Agnyaadheya - Angirasa
Puraanic contexts of words like Agha/sin, Aghora, Anka/number, Anga/body-part, Angada, Angaaraka, Angirasa etc. are described on this page.अग्न्याधेय महाभारत शान्ति १६५.२३( अग्न्याधेय की प्राजापत्य अश्व दक्षिणा का उल्लेख )
अग्र भविष्य ३.४.२२( अग्रभुक् : सन्त, पूर्व जन्म में वरेण्य ), कथासरित् १२.१०.४८( अग्रदत्त वणिक् द्वारा स्व - कन्या वसुदत्ता का समुद्रदत्त से विवाह, वसुदत्ता के जार कर्म की कथा ) द्र. प्रत्यग्र agra
अघ गर्ग २.६( अघासुर : शङ्खासुर - पुत्र, अष्टावक्र के शाप से सर्प बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार ), भविष्य ३.४.१८( संज्ञा विवाह प्रसंग में अघासुर का अर्यमा से युद्ध ), भागवत १०.१२( कृष्ण द्वारा अघासुर का उद्धार ), लक्ष्मीनारायण ३.१६७.४६( अघ नाश हेतु विभिन्न देवों का आह्वान ), कृष्णोपनिषद १५( महाव्याधि का रूप )द्र. अनघ, पाप, मघा, माघ agha
अघमर्षण अग्नि ७२.३६( अघमर्षण कर्म विधि ), २१५.४१( अघमर्षण सूक्त ऋतं च इति के ऋषि, देवता व छन्द का कथन ), कूर्म २.१८.७२( अघमर्षण स्नान की महिमा ), नारद १.६६.६१( अघमर्षण विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.३२.११७( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), भागवत ६.४.२१( अघमर्षण तीर्थ में दक्ष का तप ), मत्स्य १४५.११२( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), १९८.१२( विश्वामित्र गोत्र/प्रवर के एक ऋषि ), स्कन्द ४.१.३५.१४७( अघमर्षण मन्त्र का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.९.६४( अघमर्षण खण्ड में तुङ्गभद्रा तापसी द्वारा राक्षसों के वध हेतु लक्ष्मी की पुत्री रूप में प्राप्ति ) aghamarshana
अघासुर गर्ग २.६(शङ्खासुर-पुत्र, अष्टावक्र के शाप से सर्प बनना, कृष्ण द्वारा उद्धार), भविष्य ३.४.१८(अर्यमा से युद्ध : संज्ञा विवाह प्रसंग), भागवत १०.१२(कृष्ण द्वारा उद्धार)
अघोर अग्नि ३०४.२५( अघोर शिव का स्वरूप : अष्टभुज, असित ), ३२१( अघोर अस्त्र जप से शान्ति का वर्णन ), ३२३.३८( अघोरास्त्र मन्त्र का कथन ), ३२४( कल्पाघोर रुद्र शान्ति का वर्णन ), गरुड १.२१.५( अघोरा : तत्पnरुष की ८ कलाओं में से एक ), नारद १.९१.७०( अघोर शिव की ८ कलाओं का कथन ), १.९१.१७९( अघोर शिव मन्त्र विधान ), लिङ्ग २.१४.८( धर्म आदि अष्ट अङ्गों से युक्त शिव का नाम ), २.१४.१३( अघोर के शरीर में चक्षु की भांति होने का उल्लेख ), २.१४.१८( अघोर के पादेन्द्रिय रूप होने का उल्लेख ), २.१४.२३( अघोर के रूप तन्मात्रात्मक, जातवेदस जनक होने का उल्लेख ), २.