पुराण विषय अनुक्रमणिका(अ-अनन्त) Purana Subject Index

Akshasutra-Agni

Words like Agastya, Akhanda/undivided, Agni are described here.

अक्षसूत्रा ब्रह्म २.६०.२( आपस्तम्ब - भार्या, कर्कि - माता ) akshasuutraa/akshasootraa

अक्षोट स्कन्द ६.२५२.२५( चातुर्मास में धनद की अक्षोट वृक्ष में स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८६( अक्षोट वृक्ष : धनद देवता का रूप )

अक्षोभ्य नारद १.८५.३७( अक्षोभ्य मुनि द्वारा तारा की आराधना) akshobhya

अक्षोभ्या देवीभागवत १२.११.१३( ६४ कलाओं में से एक ), स्कन्द ४.१.२९.१८( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ) akshobhyaa


अखण्ड नारद १.१२१.६१( अखण्ड द्वादशी व्रत की विधि ), भविष्य ४.११०( सम्पूर्ण व्रत की विधि ), स्कन्द २.५.१२.१९( अखण्ड एकादशी व्रत की विधि व माहात्म्य ), ५.१.६८.३०( महाकालवन में अखण्ड सरोवर में स्नान का माहात्म्य )द्र. खण्ड akhanda

अगम्यागमन नारद १.१५.९४( अयोनि में वीर्य त्याग पर नरक यातना का वर्णन ), १.३०.५७( अगम्यागमन के प्रायश्चित्त की विधि ), पद्म ४.१८( अगम्यागमन के प्रायश्चित्त की विधि ), ब्रह्माण्ड ३.४.८( अगगम्यागमन दोष का वर्णन ), द्र. मैथुन, सम्भोग, सुरत

अगस्ति वराह १८०( विरूपकनिधि दासी द्वारा ध्रुव तीर्थ में श्राद्ध से अगस्ति नामक पितरों की मुक्ति ), विष्णु ३.११.९५( अन्न पाचक अग्नि का नाम ), स्कन्द ४.२.६१.१७७( अगस्ति तीर्थ का माहात्म्य ) agasti

 


