापन विधि ), ब्रह्म १.२१.२६( ब्रह्माण्ड की सीमा के वर्णन के अन्तर्गत पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश की सीमाओं तथा प्रधान के अनन्त होने का कथन, अनन्त का परा प्रकृति नाम - तदनन्तमसंख्यातं प्रमाणेनापि वै यतः॥ हेतुभूतमशेषस्य प्रकृतिः सा परा द्विजाः।), १.३१.४२( सूर्य के १०८ नामों में से एक ), १.६७( अनन्त वासुदेव का माहात्म्य, वासुदेव प्रतिमा का इन्द्र, रावण, राम, कृष्ण आदि में हस्तान्तरण, पुरुषोत्तमक्षेत्र में प्रतिष्ठा - तस्मिन्क्षेत्रवरे पुण्ये दुर्लभे पुरुषोत्तमे। उज्जहार स्वयं तोयात्समुद्रः सरितां पतिः।। ), २.४.४४( बलि व वामन की कथा में वामन का अनन्त बनना - अनन्तश्चाच्युतो देवो विक्रान्तो विक्रमाकृतिः।। ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१.१०६( तुष्टि - पति - अनन्तपत्नी तुष्टिश्च पूजिता वन्दिता सदा ।। यया विना न सन्तुष्टाः सर्वे लोकाश्च सर्वतः ।। ), २.५.२१(वसुन्धरा द्वारा अनन्त से एक ज्ञान की पृच्छा का उल्लेख - यदाऽप्यनन्तं पप्रच्छ ज्ञानमेकं वसुन्धरा ।। बभूव मूकवत्सोऽपि सिद्धान्तं कर्तुमक्षमः ।।), ४.९.४२( अनन्त बलराम के जन्म का वर्णन : देवकी गर्भ का रोहिणी में स्थान्तरण - देवक्याः सप्तमं गर्भं माया कृष्णाज्ञया तदा ।। रोहिण्या जठरे तत्र स्थापयामास गोकुले ।। ), भविष्य १.३४.२२( अनन्त नाग का सूर्य ग्रह से साम्य - अनन्तं भास्करं विद्यात्सोमं विद्यात्तु वासुकिम् तक्षकं भूमिपुत्रं तु कर्कोटं च बुधं विदुः ।। ), ४.२६( अनन्त तृतीया व्रत : ललिताराधना - वरदायै नमः पादौ तथा गुल्फौ श्रिये नमः ।। अशोकायै नमो जंघे भवान्यै जानुनी तथा ।। ), ४.९४( अनन्त चर्तुदशी व्रत, कौण्डिन्य व शीला की कथा - मां विद्ध्यनंतं पार्थ त्वं विष्णुं जिष्णुं हरं शिवम्।।), ४.९४.३( अनन्त के शेष, तक्षक पर्याय - कृष्ण कोऽयं त्वयाख्यातो ह्यनंत इति विश्रुतः । किं शेषनाग आहोस्विदनंतस्तक्षकः स्मृतः ।।  ), ४.१०६( अनन्त व्रत, शीलधना व मैत्रेयी का संवाद, अनन्त व्रत से कार्तवीर्य पुत्र की प्राप्ति ), भागवत १०.६७.१( अनन्त बलराम की लीलाओं का वर्णन : द्विविद वानर का वध ), १०.६८.४१( अनन्त बलराम द्वारा हस्तिनापुर का हल की नोक से कर्षण करके गङ्गा में डुबाने का उद्योग - लाङ्गलाग्रेण नगरं उद्विदार्य गजाह्वयम् ।  विचकर्ष स गङ्गायां प्रहरिष्यन्नमर्षितः ॥  ), १०.८९.५३( कृष्ण द्वारा अर्जुन के साथ पश्चिम दिशा में अनन्त से मिलन, ब्राह्मण बालक की प्राण रक्षा - तस्मिन्महाभोगमनन्तमद्भुतं
सहस्रमूर्धन्यफणामणिद्युभिः
विभ्राजमानं द्विगुणेक्षणोल्बणं सिताचलाभं शितिकण्ठजिह्वम्), मत्स्य ६२( अनन्त तृतीया व्रत की विधि, ललिता - न्यास, मास अनुसार पुष्प पूजा - वरदायै नमः पादौ तथा गुल्फौ नमः श्रियै। अशोकायै नमो जङ्घे पार्वत्यै जानुनी तथा॥ ), वराह २४.५( सर्प का नाम, कश्यप व कद्रू- पुत्र ), वामन ५७.७३( यक्षों द्वारा कुमार को प्रदत्त गण का नाम ), विष्णु २.५.१३( अनन्त/शेष की महिमा का कथन - योनन्तः पठ्यते सिद्धैर्दैवो देवर्षिपूजितःस सहस्रशिरा व्यक्तस्वस्तिकामलभूषणः ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१५ (अनन्तः सर्वनागानां सूर्यस्तेजस्विनां तथा ।।), १.१७३( अनन्त व्रत - मार्गशीर्षादथारभ्य व्रतमेतत्समारभेत् ।। देवस्य मार्गशीर्षे तु वामं जानुं समर्चयेत्।। ), ३.६५( शेष अनन्त की मूर्ति का रूप ), ३.१०६.