२६( अघोर शिव के अर्चन की विधि ), २.४९( अघोर शिव का माहात्म्य, स्वरूप ), वायु २३.२७( ब्रह्मा द्वारा घोर/अघोर शिव का ध्यान ), २३.७६( कल्प विशेष में शिव के घोर/अघोर रूप का कथन ), शिव ३.१.२२( शिव कल्प में ब्रह्मा के समक्ष अघोर शिव का प्राकट्य ), ६.३.२८( अघोर शिव की ८ कलाओं की मकार में स्थिति ), ६.६.७२( अघोर की ८ कलाओं का हृदय, कण्ठ आदि में न्यास ), ६.११.१७( अघोर : शिव का हृदय रूप ), ६.१४.४२( अहंकार, चक्षु, पाद, रूप व पावक की अघोर ब्रह्म द्वारा व्याप्ति ), ६.१६.५९( अघोर शिव से विद्या कला की उत्पत्ति ), ७.२.३.८( शिव की धर्म आदि अष्ट अङ्गों से युक्त मूर्ति की महिमा, अघोर मूर्ति में चरण, चक्षु आदि की स्थिति ), ७.२.८.२७( शिव द्वारा सूर्य रूपी घोर रूप के दर्शन देना, देवों द्वारा सौम्य अघोर रूप की स्तुति ), ७.२.२२.३४( अघोर की ८ कलाओं का ८ अङ्गों में न्यास ), स्कन्द १.२.२१.१४७( इन्द्र द्वारा अघोर मन्त्रास्त्र से जम्भ का वध ), ३.३.१२.१०( अघोर शिव से दक्षिण दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), ४.२.९७.८६( अघोरेश शिव का संक्षिप्त माहात्म्य : वाजिमेध फल की प्राप्ति ), ७.१.९२( अघोर रुद्र का माहात्म्य ) aghora
अङ्क पद्म ६.२२४.७४( वैष्णव द्वारा बाहुमूल आदि पर चक्रादि चिह्नों के अङ्कन का कथन ), भविष्य २.१.८.३७( देवताओं के लिए अङ्कों का निर्धारण )द्र. मृगाङ्क, शशांक anka
अङ्कपाद स्कन्द ५.१.२७( उज्जयिनी में कृष्ण के चरण चिह्नों का स्थान, कृष्ण द्वारा सान्दीपनि - पुत्र की यम से प्राप्ति की कथा ), ५.२.३९.२६( अङ्कपाद के आगे स्थित लिङ्ग से अक्रूरत्व प्राप्ति का उल्लेख ) ankapaada
अङ्कुर गणेश १.५७.२७(मुद्गल द्वारा कैवर्त्त को यष्टि के अङ्कुरित होने तक गणेश नाम जप का निर्देश), योगवासिष्ठ ४.३३.३६( अहंकार अङ्कुर, मन हल, आत्मा क्षेत्र ), लक्ष्मीनारायण १.५२.९६( अङ्कुर उत्पन्न न करने वाले धान्य की अज संज्ञा का उल्लेख ), कथासरित् ८.४.७५( चक्रवाल राजा द्वारा अङ्कुरी राजा का वध ) ankuura/ ankoora/ ankur
अङ्कुश गणेश २.९५.५९(गणेश द्वारा अङ्कुश से वृक दैत्य का वध), ब्रह्माण्ड ३.४.१५.२०( विश्वकर्मा द्वारा ललिता को अङ्कुश भेंट ), ३.४.४२.११( महाङ्कुशा मुद्रा का स्वरूप ), योगवासिष्ठ १.२१.१०( मनुष्य रूपी हाथी को अज्ञान रूपी निद्रा से जगाने के लिए शम रूपी अङ्कुश ) द्र आयुध amkusha/ankusha
अङ्कूर स्कन्द ५.३.१६८.१८( अङ्कूरेश्वर तीर्थ का माहात्म्य, अङ्कूर नामक कुम्भ - पुत्र व कुम्भकर्ण - पौत्र द्वारा तप करके अमरता वर की प्राप्ति ) amkuura/ankuura