अगस्त्य अग्नि २०६( अगस्त्य हेतु अर्घ्य दान व अगस्त्य पूजा का कथन ), कूर्म १.१३.१०( जन्मान्तर में पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र दम्भोजि ), गरुड १.११९( अगस्त्य अर्घ्य व्रत ), देवीभागवत ६.९.५२( नहुष द्वारा शिबिका वाहक अगस्त्य का कशा से ताडन, शाप से सर्प बनना ), १०.६+ ( विन्ध्य का नमन करने के लिए अगस्त्य का काशी से दक्षिण में आना ), नारद २.२८.४५( अगस्त्य के मृतकादाता होने का उल्लेख ), पद्म १.१९.१३१( कालकेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा समुद्र पान ), १.२२.१८( इन्द्र द्वारा शापित अग्नि का रूप, मित्रावरुण व उर्वशी से उत्पत्ति की कथा, अगस्त्य को अर्घ्य दान की विधि ), १.३६( राम को राजा श्वेत द्वारा शव भक्षण की कथा सुनाना ), १.३७.५( दण्डक वन प्रसंग में राम को राजा दण्ड व उसकी कन्या अरजा के प्रसंग का कथन ), ५.६+ ( राम से मिलन के लिए आगमन, रावण के जन्म के वृत्तान्त का कथन, ब्रह्महत्या के निवारण हेतु राम को अश्वमेध यज्ञ के अनुष्ठान का सुझाव, अश्वमेध हेतु राम की अश्वशाला से अश्व का चुनाव ), ब्रह्म २.१४.६( अगस्त्य द्वारा अञ्जना व अद्रिका को पुत्र प्राप्ति का वरदान ), २.४८( अगस्त्य द्वारा विन्ध्य के नमन की कथा ), २.५४.५१( इन्द्र द्वारा दिति के गर्भ के छेदन पर अगस्त्य द्वारा इन्द्र को शाप ), २.६०( आपस्तम्ब मुनि को त्रिदेवों में शिव भक्ति का आदेश ), २.८८( आङ्गिरस गणों को गङ्गा तट पर तप करने का आदेश ), ब्रह्मवैवर्त्त १.१६.२१( कुम्भसम्भव द्वारा आयुर्वेद में द्वैधनिर्णय तन्त्र की रचना का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.११.२६( पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र, दानाग्नि का रूप ), २.३.३६( अगस्त्य द्वारा परशुराम को कृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र का कथन ), ३.४.५( अगस्त्य द्वारा काञ्ची में हयग्रीव से मुक्ति के उपाय की पृच्छा ), भविष्य ४.११८( अगस्त्य को अर्घ्य दान, अगस्त्य चरित्र वर्णन में इल्वल - वातापि प्रसंग, समुद्र शोषण, कालकूट विष का हिमालय में वितरण, श्वेत राजा की सहायता आदि ), भागवत ४.१.३६( पुलस्त्य व हविर्भू - पुत्र, जठराग्नि उपनाम ), ४.२८.३२( अगस्त्य द्वारा मलयध्वज - पुत्री से दृढच्युत नामक पुत्र की प्राप्ति का उल्लेख ), ८.४( अगस्त्य द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न को गज बनने का शाप ), मत्स्य ६१( इन्द्र द्वारा शापित वायु व अग्नि का संयुक्त रूप ), ६१.४२( अगस्त्य को अर्घ्य दान की विधि ), ९६.९ ( अगस्ति : ताम्रमय १६ फलों में से एक ), १४५.९२( तप से ऋषिता प्राप्त करने वाले ऋषियों में से एक ), २०२( अगस्त्य वंश व गोत्र ), महाभारत अनुशासन ११५(अगस्त्य द्वारा सभी आरण्यक मृगों को मृगया हेतु प्रोक्षित करने का उल्लेख), वराह ४९( अगस्त्य द्वारा भद्राश्व को उसके पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), ५१+( अगस्त्य गीता ), ६९( अगस्त्य द्वारा इलावृत्त में घटित आश्चर्य का वर्णन ), वामन १८.२१( अगस्त्य द्वारा विन्ध्य को नीचा करना ), ९०.३९( मह लोक में विष्णु का अगस्त्य नाम ), वायु २८.२२( जन्मान्तर में पुलस्त्य - पुत्र दत्तोलि/दत्तालि ), विष्णु १.१०.९( पुलस्त्य व प्रीति - पुत्र दत्तोलि का जन्मान्तर में रूप ), विष्णुधर्मोत्तर १.२४.८( इन्द्र पद पर आसीन नहुष द्वारा शिबिका वाहक अगस्त्य पर पदाघात, शाप प्राप्ति की कथा ), १.६६.११ (परशुराम द्वारा कार्यसिद्धि के पश्चात् तूण अगस्त्य को व चाप श्रीराम को देने का शिव का निर्देश), १.११८( गोत्रकार ), १.२१३( विन्ध्य को ह्रस्व करने पर अगस्त्य द्वारा वैश्वानरपथ से बाहर दिव्य देह प्राप्ति ), ३.७३.७( अगस्त्य की मूर्ति का रूप ), शिव ७.१.३२.१५( पाशुपत योग के ४ आचार्यों में से एक ), स्कन्द १.