Achala - Ajatunga
Puraanic contexts of words like Achchaawaaka, Aja, Ajagara etc. are described on this page.अचल नारद १.११६.६०( अचला व्रत : माघ शुक्ल सप्तमी ), ब्रह्माण्ड १.२.७.११( पर्वत/अचल की उत्पत्ति व शब्दार्थ ), ३.४.२०.८२( दण्डनाथा देवी के रथ के रक्षक १० भैरवों में से एक ), वायु ६१.८४( प्रत्यूष ऋषि - पुत्र ), स्कन्द ६.१३( चमत्कार नृप द्वारा स्थापित अचलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ७.३.४( वसिष्ठ द्वारा अर्बुदाचल पर स्थापित अचलेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), लक्ष्मीनारायण ३.७.१९( चलवर्मा राजा द्वारा चल संसार में अचला भक्ति प्राप्त करना ) achala
अच्छावाक् वायु २९.२८( भुव स्थान की अग्नि ), स्कन्द ३.१.२३.२५(यज्ञ में अष्टम वसु के अच्छावाक् ऋत्विज बनने का उल्लेख), ६.५.८( त्रिशङ्कु के यज्ञ में भृगु के अच्छावाक् ऋत्विज होने का उल्लेख ), ६.१८०.३३( ब्रह्मा के अग्निष्टोम यज्ञ में मरीचि ऋषि के अच्छावाक् होने का उल्लेख ), ७.१.२३.९८( प्रभास क्षेत्र में सोम/चन्द्रमा के यज्ञ में शाकल्य के अच्छावाक् होने का उल्लेख ), हरिवंश ३.१०.८( श्रीहरि के मन और ऊरु से अच्छावाक् व नेष्टा की उत्पत्ति का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण ३.३५.११६(राजसूय में अच्छावाक् ऋत्विज को यवपूर्ण शकट की दक्षिणा का निर्देश ), द्र. ऋत्विज(१), ऋत्विज(२) achchhaavaak
अच्छोदा देवीभागवत ७.३०( अच्छोद तीर्थ में शिवधारिणी देवी का वास ), नारद १.१.२५( अच्छोदा तट पर रोमहर्षण मुनि का वास, रोमहर्षण द्वारा मुनियों को नारद पुराण का वाचन ), पद्म १.९( अग्निष्वात्त पितरों की कन्या अच्छोदा द्वारा तप, अमावसु पितर पर आसक्ति, अमावास्या बनना, द्वापर में वसु - कन्या सत्यवती बनना ), ३.२२( अच्छोदा सरोवर तट पर अप्सराओं द्वारा ब्रह्मचारी को लुभाने व शाप - प्रतिशाप की कथा ), ६.१२८( अच्छोदा सरोवर तट पर अग्निप नामक मुनि - पुत्र का अप्सराओं को पिशाची होने का शाप - प्रतिशाप ), ६.१३३.२९( अच्छोदा में विष्णुकाम नामक तीर्थ ), ब्रह्माण्ड २.३.१०.५३(बर्हिषद पितरों की मानसी कन्या), २.३.१०.५६( अच्छोदा की अमावसु पर आसक्ति की कथा ), २.३.१३.७८( अच्छोदा सर ), मत्स्य १४( अमावसु पर आसक्ति से अच्छोदा का भ्रष्ट होना, सत्यवती व अष्टका रूप में जन्म ), वराह ८८.१(क्रौञ्च द्वीप में अच्छोदक पर्वत का अपर नाम अन्धकार), वायु ४७.५( अच्छोदा सरोवर की चन्द्रप्रभ गिरि के पाद में स्थिति, अच्छोदा नदी तट पर चैत्ररथ वन की स्थिति ), ७३.२/xx अग्निष्वात्त पितर - कन्या अच्छोदा की अमावसु पितर पर आसक्ति से अच्छोदा के पतन की कथा ), स्कन्द १.५९.६( गया क्षेत्र में अच्छोदा नदी की स्थिति ), ४.१.१२.६४( अच्छोदा तट पर शुचिष्मान् मुनि के पुत्र का शिशुमार द्वारा हरण का कथन ), ५.३.१९८.८६( अच्छोदा तीर्थ में उमा की शक्तिदायिनी नाम से स्थिति का उल्लेख ), हरिवंश १.१८( अच्छोदा के मनुष्य योनि में सत्यवती बनने का प्रसंग ), १.१८.२९( अग्निष्वात्त पितरों की कन्या अच्छोदा द्वारा अमावसु को पिता मानना ) achchhodaa