अङ्कोल स्कन्द ५.३.१५०.४५( अङ्कोल मूल में पिण्ड दान से १२ वर्षों तक पितरों की तृप्ति होने का कथन ) ankola
अङ्ग गरुड १.२१.७( अङ्गना : ईशान की कलाओं में से एक ), गर्ग ७.१५.१( अङ्ग देश पर प्रद्युम्न की विजय ), देवीभागवत १०.९.१( चाक्षुष मनु - पिता ), नारद १.५६.७४४( अङ्ग देश के कूर्म का पाणिमण्डल होने का उल्लेख ), पद्म २.३०( अत्रि - पुत्र, सुनीथा से परिणय, वेन पुत्र ), ५.६७.३९( अङ्गसेना : रिपुताप - पत्नी ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.१०८( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), भागवत ४.१३.१७( उल्मुक व पुष्करिणी - पुत्र, सुनीथा - पति, पुत्रेष्टि द्वारा वेन पुत्र की प्राप्ति ), ६.४.४६( अङ्गों के क्रतु होने का उल्लेख ), मत्स्य ४.४४( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), १०.३( स्वायम्भnव मनु - वंशज ), ४८.७७( सुदेष्णा व बलि का क्षेत्रज पुत्र ), वराह ३६.५, वायु ४८.१५( अङ्ग द्वीप का वर्णन ), ६२.९२/२.१.९१( ऊरु व आग्नेयी - पुत्र ), विष्णु १.१३.६( कुरु व आग्नेयी - पुत्र, सुनीथा - पति ), विष्णुधर्मोत्तर २.१६५( अङ्ग विद्या ), ३.२४( अभिनय में अङ्गों की स्थिति ), ३.१२१.९( अङ्ग देशों में गजेद्रमोक्षण देव की पूजा का निर्देश ),स्कन्द ४.२.८८.६३( सती के रथ में शिक्षा, कल्प आदि अङ्गों द्वारा रक्षकों का कार्य ), महाभारत कर्ण ४५.४०( अङ्ग देश के निवासियों के दोष ), वा.रामायण १.९( राजा रोमपाद द्वारा शासित अङ्गदेश में ऋष्यशृङ्ग मुनि के आगमन से वृष्टि ), लक्ष्मीनारायण २.१०९.९९( शिव द्वारा अङ्ग - शिक्षाङ्ग देश के राजा शृङ्गशेक का वध ), २.११०.७३( शिव का अङ्ग - शिक्षाङ्ग देश का राजा बनना ), २.१६७.४२( अङ्ग राजा द्वारा विषय ऋषि के साथ यज्ञ में आने का उल्लेख ), २.१९१.८३( अनङ्ग/कर्दम - पुत्र, सुनीथा - पति, वेन प्रसंग ), २.१९२( अङ्गराज : रङ्गरजा - पति अङ्गराजा द्वारा कृष्ण का स्वागत करना ), कथासरित् १२.४.१०९( कमलाकर द्वारा अङ्गराज को परास्त करना ), १२.१५.३, १२.१९.४( अङ्ग देश के राजा यश:केतु की कथा ), १२.१९.१४०, वास्तुसूत्रोपनिषद १.१०(शैल से अंगराग प्रसरण का उल्लेख), ६.१०(४ रूपाङ्गों का कथन), द्र. वंश ध्रुव, अनङ्ग, कामाङ्गी, चक्रांका, चित्राङ्ग, न्यास वज्राङ्ग, वराङ्गी, वाराङ्गना, शरीर, शुभाङ्गी, शुभ्राङ्ग, समङ्ग, हर्यङ्ग, हेमाङ्ग anga