१.१८.७७( अगस्त्य द्वारा बलि से दान में ऐरावत की प्राप्ति ), १.२.१३.१७७( शतरुद्रिय प्रसंग में अगस्त्य द्वारा व्रीहिज लिङ्ग की सुशांत नाम से पूजा ), २.१.२६.६७( अगस्त्य द्वारा तुम्बुरु - पत्नी का मण्डूक योनि से उद्धार, पतिव्रता धर्म का कथन ), २.१.३१.२०(शिव-पार्वती विवाह में अगस्त्य के दक्षिण दिशा में गमन से पृथ्वी का समतल होना, सुवर्णमुखरी नदी को उत्पन्न करना ), २.१.३७.२४+( अगस्त्य द्वारा वेंकाटचल पर शंख के साथ तप, विष्णु के दर्शन, सुवर्णमुखरी नदी की उत्पत्ति ), ३.१.१३( अगस्त्य - अनुज एकान्तरामनाथ द्वारा तप व मोक्ष की कथा ), ३.१.१६( अगस्त्य तीर्थ का माहात्म्य, कक्षीवान - विवाह का प्रसंग ), ३.१.१६.५८(कक्षीवान द्वारा अगस्त्य तीर्थ में चतुर्दन्त हस्ती की प्राप्ति का कथन), ३.१.२३.३०( यज्ञ में प्रतिहर्ता ऋत्विज होने का उल्लेख ), ३.१.४९.६१( अगस्त्य द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ४.१.३+ ( अगस्त्य आश्रम की शोभा का वर्णन, काशी से दक्षिण गमन, विन्ध्य का नमन, महालक्ष्मी की स्तुति ), ५.१.३५( अगस्त्येश लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.१.५५( रेवा जल से भूमि के उद्धार के लिए अगस्त्य द्वारा विन्ध्यवासिनी की स्तुति ), ५.१.६३.१०३( विष्णु सहस्रनामों में से एक ), ५.२.१.२०( अगस्त्येश लिङ्ग : अगस्त्य की ब्रह्महत्या से मुक्ति ), ५.३.६४( अगस्त्य तीर्थ का माहात्म्य ), ६.३३( विन्ध्य का नमन, हाटक लिङ्ग की स्थापना ), ६.३५( कालेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा विशोषिणी विद्या द्वारा समुद्र का शोषण, चित्रेश्वर पीठ की स्थापना ), ७.१.१७.११७( अगस्त्य पुष्प की महिमा – आनुकूल्य प्राप्ति ), ७.१.७८( अगस्त्य व लोपामुद्रा के पूर्व जन्म का वृत्तान्त, पूर्व जन्म में शुक, वैश्वानर लिङ्ग की पूजा ), ७.१.२८५ ( अगस्त्य आश्रम का माहात्म्य, वातापि - इल्वल की कथा, क्षुधा शान्ति ), ७.१.३४७( कालकेय दैत्यों के वधार्थ अगस्त्य द्वारा समुद्र का शोषण, देवों से हाटक लिङ्ग की पूज्यता वर की प्राप्ति ), ७.४.१७.२२( द्वारका के दक्षिण द्वार पर अगस्त्य की सनातन ऋषि के साथ स्थिति का उल्लेख ), योगवासिष्ठ १.१.४( अगस्त्य द्वारा सुतीक्ष्ण को कर्म या ज्ञान से मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन ), ६.१.११८.१३( जगत जाल तरङ्गों से पूरित काल समुद्र का पान करने वाले अगस्त्य ), वा.रामायण १.२५.९( यक्षी ताटका व ताटका - पुत्र मारीच को शाप से राक्षस बनाना, ताटका - पति सुन्द को मारना ), ३.११( राम द्वारा अगस्त्य - भ्राता व अगस्त्य के आश्रम का दर्शन व वर्णन ), ३.४३.४३( राम द्वारा मारीच राक्षस की तुलना वातापि से करना  ), ६.१०५( राम-रावण युद्ध में अगस्त्य द्वारा राम को आदित्य हृदय स्तोत्र देना ), ७.७६.२०( अगस्त्य द्वारा राम का सत्कार व आभूषण भेंट ), ७.७७+ ( राम को राजा श्वेत की कथा सुनाना ), लक्ष्मीनारायण १.१७४.१८०( दक्ष यज्ञ से बहिर्गमन करने वाले शैव ऋषियों में से एक ), १.३२१( अगस्त्य द्वारा चित्रबाहु नृप के पूर्व जन्म के वृत्तान्त का कथन ), १.४५५+ ( विन्ध्याचल निग्रह के पश्चात् अगस्त्य द्वारा महालक्ष्मी का दर्शन व स्तुति, काशी की देवियों द्वारा अगस्त्य व लोपामुद्रा को पुन: काशी में लाना ), १.५४५( अगस्त्य द्वारा आतापी, वातापि व इल्वल के नाश की कथा ), १.५४६+ ( अगस्त्य द्वारा भद्राश्व राजा को आत्मज्ञान का उपदेश ), १.५५०( अगस्त्य द्वारा समुद्र पान की कथा ), १.५५२( अगस्त्य द्वारा कृष्ण - भक्ति से दिव्यता, चिरञ्जीविता प्राप्ति ), २.९५( अगस्त्य का उष्णालय खण्ड में गमन, मुनियों को विज्ञान दान ), २.१०६.४८( दक्षजवंगर राजा के वैष्णव होम के ब्रह्मा नामक ऋत्विज ), ३.१३७( अगस्त्य उदय दिवस पर घट लक्ष्मी व्रत ) agastya