अच्युत अग्नि ३.५( माहेन्द्र तीर्थ में विष्णु का अच्युत नाम ), ४८.१०( अच्युति की मूर्ति के आयुधों का कथन ), गरुड ३.२९.५६(एकैकभक्ष्य ग्रहण काल में अच्युत के स्मरण का निर्देश), ब्रह्मवैवर्त्त १.१९.३४( अच्युत कृष्ण से ईशान दिशा की रक्षा की प्रार्थना ), ब्रह्माण्ड १.२.३६.७५( लेखा नामक देवगणों में से एक ), भागवत १०.६.२२( अच्युत से कटि की रक्षा की प्रार्थना ), मत्स्य २४५.४९( बलि द्वारा अच्युत पर आक्षेप लगाने के कारण प्रह्लाद द्वारा राज्य से च्युत होने का शाप ), विष्णु १.१९.६३( समुद्र में पतन पर प्रह्लाद द्वारा अच्युत की स्तुति ), स्कन्द ४.१.१३.१९(अच्युत के वामाङ्ग होने का उल्लेख), ४.१.१९.१०९( मरीचि ऋषि द्वारा ध्रुव को अच्युत की आराधना का निर्देश ), ४.१.२०.१०( अच्युत शब्द की निरुक्ति ), ४.२.६१.२२९( अच्युत की मूर्ति के लक्षण ), लक्ष्मीनारायण १.२५४.७( श्रावण कृष्ण एकादशी को अच्युत की पूजा ), १.२६५.१३( अच्युत की शक्ति विजया का उल्लेख ), ३.१०६.१६( साधुओं के अच्युत गोत्र होने का उल्लेख ) achyuta
अज गरुड ३.९.१(अज देवों का कथन - अजानजस्वरूपं च ब्रूहि कृष्ण महामते ।), नारद १.५०.६१( अज, अवि द्वारा गान्धार स्वर के वादन का उल्लेख - षङ्जं मयूरो वदति गावो रंभंति चर्षभम् । अजाविके तु गांधारं क्रौंचो वदति मध्यमम् ।। ), १.६६.११२( अजेश की शक्ति द्राविणी का उल्लेख - कूर्मेशः कमठीयुक्तो भूतमात्रैकनेत्रकः। लम्बोदर्या चतुर्वक्त्रो ह्यजेशो द्राविणीयुतः ॥), १.९०.७१( लकुच से अज सिद्धि का उल्लेख - जंबीरैर्महिषावाप्त्यै लकुचैरजसिद्धये । दाडिमैर्निधिसंसिद्ध्यै मधुकैर्गानसिद्धये ।।), ब्रह्माण्ड २.३.७.८५( अज पिशाच द्वारा स्वकन्या जन्तुधना का राक्षस से विवाह - आससाद पिशाचौ वै त्वजः शण्ढश्च तावुभौ । कपिपुत्रौ महावीर्यौं कूष्माण्डौ पूर्वजावुभौ ॥ ), २.३.१०.४८( ब्रह्मा द्वारा स्कन्द को अज भेंट करना - अजः स्वयंभुवा दत्तो मेषो दत्तश्च शंभुना । मायाविहरणे विप्र गिरौ क्रौञ्चे निपातिते ॥ ), ३.४.१.६०( सुधर्मा देवगण में से एक - वर्णस्तथाथगर्विश्च भुरण्यो व्रजनोऽमितः । अमितो द्रवकेतुश्च जंभोऽथाजस्तु शक्रकः ॥ ), भविष्य ३.४.२५.१९( अज/ब्रह्माण्ड के विभिन्न अङ्गों से विभिन्न देवों की सृष्टि का कथन - अजस्य याम्याज्जनितोऽहमादौ विष्णुर्महाकल्पकरोऽधिकारी ।), भागवत ५.१५.५( प्रतिहर्त्ता व स्तुति – पुत्र - प्रतिहर्तुः स्तुत्यामजभूमानावजनिषाताम्। ), ६.६.१७( एकादश रुद्रों में से एक ), ९.१०.१( रघु - पुत्र, दशरथ – पिता - खट्वांगात दीर्घबाहुश्च रघुस्तस्मात् पृथुश्रवाः । अजस्ततो महाराजः तस्मात् दशरथोऽभवत् ॥ ), ९.१३.२२( ऊर्ध्वकेतु - पुत्र, पुरुजित् - पिता ), १०.६.