२५( अनन्त आवाहन मन्त्र - लांगलालिङ्गतकरं मुसलासक्तविग्रहम् ।। महोच्छ्रितेन तालेन तथा चिह्नेन राजितम्।। ), ३.१५०( चतुर्मूर्ति व्रत के संदर्भ में अनन्त व्रत - विष्णोः स्थाने त्वनन्तस्य पूजा कार्या विजानता । ), ३.२१९( अनन्त द्वादशी व्रत - मासि प्रोष्ठपपदे शुक्ले द्वादश्यां जलशायिनम् ।। प्रणम्यानन्तमभ्यर्च्य पुष्पधूपादिभिः शुचिः ।।), शिव ५.१५.११( अनन्त नाग के स्वरूप व महिमा का वर्णन - शिरःसाहस्रयुक्तस्स सर्वा विद्योतयन्दिशः । फणामणिसहस्रेण स्वस्तिकामलभूषणः ।। ), स्कन्द ३.१.१४.३१( आदि व अन्त से रहित शिवलिङ्ग के आदि व अन्त का अन्वेषण करने के लिए हंस रूप धारी ब्रह्मा का ऊर्ध्व दिशा में तथा वराह रूप धारी विष्णु का अधोदिशा में गमन, आदि - अन्त को पाने में असफलता ), ३.१.३६.१२२( अमावास्या को महालय श्राद्ध करने से पितरों की अनन्त तृप्ति होने का कथन - सुधामास्वाद्य या तृप्तिर्देवानां दिवि वै भवेत् ।। अनंता तादृशी तृप्तिरमावास्यां महालयात् ।। ), ३.३.७.३९( अनन्ता : शिव के परित: ९ शक्तियों में से एक ), ४.२.६०.१२५( अनन्त माधव : माधव का त्रेता युग में नाम - अनंतमाधवो ज्ञेयस्त्रेतायां सर्वसिद्धिदः । श्रीदमाधवसंज्ञोहं द्वापरे परमार्थकृत्।।), ४.२.६१.१९८( अनन्त वामन का संक्षिप्त माहात्म्य - अनंतवामनश्चाहमनंतेश्वरसन्निधौ ।। अनंतान्यपि भक्तस्य कलुषाणि हरेऽर्चितः ।।), ६.२३२.३( चातुर्मास के संदर्भ में विष्णु के शयन पर व्रत, दान आदि करने पर अनन्त फल होने का कथन - यः कश्चिन्नियमो विप्राः प्रसुप्ते गरुडध्वजे ॥ अनंतफलदः स स्यादित्युवाच पितामहः ॥ ), ७.१.१६१( अनन्तेश लिङ्ग का माहात्म्य - ईशाने लक्ष्मणेशाच्च धनुषां षोडशे प्रिये ॥१॥ अनन्तेश्वरनामानमनन्तेन प्रतिष्ठितम् ॥), ७.१.३३६.११( प्रभास क्षेत्र में गोष्पद तीर्थ के निकट अनन्त नाग की स्थिति का कथन- गोष्पदस्य समीपे तु नातिदूरे व्यवस्थितः ॥ अनन्तो नाम नागेन्द्रः स्वयंभूतो धरातले ॥ ), हरिवंश २.२६.४३( यमुना में अक्रूर द्वारा अनन्त के दर्शन का प्रसंग - श्रीमत्स्वस्तिकमूर्द्धानं प्रणमिष्यामि भोगिनम् । सहस्रशिरसं देवमनन्तं नीलवाससम् ।। ), महाभारत भीष्म २५.१६ (युधिष्ठिर के शङ्ख का अनन्तविजय नाम -अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ।। ) वा.रामायण ४.४०.५१( पूर्व दिशा की सीमा के रूप में अनन्त की स्थिति का कथन ; सीमा के पश्चात् उदय पर्वत की स्थिति - आसीनम् पर्वतस्य अग्रे सर्व भूत नमस्कृतम् । सहस्रशिरसम् देवम् अनंतम् नील वाससम् ॥ ), लक्ष्मीनारायण २.१४०.७७( अनन्तमाया नामक प्रासाद के लक्षण - विंशतितलभागश्च त्रिपंचाशच्चतुःशतम् ।। अण्डानां यस्य सोऽनन्तमाया प्रासाद उच्यते ।), कथासरित् ९.५.५७( अनन्तशक्ति : राजा देवशक्ति की पत्नी, मदनसुन्दरी - माता ), ९.६.४२( अनन्तस्वामी : राजा ताराधर्म का मन्त्री, चन्द्रस्वामी ब्राह्मण के पुत्र महीपाल का पालन करना ), ९.६.१२१( अनन्त ह्रद में चन्द्रस्वामी ब्राह्मण का स्नान ), १०.२.१०( अनन्तगुण : राजा विक्रमसिंह का मन्त्री, वेश्या पर आसक्त राजा को वेश्या के प्रेम की परीक्षा का परामर्श ) द्र. बलराम, शेष ananta

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अनन्ती मत्स्य ४.३३( स्वायम्भुव मनु - पत्नी, प्रियव्रत व उत्तानपाद - माता )

अनपत्य पद्म ७.२५( अनपत्यपति द्विज द्वारा पवित्र ब्राह्मण सहित लोमश ऋषि से अतिथि महिमा का श्रवण ) स्कन्द ५.३.१५९.१८(anapatya

 

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