अगुण शिव ५.३९.२४( यक्ष - पुत्र, विधृति - पिता, इक्ष्वाकु वंश )

 

अगुरु स्कन्द २.२.१५.८( पुरुषोत्तम क्षेत्र में अगुरु वृक्ष के नीचे नृसिंह की स्थिति का उल्लेख ), ६.२५२.२१( चातुर्मास में अगुरु वृक्ष में गणनायक की स्थिति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४४१.८३( अगुरु वृक्ष : गणेश का रूप ), १.४५१.७५( इन्द्रिय पुष्प, धूप अगुरु वपु ), कथासरित् १०.५.३( अगुरु दाही वैश्य की कथा : अगुरु काष्ठ का अङ्गार/कोयला बनाना ) aguru 

अग्नि अग्नि २४( कुण्ड निर्माण आदि अग्नि कार्य का वर्णन ), ८१.४५( अग्नि की सात जिह्वाओं के नाम व बीज मन्त्र ), २५५.३८( अग्नि द्वारा सत्यानृत/दिव्यता परीक्षा ), कूर्म २.३४.११२( रावण द्वारा हरण पर सीता द्वारा आवसथ्य अग्नि की स्तुति ), गरुड ३.७.३८(अग्नि द्वारा हरि-स्तुति), गर्ग १.५.२( अग्नि का द्रोणाचार्य के रूप में अवतरण ), ७.२.२( तनूनपात् द्वारा प्रद्युम्न को परिघ प्रदान करने का उल्लेख ), देवीभागवत ३.१२.४८( गार्हपत्य आदि अग्नियों का प्राण, अपान आदि से तादात्म्य ), ५.२.२८( रम्भ दानव द्वारा पञ्चाग्नि तप, पावक द्वारा रम्भ दानव को त्रैलोक्य विजयी महिषासुर पुत्र प्राप्ति का वरदान ), ८.४.५( प्रियव्रत व बर्हिष्मती के आग्नीध्र आदि  १० पुत्रों की वह्नि संज्ञा ), ९.२२.४( हुताशन का शंखचूड - सेनानी गोकर्ण से युद्ध ), ११.२२.२६(अरणि मन्थन में हृत्पुण्डरीक अरणि आदि), ११.२२.३४( प्राण, अपान आदि मन्त्रों के क्षुधाग्नि आदि ऋषि ), १२.८.२४( तृण को जलाने में अग्नि की असमर्थता, गर्व का खण्डन ), नारद १.५१.४८( अग्नि के स्वरूप का कथन ), १.६५.२५( अग्नि की १० कलाओं के नाम ), पद्म १.२०.११०( वैश्वानर व्रत की संक्षिप्त विधि व माहात्म्य ), १.२२.१८( अग्नि द्वारा समुद्र शोषण की इन्द्र की आज्ञा की अवहेलना, अगस्त्य रूप में जन्म ), १.४०.९६( मरुत्वती के मरुत्वान् संज्ञक देवों में से एक ), २.२२.२४( दुःख  अनल का कथन ), ५.१४.३४ ( अग्नि को दमन राक्षस से भय प्राप्ति, भृगु द्वारा सर्वभक्षी होने का शाप ), ६.१२८.३४( अग्निप : वेदनिधि - पुत्र, अप्सराओं पर आसक्ति, शाप - प्रतिशाप से पिशाच बनना, माघ - स्नान से मुक्ति, विवाह ), ६.१३९( अग्निपालेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, कहोड द्वारा कुकर्दम राजा के प्रेत की मुक्ति, मातृका तीर्थ ), ६.१६८.४५( अग्नि द्वारा इन्द्र से ब्रह्महत्या के अंश की प्राप्ति ), ब्रह्म २.२८( अग्नि तीर्थ का वर्णन, मधु दैत्य द्वारा भ्राता जातवेदा की हत्या पर अग्नि का अदृश्य होना, देवों के अनुरोध पर पुन: प्राकट्य ), २.२८.१८( अग्नि के जल, शमी व यज्ञ गर्भों का उल्लेख), २.५५( उलूक द्वारा अग्नि की उपासना से बल प्राप्ति, कपोतों से युद्ध, कपोती द्वारा अग्नि की स्तुति ), २.५६( अग्नि और आप: में ज्येष्ठता निर्णय के लिए ऋषियों का तप, सरस्वती वाक् द्वारा आप: की ज्येष्ठता का कथन ), २.५८( शिव से प्राप्त वीर्य के अंश को स्व - पत्नी स्वाहा में स्थापित करना, सुवर्ण व सुवर्णा कन्या का जन्म, सुवर्णा कन्या का धर्म से विवाह आदि ), २.९०.८( अग्नि का अहि से युद्ध ), ब्रह्मवैवर्त्त १.४.१४( ब्रह्मा के रेतः से अग्नि की उत्पत्ति ), ४.