२२( अज विष्णु से पादों की रक्षा की प्रार्थना - अव्यादजोऽङ्घ्रि मणिमांस्तव जान्वथोरू यज्ञोऽच्युतः कटितटं जठरं हयास्यः । ), मत्स्य १२.४८( अजक : दिलीप - पुत्र, दीर्घबाहु – पिता - रघोरभूद् दिलीपस्तु दिलीपादजकस्तथा।। दीर्घबाहुरजाज्जातश्चाजपालस्ततो नृपः।), १२६.५२( चन्द्रमा के रथ के १० अश्वों में से एक ), वायु २०.२८( अज रूपी पुरुष की अजारूपी विश्वरूपा प्रकृति में आसक्ति - विरक्ति का मन्त्र : अजामेतां लोहितशुक्लकृष्णां बह्वीः प्रजाः सृजमानां स्वरूपाम्। अजो ह्येको जुषमाणोऽनुशेते जहात्येनां भुक्तभोगामाजोऽन्यः।… ), ६२.९/२.१.९( तुषिता व क्रतु के देवगण पुत्रों में से एक - धैवस्यशोऽथ वामान्यो गोपा देवायतस्तथा ।अजश्च भगवान् देवो दुरोणश्च महाबलः ॥ ), ६२.३४/२.१.३४( उत्तम मनु के पुत्रों में से एक - अजश्च परशुश्चैव दिव्यो दिव्यौषधिर्न्नयः । देवानुजश्चाप्रतिमो महोत्साहौशिजस्तथा ॥ ), ६६.४३/२.५.४३( रात्रि के १५ मुहूर्तों में से एक - अजास्तथाहिर्बुध्न्यश्च पूषा हि यमदेवताः। आग्नेयश्चापि विज्ञेयः प्राजापत्यस्तथैव च ।। ), ६८.११/२.७.११( दनु के १०० पुत्रों में से एक - असुरश्च विरुपाक्षः सुपथोऽथ महासुरः। अजो हिरण्मयश्चैव शतमायुश्च शम्बरः ।। ), ९२.१०/२.३०.१०( समुद्र मन्थन से प्रकट धन्वन्तरि का नाम - सर्व्वसंसिद्धकायं तं दृष्ट्वा विष्टम्भितः स्थितः। अजस्त्वमिति होवाच तस्मादजस्तु सः स्मृतः ।। ), विष्णुधर्मोत्तर १.१९८( कपिशा - पुत्र अज पिशाच द्वारा स्वकन्या ब्रह्मधना का राक्षस से विवाह - अजः षण्डः पिशाचौ द्वौ भूपाल कपिशासुतौ ।। पिशाची ब्रह्मधानाख्या तत्राजस्य सुता मता ।। ), २.७९.१४(अश्व, अज के मुख शुद्ध होने तथा गौ के मुख से अशुद्ध होने का कथन - शुद्धं प्रसारितं पण्यं शुद्धे चाश्वाजयोर्मुखे ।।मुखवर्जं च गौः शुद्धा मार्जारः श्वा च नो शुचिः ।।), २.१२०.२५( पशुओं के हरण से अज योनि प्राप्ति का उल्लेख ), ३.१८.१( अजक्रान्त : २० मध्यमग्रामिकों में से एक ), शिव २.४.६.५( नारद विप्र के अजमेध के अज का लुप्त होना, स्कन्द की सहायता से अज की पुन: प्राप्ति, अज का अवध्य होना - अजमेधाध्वरं कर्तुमारंभं कृतवानहम् ।। सोऽजो गतो गृहान्मे हि त्रोटयित्वा स्वबंधनम् ।। ), स्कन्द ७.१.५९( रुद्र के छठे शीर्ष का नाम, ब्रह्मा को अज शीर्ष का दान, अन्धकासुर से युद्ध में अज शीर्ष से अजा देवी का प्राकट्य - सद्योजातादिपंचैव षष्ठं स्मृतमजेति च ॥ सप्तमं पिचुनामेति सप्तैवं वदनानि मे ॥), महाभारत शान्ति १४२.२६(अज, अश्व व क्षत्र में सादृश्य होने का उल्लेख - अजोऽश्वः क्षत्रमित्येतत्सदृशं ब्रह्मणा कृतम्।), ३४२.७४/३५२.९( अज की निरुक्ति - न हि जातो न जायेयं न जनिष्ये कदाचन। क्षेत्रज्ञः सर्वभूतानां तस्मादहमजं स्मृतः।। ), योगवासिष्ठ ३.३.८( अज में कारण का अभाव होने का कथन - सर्वासां भूतजातीनामेकोऽजः कारणं परम् । अजस्य कारणं नास्ति तेनासावेकदेहवान् ।।), लक्ष्मीनारायण १.५२.