अङ्गद पद्म ५.५०( अङ्गद द्वारा अश्वमेध - अनुगामी शत्रुघ्नÀ का दूत बनकर सुरथ राजा के पास जाना ), ब्रह्माण्ड २.३.७.२१९( वालि व तारा - पुत्र, ध्रुव - पिता ), ३.४.३५.९२( अङ्गदा : चन्द्रमा की १६ कलाओं में से एक ), भविष्य ३.३.३२.६८( महीराज - सेनानी, रुद्रवर्मा से युद्ध ), भागवत ९.१०.४४( राम के वन से अयोध्या आगमन पर अङ्गद द्वारा राम की खड्ग का वन ), ९.११.१२( लक्ष्मण - पुत्र ), वायु ९६.२४७/२.३४.२४७( बृहती व सुनय के पुत्रों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३४१.१९५( अङ्गद दान से पृथिवी पर राजा होने का उल्लेख ), स्कन्द ३.१.४९.२८( अङ्गद द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ३.१.५१.२६(अङ्गद का मध्य में स्मरण), वा.रामायण ४.६५( अङ्गद की गमन शक्ति का कथन ), ६.१७.३८( अङ्गद द्वारा विभीषण - शरणागति विषयक विचार व्यक्त करना ), ६.२४.१४( अङ्गद की नील के साथ वानर सेना के उरोदेश में स्थिति ), ६.२६.१७( सारण द्वारा रावण को अङ्गद का परिचय ), ६.३७.२७( अङ्गद का लङ्का के दक्षिण द्वार पर महापार्श्व व महोदर से युद्ध ), ६.६९.८१( अङ्गद द्वारा नरान्तक का वध ), ६.७६( अङ्गद द्वारा कम्पन व प्रजङ्घ का वध ), ६.९८( अङ्गद द्वारा महापार्श्व का वध ), ७.१०२( लक्ष्मण - पुत्र, अङ्गदीया पुरी का राजा ) द्र. कनकाङ्गदा, चन्द्राङ्गद, चित्राङ्गद, धर्माङ्गद, बर्हिषाङ्गद, वज्राङ्गद, रुक्माङ्गद, स्वर्णाङ्गद, हेमाङ्गद angada
अङ्गार पद्म ६.६.९०( अङ्गारपर्ण : जालन्धर - सेनानी, अश्विनौ से युद्ध ), ब्रह्माण्ड ४.३३.६१( अङ्गार पातन : एक नरक का नाम ), मत्स्य २२.३५( अङ्गार वाहिका : नदी, श्राद्ध हेतु प्रशस्त तीर्थ ), वायु ४३.२६( अङ्गारवाहिनी : भद्राश्व वर्ष की एक नदी ), स्कन्द ४.२.८४.७४( अङ्गार तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२३१.१६( रेवा - सागर सङ्गम पर ४ अङ्गारेश्वर तीर्थों की स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.३२.८७( अङ्गारसेतु : सेतु - पुत्र, गान्धार - पिता, ययाति के वंशज, मान्धाता से युद्ध व मृत्यु ), कथासरित् ८.१.१७( अङ्गारप्रभ : चन्द्रप्रभ - पिता ) द्र. लोहाङ्गार, शिलाङ्गारखानि angaara
अङ्गारक नारद १.६९.७२( अङ्गारक पूजा विधि, अङ्गारक न्यास व व्यूह ), पद्म १.२४( अङ्गारक ग्रह : वीरभद्र का प्रतिष्ठित रूप, अङ्गारक पूजा व दर्शन से विरोचन को रूप प्राप्ति ), १.८१( अङ्गारक की शिव से उत्पत्ति, शुक्र का रूप, पूजा विधि ), ब्रह्माण्ड १.२.१०.७८( शर्व व विकेशी - पुत्र ), १.२.२४.९१( विकेशी व अग्नि - पुत्र ), २.३.३.७०( सुरभि व कश्यप - पुत्र, एकादश रुद्रों में से एक ), भविष्य ४.३१( अङ्गारक की शिव से उत्पत्ति, निरुक्ति, अङ्गारक व्रत, अङ्ग न्यास ), मत्स्य ७२( अङ्गारक व्रत की विधि, विरोचन द्वारा रूप प्राप्ति, वीरभद्र की उत्पत्ति, अङ्गारक बनना ), वायु २७.