१८.७७( अग्नि का सप्तर्षि - पत्नियों पर मोहित होना, अङ्गिरा द्वारा सर्वभक्षी होने का शाप ), ४.४९( शिशु रूपी विष्णु द्वारा त्रिलोकी को भस्म करने को उद्धत अग्नि की दाहक शक्ति को समाप्त करना ), ब्रह्माण्ड १.२.१२.१४( आहवनीय अग्नि से १६ धिष्ण्य अग्नियों की उत्पत्ति ), १.२.१२.२१( अग्नि के स्थान, नाम ), १.२.२४( अग्नि के शुचि, अब्ज आदि ३ प्रकार ), १.२.२४.६( त्रिविध अग्नि ), २.३.७.२१( अग्नि से ऊर्जा नामक अप्सरा गण की उत्पत्ति का उल्लेख), २.३.११.९७( होम में अग्नि के स्वरूप से सिद्धि का ज्ञान ), ३.४.१५.२१( अग्नि द्वारा ललिता देवी को किरीट भेंट का उल्लेख ), भविष्य १.१२४.१९( अग्नि का सूर्य - अनुचर पिङ्गल के रूप में कथन, दक्षिण पार्श्व में स्थिति, वाम पार्श्व में स्कन्द ), १.१२५.३०( पवमान, पावक व शुचि अग्नियों के निर्मन्थ्य, वैद्युत व सूर्य नाम ), २.१.१५.१३( अग्नि की विभिन्न ज्वालाएं/जिह्वाएं, होम ), २.१.१७( विभिन्न कर्मों में अग्नि के नाम, होम द्रव्य ), २.२.१४( स्व गृह्याग्नि कर्म विधान का कथन ), २.२.१५( विभिन्न होमों में अग्नि की जिह्वाओं का विनियोग ), २.२.१५( अग्नि कर्म में कुशकण्डिका, स्थालीपाक विधान ), ३.४.२०.१८( वह्नि : अपरा प्रकृति के देवों में से एक ), ४.९३.५०( अङ्गिरा द्वारा अग्नि के कार्य का प्रतिस्थापन, अग्नि का अङ्गिरा - पुत्र बनना ), ४.१४२.३८( शान्ति होम में घृतार्चि नामक अग्नि का आह्वान, स्वरूप, पांच मुखों में चार वेदों के अनुसार आहुतियां ), ४.१७३( अङ्गीठी/अग्नीष्टिका दान की विधि ), भागवत ४.२४.४( पवमान, पावक व शुचि अग्नियों का अन्तर्धान - पुत्र बनना ), ५.१.२५( अग्नि की प्रियव्रत व बर्हिष्मती के १० पुत्रों के रूप में उत्पत्ति ), ६.९.१२( अन्वाहार्यपचन नामक अग्नि, वृत्र की उत्पत्ति ), ६.१८.४( अग्नि द्वारा यमुना तट पर गोपों को व्यथा, कृष्ण द्वारा शान्ति ? ), १०.१७.२१( पुरीष्य नामक अग्नि : विधाता व क्रिया - पुत्र ), १०.१७.२१( कृष्ण द्वारा दावाग्नि से गायों व गोपों की रक्षा ), १०.१९.७(कृष्ण द्वारा दावाग्नि से गायों व गोपों की रक्षा), १०.६६.३०( सुदक्षिण द्वारा दक्षिणाग्नि से कृत्या रूप अग्नि उत्पन्न करना, कृष्ण के सुदर्शन चक्र से नष्ट होना ), ११.७.४५( दत्तात्रेय के गुरुओं में से एक ), मत्स्य ५१( पवमान, पावक आदि अग्नियों के पुत्रों आदि के नाम ), ५१.२४( विहरणीय अग्नि के ८ धिष्ण्यसंज्ञक पुत्रों के नाम व कर्म ), ६१( समुद्र शोषण के आदेश की अवज्ञा करने पर इन्द्र द्वारा अग्नि को शाप, अगस्त्य रूप में जन्म ), १५८.२४( अग्नि द्वारा शुक रूप धारण कर शिव वीर्य को ग्रहण करने की कथा ), २६१.९( अग्नि की प्रतिमा का रूप ), मार्कण्डेय ९९.१३/९७.१३( गुरु भूति द्वारा शिष्य शान्ति को अग्नि की रक्षा का कार्य सौंपना, अग्नि के अदृश्य होने पर शान्ति द्वारा अग्नि की स्तुति ), वराह १८( महाभूतों में क्षोभ व ब्रह्मा के कोप से अग्नि की उत्पत्ति, अग्नि के पर्यायवाची शब्दों की निरुक्ति ), ५६.२( मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा को अग्नि रूपी जनार्दन की पूजा विधि ), १२६.