९६( अङ्कुर से रहित धान्य की अज संज्ञा का उल्लेख - 'अजेन तु यजेते'ति अजस्त्रैवार्षिको ब्रिहिः । न जायतेंऽकुरो यस्य तद्धान्यमज उच्यते ।। ), १.१३३.१०४( श्री हरि द्वारा वैकुण्ठ में जय - विजय द्वारपालों के स्थान पर अज - अजय को नियुक्त करना - वैकुंठे च तयोः स्थाने अजं अजयमेव च । नियुयोज हरिर्द्वारपालौ यावत्तदागमः ।। ), २.१५७.१०( अङ्गन्यास में अज व अवि का हस्त में न्यास ), ३.१०२.६६( अज की अग्नि से पूर्व उत्पत्ति ?- अजोऽग्निर्वरुणो मेषः सूर्योऽश्वः प्राग् व्यजायत । तत्तद्दानानि वै प्रेतमुक्तयेऽपि भवन्ति हि ।। ), ४.८०.१३( अजायन : नागविक्रम राजा के सर्वमेध यज्ञ में आहर्त्ता ऋत्विज ) aja
अजक ब्रह्माण्ड २.३.६६.३०( सुनह - पुत्र, बलाकाश्व - पिता, अमावसु/पुरूरवा वंश ), २.३.७४.१२६( विशाखयूप - पुत्र, नन्दिवर्धन - पिता, प्रद्योत वंश ), भागवत ९.१५.३( बलाक - पुत्र, कुश - पिता, पुरूरवा वंश ), मत्स्य १२.४८( दिलीप - पुत्र, दीर्घबाहु - पिता ), वायु ९१.६०/२.२९.५७( सुहोत्र - पुत्र, बलाकाश्व - पिता, अमावसु वंश ), ९९.३१३/२.३७.३०७( विशाखयूप - पुत्र, वर्तिवर्धन - पिता, प्रद्योत वंश ), विष्णु ४.७.८( सुमन्तु - पुत्र, बलाक - पिता, आयु/पुरूरवा वंश ) ajaka
अजगन्ध पद्म १.३१.१०७( शिव के अजगन्ध नाम का कारण : दक्ष के मृग रूप यज्ञ का वेधना तथा रुधिर से प्रसेचन), १.३३.१४९( राम द्वारा पुष्कर में मर्यादा पर्वत के निकट अजगन्ध शिव की स्तुति ), ब्रह्माण्ड २.३.७.८( अजगन्धा : २४ मौनेया अप्सराओं में से एक ), स्कन्द ५.१.२८.४५( अजागन्ध कुण्ड का संक्षिप्त माहात्म्य : पाप का नाश ), द्र. अजोगन्ध ajagandha
अजगर गर्ग ४.२३( अजगर द्वारा नन्द के पाद का ग्रहण, कृष्ण के पदाघात से दिव्य रूप की प्राप्ति, पूर्व जन्म में सुदर्शन विद्याधर ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६०.४३( नहुष का दुर्वासा के शाप से इन्द्रपद से पतन व अजगर बनना ), भविष्य ३.२.१८.२०( संसार की अजगर से उपमा ), भागवत १०.३४( नन्द का अजगर द्वारा बन्धन, कृष्ण द्वारा मुक्ति, जन्मान्तर में सुदर्शन विद्याधर ), ११.७.३३( दत्तात्रेय द्वारा अजगर से शिक्षा प्राप्ति का कथन ), हरिवंश ४.४.२९( अविधिपूर्वक कथा श्रवण पर अजगर योनि की प्राप्ति ), कथासरित् २.१.५७, ८.३.६३( विद्याधरी की अजगर पकडने में असफलता, सूर्यप्रभ मनुष्य द्वारा बन्धन पर अजगर का तूणीर - रत्न/तरकस बनना ), ९.५.५९, १०.५.३१०( अजगर द्वारा यज्ञसोम का निगरण, यज्ञसोम की पत्नी को दिव्य भिक्षा पात्र देना, यज्ञसोम का जीवित होना, अजगर का शापमुक्त हो काञ्चनवेग विद्याधरराज बनना ), १८.४.३२( विक्रमादित्य के कार्पटिक देवसेन का ककडी भक्षण से अजगर बनना, पुन: मनुष्य स्वरूप प्राप्ति का उद्योग ) ajagara
अजतुङ्ग ब्रह्माण्ड २.३.१३.४८( अमरकण्टक के अन्तर्वर्ती तीर्थ अजतुङ्ग की पितरों के तर्पण हेतु प्रशस्तता ), वायु ७७.४८/२.१५.४८( अजतुङ्ग पर पर्व कालों में देवों की छाया का दर्शन, पाण्डवों द्वारा नीरोगता प्राप्ति ) ajatunga