पुराण विषय अनुक्रमणिका(अ-अनन्त) Purana Subject Index

Achchhodaa

टिप्पणी : ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुशीलन से ऐसा आभास होता है कि यज्ञ के अच्छावाक् नामक ऋत्विज की वाक् को पुराणों में अच्छोदा कन्या का रूप दे दिया गया है । काठक संहिता २६.९ इत्यादि के अनुसार अच्छावाक् की वाक् का जन्म अन्त में होता है, जैसे तपस्वी को अन्त में परमात्मा के दर्शन होने पर अनुष्टुप् वाक् का जन्म होता है । मैत्रायणी संहिता ४.४.८ के अनुसार यह वाक् यव जैसी है, अर्थात् यह स्थिति विज्ञानमय कोश की है जो सर्वोच्च आनन्दमय कोश से इस प्रकार जुडा है जैसे यव के दो भाग परस्पर जुडे होते हैं । इसी तथ्य की पुष्टि गोपथ ब्राह्मण २.३.२३ में अच्छावाक् को भरद्वाज ऋषि से सम्बद्ध करके तथा जैमिनीय ब्राह्मण ३.३७४ में अच्छावाक् को विश्वेदेवों से सम्बद्ध करके की गई है ( विश्वेदेवों की स्थिति विज्ञानमय कोश में होती है ) । अच्छावाक् की हीनता यह है कि वह यज्ञ की अथवा सोम की असुरों से रक्षा नहीं कर पाता, जब तक कि इसके साथ इन्द्राग्नि देवता - द्वय का संयोग न हो जाए ( शतपथ ब्राह्मण ३.६.२.१३, गोपथ ब्राह्मण २.३.१५ ) । इन्द्राग्नि देवता अमावास्या का देवता है । इस प्रकार पुराणों में अच्छोदा की अमावसु पितर पर आसक्ति कह कर उसका अमावास्या व अष्टका आदि बन जाने का वर्णन किया गया है । अमावास्या का अर्थ है कि मा अर्थात् माया से बद्ध स्थिति को पार करके अपरिमित अमा में चेतना को स्थापित करना ।

                   इन्द्राग्नि द्वारा अच्छावाक् को प्रबलित करने की स्थिति प्रातःसवन में होती है । तृतीय सवन में इन्द्राविष्णु इसे पुष्ट करते हैं ( ऐतरेय ब्राह्मण ३.५०) । पुराणों में यह किस रूप में प्रस्फुटित हुआ है, यह अन्वेषणीय है ।

 

This website was created for free with Own-Free-Website.com. Would you also like to have your own website?
Sign up for free