६६( कुब्जाम्रक क्षेत्र में अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), १४१.७( बदरी क्षेत्र में अग्निसत्यपद क्षेत्र की महिमा ), १४५.५६( अग्निप्रभ तीर्थ का माहात्म्य ), वामन ९.४७( अन्धक - सेनानी मय से युद्ध ), ५४.४१( अग्नि का हंस रूप धारण कर शिव के गृह में प्रवेश, शिव का वीर्य ग्रहण करना ), ५७.६५( अग्नि द्वारा स्कन्द को २ गण प्रदान करना ), ७४.१३( ह्लाद असुर का अग्नि पद पर आसीन होना ), वायु ५.१६( अग्नि के तमोमय, ब्रह्मा के रजोमय व विष्णु के सत्त्वमय होने का कथन ), २९( अग्नियों के पुत्रों-प्रपौत्रों का वर्णन ), २९.१०( गार्हपत्य अग्नि : पवमान/निर्मथ्य अग्नि का रूप ), ५३.५( अग्नि के शुचि, वैद्युत आदि  प्रकरों का वर्णन ), ५६.२०( अग्नि संवत्सर का रूप, सूर्य परिवत्सर आदि ), १०४.८५/२.४२.८५(आवसथ्य की अधरोष्ठ, दक्षिणाग्नि की ऊर्ध्व ओष्ठ आदि में स्थिति का कथन), विष्णु ३.२.३१( अग्नितेजा : ११वें मन्वन्तर में ऋषि ), विष्णुधर्मोत्तर १.१२२.६( देवों द्वारा अग्नि से दैत्यों को जीतने की प्रार्थना ), १.१३६.३१( पुरूरवा प्रसंग में गार्हपत्य आदि अग्नियों का चतुर्व्यूह से तादात्म्य ), १.१९९.८( अग्नि द्वारा भृगु - पत्नी पुलोमा की पुलोमा दानव से रक्षा, भृगु से शाप प्राप्ति ), १.२२८( अग्नि द्वारा शिव व पार्वती की रति को भङ्ग करने की कथा ), २.२०( अग्नि ज्वालाओं के लक्षण से नृप की जय - पराजय का अभिज्ञान ), २.१२०.२४( अग्नि हरण से भेक योनि प्राप्ति का उल्लेख ), २.१३२.१०( आग्नेयी शान्ति के स्वर्ण वर्ण का उल्लेख ), २.१३६( औत्पातिक अग्नि के लक्षण ), ३.५६( अग्नि की मूर्ति का स्वरूप ), ३.१४३( फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी को अग्नि हेतु चतुर्मूर्ति व्रत, चतुर्मूर्ति का वासुदेवादि से साम्य ), शिव २.५.३६.८( अग्नि का शङ्खचूड - सेनानी गोकर्ण से युद्ध ), ३.१५( गृहपति द्वारा तप से अग्नि पद की प्राप्ति ), ५.१४.१०( अग्नि और स्वर्ण में तादात्म्य का उल्लेख ), ७.२.२७( अग्नि कार्य हेतु कुण्ड निर्माण, स्वनाभि से अग्नि के प्राकट्य की कल्पना, यज्ञ से उत्पन्न होने वाली अग्नि हेतु गर्भाधान संस्कार आदि का कथन, जात अग्नि के स्वरूप का कथन ), ७.२.२७.२३(अग्नि की जिह्वाओं के बीजों व वर्णों का कथन),  स्कन्द १.१.१७.१३९( इन्द्र व वृत्र के युद्ध में अग्नि का  वृत्र - सेनानी तीक्ष्णकोपन से युद्ध ), १.१.१८.४( अग्नि द्वारा कपोतक रूप ग्रहण ), १.१.२७( कुमार के जन्म के प्रसंग में अग्नि द्वारा शिव वीर्य का धारण, देवों का गर्भयुक्त होना, कृत्तिकाओं द्वारा वीर्य ग्रहण ), १.२.४२.१७५( घ्रा, जिह्वा, चक्षु, त्वक् आदि ७ पावकों का उल्लेख ), १.२.४४.५०( अग्नि द्वारा पुरुष की सत्यता की परीक्षा ), २.३.२.२२+ ( बदरी क्षेत्र में अग्नि तीर्थ की महिमा, अग्नि का सर्वभक्षी दोष से मुक्त होना), २.३.३.१९(अग्नितीर्थ में पंच शिलाओं का महत्त्व),  २.७.१९.२०( देवों में अग्नि की आपेक्षिक महिमा का कथन : सप्तर्षियों से श्रेष्ठ व सूर्यादि से अवर ), ३.१.२२( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य, सीता की अग्नि परीक्षा की कथा, दुष्पण्य पिशाच की मुक्ति ), ३.१.४९.५६( अग्नि द्वारा रामेश्वर सेतु की स्तुति ), ४.