Angula
अङ्गुल
टिप्पणी : अङ्गुल के सम्बन्ध में सबसे ज्वलन्त समस्या ऋग्वेद १०.९०.१ के पुरुष सूक्त की सार्वत्रिक ऋचा की व्याख्या है जहां कहा गया है कि सह्सरशीर्ष, सहस्राक्ष, सहस्रपाद पुरुष ने भूमि को आवृत करके दस अङ्गुल अतिक्रमण किया। जैमिनीय ब्राह्मण २.७० के अनुसार जो दशरात्र यज्ञ के स्तोम हैं, वही यह दस अङ्गुल है।
अग्नि पुराण में अग्नि कुण्ड आदि निर्माण में अङ्गुल मानों के संदर्भ में तैत्तिरीय ब्राह्मण ३.२.९.११ में उल्लेख है कि वेदी देवों से पलायन कर गई। देवों ने उसे चार अङ्गुल द्वारा जाना। अतः चार अङ्गुल खनन करते हैं। चार अङ्गुल ही ओषधियों की प्रतिष्ठा होती है।
पुराणों में शरीर के अङ्गों के अङ्गुल परिमाणों का वर्णन करते समय शीर्ष आदि भाग को २४ अङ्गुल परिमाण वाला कहने के संदर्भ में शतपथ ब्राह्मण १०.२.१.३ का कथन है कि यह जो पुरुष है, यह यज्ञ का ही रूप है। अतः इसके अवयवों का मान भी यज्ञ के अनुरूप ही है। २४ अङ्गुल गायत्री के २४ अक्षरों से सम्बन्धित हैं। काठक संकलन २१.१ तथा अथर्ववेद परिशिष्ट २२.२.२ में शरीर की कल्पना अरणी के रूप में की गई है जिसका मन्थन करके अग्नि को उत्पन्न करना है(द्र. अरणि शब्द पर टिप्पणी)। यहां अरणि के विभिन्न अवयवों के अङ्गुल मान दिए गए हैं। भविष्य पुराण में स्रुवा आदि यज्ञपात्रों के अङ्गुल मानों के संदर्भ में अथर्ववेद परिशिष्ट २३.३.३ आदि द्रष्टव्य हैं।
अङ्गुल के अन्य उपयोगी संदर्भों में आपस्तम्ब श्रौत सूत्र ७.३.६ तथा षड्-विंश ब्राह्मण ५.४.१६ द्रष्टव्य हैं जहां यज्ञ में यूप के ऊपर चषाल(वलय) को स्थापित करते समय चषाल को यूप के शिखर से एक या दो या तीन या चार अङ्गुल नीचे रखते हैं। चषाल इन्द्र देवता का है और चषाल से ऊपर का स्थान साध्य देवों का है।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.