५१, स्कन्द ४.२.९७.६७( अङ्गारक तीर्थ का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.१.३७.४०( अङ्गारक की शिव के ललाट के स्वेद से उत्पत्ति, अङ्गारकेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.४३( अङ्गारकेश्वर का माहात्म्य, शिव गात्र से अङ्गारक की उत्पत्ति, अङ्गारक द्वारा महाकालवन में लिङ्ग की पूजा ), ५.३.११५( अङ्गारक तीर्थ का माहात्म्य, अङ्गारक द्वारा तप से ग्रह पद प्राप्ति ), ५.३.१४८.१( नर्मदा तट पर अङ्गारक तीर्थ के माहात्म्य का वर्णन ), ७.१.४५( अङ्गारकेश्वर का माहात्म्य, भूमि पर पतित शिव के क्रोध से अङ्गारक की उत्पत्ति, ग्रहत्व प्राप्ति ), वा.रामायण ६.१०२.३५( राम - रावण युद्ध के समय अङ्गारक ग्रह की स्थिति का कथन ), लक्ष्मीनारायण १.५७२, कथासरित् २.३.३७( असुर, अङ्गारकावती - पिता ), १६.२.२७( अङ्गारका - पिता, शूकर रूप, राजा चण्डमहासेन द्वारा वध ) angaaraka द्र. कुज, मङ्गल, रक्षाङ्गारक
अङ्गारका स्कन्द ३.१.३९.५५( अङ्गारका राक्षसी द्वारा श्वेत मुनि के तप में विघ्न, मुक्त होकर घृताची बनना ), वा.रामायण ४.४१.२६( अङ्गारका का दक्षिण समुद्र में वास, छाया द्वारा प्राणियों को ग्रहण करके खाना - अङ्गारकेति विख्याता छायामाक्षिप्य भोजिनी।। ), कथासरित् १६.२.२८( अङ्गारक राक्षस - पुत्री, राजा चण्डमहासेन द्वारा प्राप्ति ) angaarakaa
अङ्गिरस नारद १.११९.५५( माघ शुक्ल अङ्गिरस दशमी पूजा : १० अङ्गिरस देवों के नाम - आत्मा ह्यायुर्मनो दक्षो मदः प्राणस्तथैव च ॥ बर्हिष्मांश्च गविष्ठश्च दत्तः सत्यश्च ते दश ॥ ), ब्रह्म २.७४( अङ्गिरा व आत्रेयी - पुत्र, अङ्गिरा द्वारा पत्नी को परुष वचन भाषण, पत्नी का परुष्णी नदी बनना - भर्तारं प्लावयन्ती सा दधाराम्बुमयं वपुः।परुष्णी चेति विख्याता गङ्गया संगता नदी।। ), २.८५( आदित्यों से प्राप्त भूमि के दोष देखकर आदित्यों से कपिला गौ के बदले भूमि का विनिमय करना ), २.८८( ब्रह्मा से उत्पन्न १० अङ्गिरस गण : माता के शाप से तप में सिद्धि न मिलने पर अगस्त्य के परामर्श से गङ्गा पर तप - ब्रह्मण निर्मिताः पूर्वं ये गताः सुखमेधते। ये गताः पुनरन्वेष्टुं च त्वाङ्गिरसोऽभवन्।। ), ब्रह्माण्ड १.२.९.५५( स्मृति – पति - मरीचये तु संभूतिं स्मृतिमङ्गिरसे ददौ । ), भागवत १०.३४.१३( सुदर्शन विद्याधर द्वारा उपहास पर सर्प होने का शाप - ऋषीन्विरूपाङ्गिरसः प्राहसं रूपदर्पितः।तैरिमां प्रापितो योनिं प्रलब्धैः स्वेन पाप्मना ।। ), मत्स्य १३३.६२( अङ्गिरा - पुत्र बृहस्पति का नाम? : दण्ड हाथ में लेकर रुद्र के रथ चक्र की रक्षा - भार्गवाङ्गिरसौ देवौ दण्डहस्तौ रविप्रभौ। रथचक्रे तु रक्षेते रुद्रस्य प्रियकाङिक्षणौ।। ), वायु १०.