१.१०.२८( अग्नि की अर्चिष्मती पुरी प्राप्ति के उपाय ), ४.१.११( वैश्वानर/गृहपति बालक द्वारा तप से अग्नि पद की प्राप्ति ), ४.१.२१.३५( अग्नि की प्रतापियों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ४.२.६८.७३( अग्निजिह्व वेताल का माहात्म्य ), ४.२.८४.७३( अग्नि तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.८९.४६( दक्ष यज्ञ में अग्नि की जिह्वा का छेदन ), ४.२.९७.११९( अग्नीश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य : अग्नि लोक प्रापक ), ५.१.४.११( ब्रह्मा के तपो काल में व्याहृति से उत्पन्न अग्नि का क्षुधा से रोदन, ब्रह्मा द्वारा अग्नि का अकार, इकार व उकार आदि में विभाजन करके भोजन व स्थान की व्यवस्था करना ), ५.१.४.१४( ब्रह्मा के तप से उत्पन्न अग्नि के अधोमुख पतन तथा ब्रह्मा द्वारा उसको उत्तान करने का कथन, अग्नि के अकारादि तीन रूप ), ५.१.४.९२( अग्नि के भृगु व अङ्गिरा पुत्रों द्वारा अग्नि को द्वैधा विभाजित करना, शमी गर्भ से उत्पन्न अश्वत्थ में अग्नि त्रय का संयोग होना, अग्नि की भार्गव व अङ्गिरस संज्ञा होना ), ५.२.२०( अग्नि द्वारा हंस रूप में शिव - पार्वती की रति में विघ्न ), ५.२.६६.४( जल्प राजा के सुबाहु आदि ५ पुत्रों की ५ अग्नियों से उपमा ), ५.३.१३.४३( १४ कल्पों में से एक अग्निकल्प का उल्लेख ), ५.३.२२( ब्रह्मा के मानस - पुत्र तथा स्वाहा - पति अग्नि द्वारा नर्मदा तथा १६ नदियों की पत्नी रूप में प्राप्ति, नदियों का धिष्णि नाम, नर्मदा-पुत्र की धिष्णीन्द्र संज्ञा आदि ), ५.३.३३( अग्नि द्वारा दुर्योधन - कन्या सुदर्शना की भार्या रूप में प्राप्ति, अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.३९.२८( कपिला गौ के मुख में अग्नि की स्थिति का उल्लेख ), ५.३.१२७( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ५.३.१५९.२६( अग्नि को पद से स्पर्श करने पर मार्जार योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ६.९०.२०( विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि का अदृश्य होना, देवों द्वारा अग्नि का अन्वेषण, अग्नि का गज, शुक, मण्डूक को शाप ), ६.९०.६५( अग्निसूक्त? का महत्त्व, अग्नि की तृप्ति हेतु वसुधारा का महत्त्व), ६.११३.६६( अग्नि कुण्ड का माहात्म्य, अग्नि के स्वेद से कुण्ड की उत्पत्ति की कथा, अब्राह्मण का कुण्ड में स्नान से विस्फोटयुक्त होना ), ६.१९२.७१( ब्रह्मा के यज्ञ के प्रसंग में सावित्री द्वारा अग्नि को सर्वभक्षी होने का शाप ), ७.१.२९( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य ), ७.१.१०५.४९( १८वें कल्प का अग्नि नाम ), ७.३.२.४७( श्वेत अश्व रूप अग्नि का उत्तंक द्वारा कुण्डल प्राप्ति में सहायक होना ), ७.३.३०( अग्नि तीर्थ का माहात्म्य, विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि का अदृश्य होना, शुक, गज व मण्डूक द्वारा देवों को अग्नि के निवास स्थान का कथन ), हरिवंश १.२६.४१( पुरूरवा द्वारा गन्धर्वों से अग्नि की प्राप्ति, त्रेताग्नि बनने का वृत्तान्त ), १.३३.३८( चित्रभानु अग्नि द्वारा कार्तवीर्य अर्जुन से भिक्षा ), २.१२२.३०( जातवेदस अग्नि गण, स्वधाकार अग्नि गण, वषट्कार अग्नि गण का शोणितपर में कृष्ण से युद्ध ), २.१२२.१८( शोणितपर में गरुड द्वारा आहवनीय अग्नि की शान्ति ), ३.९( प्रलय में अग्नि कारण, नारायण का रूप ), ३.२९.५( मन्त्रों से पुष्ट होने पर अग्नि की ब्रह्मदण्ड संज्ञा ), ३.६२(शाण्डिल्या- पुत्र हव्यवाहन अग्नि की महिमा का वर्णन, बलि सेना की पराजय, बृहस्पति द्वारा स्तुति ), महाभारत वन ३१३.६६( अग्नि के सर्वभूतों में अतिथि होने का उल्लेख, यक्ष - युधिष्ठिर संवाद ), शान्ति २६८.२६/२६०.२६(अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन), आश्वमेधिक ४२.११( त्वक्, घ्राण, श्रोत्र, चक्षु, रसना, वाक्, मन, बुद्धि नामक ८ अग्नियों का कथन ), योगवासिष्ठ १.१६.१४( चिन्ता ज्वाला, चित्त अग्नि ), ६.२.७५( महाकल्पान्त अग्निसंज्ञक सर्ग ), वा.रामायण १.१७.१३( पावक – सुत रूप में  नील वानर का उल्लेख ), ६.४३.११( अग्निकेतु : रावण - सेनानी, राम से युद्ध ), लक्ष्मीनारायण १.३३.४२( श्रीहरि द्वारा पांच कामाग्नियों की सृष्टि ), १.२०६.५( अग्नि के सर्वभक्षित्व दोष का परिहारक अग्नि तीर्थ ), १.२११( अग्नि वंश का वर्णन ), १.३०१.४( सृष्टि के आरम्भ में प्रजा द्वारा अग्नि का स्वागत न होना, अग्नि द्वारा क्षुधा पीडित होकर लोकालोक पर्वत का भक्षण करना व हिरण्य को पुत्र रूप में उत्पन्न करना, कृष्ण - पूजा से मुख में प्रतिष्ठित होना ), १.४६९( सप्तर्षि - पत्नियों का अदृश्य रूप में भोग करने पर अङ्गिरा द्वारा नपुंसक आदि होने का शाप ), १.४८१( शिव वीर्य से लिप्त अग्नि के स्पर्श से सप्तर्षि - पत्नियों का गर्भवती होना ), १.४९५( विश्वामित्र द्वारा शुन: मांस पकाने पर अग्नि के अदृश्य होने की कथा ), १.५३७( समुद्र में वडवा अग्नि क्षेप तीर्थ की महिमा, अग्नि के समुद्र की योनि होने का उल्लेख ), २.१५७.३६( आहवनीय आदि अग्नियों के अङ्गन्यास में स्थान ), २.२१२.२९( अग्नि का स्वरूप व स्तुति ), ३.३२.२( अनल भक्षक असुर अनलाद का वर्णन : अग्नि के वंश का वर्णन ), ३.४१.८( चन्द्रमा पिता, रवि पितामह व अग्नि के प्रपितामह पद का उल्लेख ), ३.४५.१३( तैर्थिकों द्वारा अग्निलोक की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.९१.१२७( कृशाङ्ग चाण्डाल द्वारा द्विज बनने के लिए तप करना व कृशानु पद प्राप्त करना ), ४.८२( अग्निरात द्वारा शिष्य नन्दिभिल्ल को नागविक्रम राजा से युद्ध न करने का परामर्श ), कथासरित् ३.३.९७( ब्राह्मण रूपी अग्नि द्वारा गुहचन्द्र को स्त्री वशीकरण हेतु अग्नि उपासना मन्त्र दान की कथा ), ८.५.१२५( अग्निक नामक सेनापति की कन्या के हरण का प्रसंग ), ८.७.३४( अग्नि का प्रकम्पन दानव से युद्ध ), ९.६.३५१( कर्कोटक  नाग द्वारा राजा नल को अग्निशौच नामक वस्त्र प्रदान करना, अग्निशौच के महत्त्व का कथन ), १०.५.९( जल कुम्भ में अग्नि धारण का प्रयास ), १२.९.६( अग्निस्वामी : ब्राह्मण, मन्दारवती - पिता, तीन तरुण ब्राह्मणों  की कथा ) द्र. कालाग्नि, जमदग्नि, दक्षिणाग्नि, अनल, वह्नि, अन्वाहार्यपचन, पञ्चाग्नि, पवमान, पावक, यज्ञ, शुचि, होम agniRemarks on Agni

 

 

 
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