१०१( अङ्गिरस की ब्रह्मा के शिर से उत्पत्ति ), ६५.९७( अग्नि - पुत्र, अथर्वण उपनाम, सुरूपा, स्वराट् व पथ्या भार्याओं से वंश का वर्णन - श्रृणुताङ्गिरसो वंशमग्नेः पुत्रस्य धीमतः। यस्यान्ववाये सम्भूता भारद्वाजाः सगौतमाः। ), ६५.१०४/२.४.१०४( अङ्गिरस देवों के बृहस्पति से निम्न होने का कथन, १० अङ्गिरसों के नाम - बृहस्पतेर्यवीयांसो देवा ह्यङ्गिरसः स्मृताः ।। ), १०१.३०/२.३९.३०( अङ्गिरस आदि की भुव: लोक में स्थिति का उल्लेख - आदित्या ऋभवो विश्वे साध्याश्च पितरस्तथा। ऋषयोऽङ्गिरसश्चैव भुवर्ल्लोकं समाश्रिताः ।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.५६.१२( अङ्गिरसों में आयु नामक अङ्गिरस की श्रेष्ठता - आदित्यानां तथा विष्णुरायुरङ्गिरसां तथा ।। ), १.११२( अङ्गिरा व सुरूपा - पुत्र, १० नाम, वंश वर्णन - आत्मा ह्यायुर्मनुर्दक्षो मदः प्राणस्तथैव च ।।हविष्मांश्चागविष्ठश्च ऋतः सत्यश्च ते दश ।। ), ३.१७७( १० अङ्गिरसों के नाम, अङ्गिरस व्रत - आत्मा ह्यायुर्मनो दक्षो मदः प्राणस्तथैव च ।। हविष्मांश्च गतीष्टश्च ऋतः सत्यश्च ते दश ।।), स्कन्द १.२.२९.१००( अङ्गिरस - भार्या शिवा के अग्नि के साथ रमण की कथा - ततस्त्वंगिरसो भार्या शिवानामेति शोभना॥ तस्या रूपं समाधाय पावकं प्राप्य साब्रवीत्॥), ४.१.१७.३४( अङ्गिरा - पुत्र अङ्गिरस द्वारा शिव स्तुति से जीव संज्ञा धारण करना - प्रजापतेरंगिरसस्तेष्वभूद्देवसत्तमः ।। सुतश्चांगिरसो नाम बुद्ध्या विबुधसत्तमः ।। ), ५.३.११२( अङ्गिरस तीर्थ : अङ्गिरा द्वारा तप से बृहस्पति पुत्र प्राप्ति का स्थान ), ५.३.१९४.५४( नारायण व श्री के विवाह यज्ञ में अङ्गिरस व मरीचि ऋषि - द्वय के उद्गाता बनने का उल्लेख - औद्गात्रमत्र्यङ्गिरसौ मरीचिश्च चकार ह ॥ ), ७.४.१४.४८(अङ्गिरस के लिए चन्द्रभागा नदी - चंद्रभागा चांगिरसे पुलहाय कुशावती ॥ पावनार्थं जांबवती जगाम क्रतवे तथा ॥), महाभारत अनुशासन ३४.१७( भृगवस्तालजङ्घांश्च नीपानाङ्गिरसोऽजयन्। भरद्वाजो वैतहव्यानैलांश्च भरतर्षभ।। ), १०६.७१( अङ्गिरस/ अङ्गिरा ऋषि द्वारा प्रवर्तित उपवास विधि का वर्णन-ब्रह्मक्षत्रे त्रिरात्रं तु विहितं कुरुनन्दन। द्विस्त्रिरात्रमथैकाहं निर्दिष्टं पुरुषर्षभ।।.. ), लक्ष्मीनारायण १.२७५.३८( अङ्गिरस दशमी पूजा : १० अङ्गिरस देवों के नाम - आत्मा ह्यायुर्मनो दक्षो मदः प्राणो गविष्ठकः । दत्तः सत्यश्च वर्हिष्मान् दशाऽर्चयेत् सुवस्तुभिः । ) द्र. आङ्गिरस angirasa
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