पुराण विषय अनुक्रमणिका(अ-अनन्त) Purana Subject Index

Angiraa - Angushtha

Puraanic contexts of words like Angiraa, Anguli/finger, Angushtha etc. are described here.

अङ्गिरा कूर्म .११.१२८( अङ्गिरा द्वारा भारद्वाज को ज्ञान दान ), गरुड ..५५(अङ्गिरा द्वारा हरि-स्तुति), पद्म .३४( ब्रह्मा के यज्ञ में उद्गाता ), .५७( अङ्गिरा द्वारा मान्धाता को पद्मा एकादशी व्रत का कथन ), ब्रह्म .७४( अङ्गिरा की अग्नि से उत्पत्ति, आत्रेयी - पति, अङ्गिरस गण - पिता, पत्नी को परुष वचन बोलने के कारण पत्नी का परुष्णी नदी बनना ), ब्रह्मवैवर्त्त .२२.( अङ्गिरा की निरुक्ति ), .५१.१६( सुयज्ञ नृप द्वारा अतिथि द्विज के तिरस्कार पर अङ्गिरा की प्रतिक्रिया ), .१८( सप्तर्षि - पत्नियों पर आसक्ति के कारण अग्नि को सर्वभक्षी होने का शाप, सप्तर्षि - पत्नियों को द्वापर में याज्ञिक द्विजों की पत्नियां बनने का शाप, पुन: वरदान ), ब्रह्माण्ड ...७५( अङ्गिरा का ब्रह्मा के शिर से प्राकट्य ), ...४०( ब्रह्मा द्वारा अङ्गारों पर शुक्र होम से अङ्गिरा की उत्पत्ति, अग्नि - पुत्र बनना ), भविष्य ..२१.१४( अङ्गिरा का कलियुग में कण्व - पौत्रों के रूप में जन्म ), .९३( शुभा - पति, उतथ्य से श्रेष्ठता विषयक विवाद, सूर्य अग्नि के कार्यों का प्रतिस्थापन, अग्नि का बृहस्पति रूप में पुत्र बनना ), भागवत .१२.२४( ब्रह्मा के मुख से अङ्गिरा की उत्पत्ति का उल्लेख ), .२४.२२( कर्दम - पुत्री श्रद्धा से परिणय ), ..३४( अङ्गिरा द्वारा श्रद्धा से बृहस्पति, उतथ्य पुत्री सिनीवाली, कुहू, राका अनुमति कन्याओं की प्राप्ति ), ..१९( अङ्गिरा का दक्ष - पुत्रियों स्वधा सती से विवाह, स्वधा से पितरों की सती से अथर्वाङ्गिरस वेद की पुत्रों के रूप में उत्पत्ति ), .१४+ ( राजा चित्रकेतु को पुत्रवान् होने का आशीर्वाद, पुत्र की मृत्यु पर राजा को वैराग्य का उपदेश ), ..२६( संवर्त ऋषि - पिता ), ..( अङ्गिरा द्वारा रथीतर की भार्या से पुत्रों की उत्पत्ति ), मत्स्य .( अङ्गिरा सहित सप्तर्षियों की ब्रह्मा से उत्पत्ति का क्रम ), १५.१६( हविष्मान् नामक पितरों के पिता ), १२६.१०( श्रावण - भाद्रपद मास में अङ्गिरा की सूर्य रथ पर स्थिति ), १४५.१०५( अङ्गिरा गोत्रीय मन्त्रकर्ता ३३ ऋषियों के नाम ), १६७.४३( मार्कण्डेय - पिता ), १९६( ब्रह्म के वीर्य के अग्नि में होम से अङ्गिरा की उत्पत्ति, वंश गोत्र का वर्णन ), लिङ्ग .२४.२३( चतुर्थ द्वापर में व्यास ), वराह २१.१५( दक्ष यज्ञ में अङ्गिरा के आग्नीध्र बनने का उल्लेख ), वामन .१०( चन्द्रा - पति, दक्ष द्वारा यज्ञ में आमन्त्रण ), ५२.३१( अङ्गिरा द्वारा सप्तर्षियों की ओर से हिमालय को शिव - पार्वती विवाह का प्रस्ताव ), ८९.४६( अङ्गिरा द्वारा वामन को कौश चीर देने का उल्लेख ), वायु ६५.७८/..७८( बृहदङ्गिरा : वरूत्री के ब्रह्मिष्ठ पुत्रों में से एक ), ६५.९७( अङ्गिरा वंश का वर्णन ), विष्णु .११.४५( अङ्गिरा द्वारा ध्रुव को परमपद प्राप्ति के उपाय का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर .११२( सुरूपा - पति, १० अङ्गिरसों के पिता ), शिव ...५७( अङ्गिरा ऋषि से हविष्मन्त पितरों की उत्पत्ति का कथन ), ..१७( चतुर्थ द्वापर में व्यास ), .३४.४७( दशम मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), .३४.५१( ११वें मन्वन्तर में सप्तर्षियों में से एक ), ...५०( गङ्गाधर शिव का रूप ), स्कन्द ..४९.६८( अङ्गिरा द्वारा रामेश्वर की स्तुति ), ..१८.२०( अङ्गिरा द्वारा हरिकेश वन में स्थापित अङ्गिरेश्वर लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ..१९.१११( अङ्गिरा द्वारा ध्रुव को परम पद प्राप्ति हेतु कमलकान्त की आराधना करने का निर्देश ), ..११२.( अङ्गिरा द्वारा नर्मदा तट पर तप करके बृहस्पति/अङ्गिरस पुत्र प्राप्त करने का संक्षिप्त वर्णन ), .१८०( ब्रह्मा के यज्ञ में सुब्रह्मण्य ), ..२१.( अङ्गिरा द्वारा दक्ष से कन्याओं की प्राप्ति ), ..२३( चन्द्रमा के यज्ञ में उन्नेता ), ..४१.१८(अङ्गिरा को मार्कण्डेय बालक की अल्पायु का ज्ञान होना), हरिवंश .१२२.३५( अङ्गिरा का कृष्ण से युद्ध, पराजय ), लक्ष्मीनारायण .२५७.८५( अङ्गिरा द्वारा मान्धाता राजा को राज्य में वृष्टि हेतु एकादशी व्रत का परामर्श ), .५४०.८१( अङ्गिरा द्वारा अन्य ऋषियों को राजा वृषादर्भि से प्रतिग्रह रूप में स्वर्ण - पूरित उदुम्बर स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना ), .३२.१०( अथर्वा अग्नि - पुत्र ),कथासरित् १४..२२( अश्रुता - पति अङ्गिरा मुनि की सावित्री पर आसक्ति के कारण पत्नी द्वारा आत्महत्या की चेष्टा ) angiraaRemarks on Angiraa

 

अङ्गुल अग्नि २४.१( अग्नि कुण्ड निर्माण में खात, मेखला आदि के अङ्गुल मानों का वर्णन ), ४४( प्रतिमा के अवयवों का अङ्गुलि मान ), पद्म २.८.१४( गर्भ का २५ अङ्गुल विकास होने पर माता को प्रसव पीडा होने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड १.२.७.९६( अङ्गुल मान ), १.२.३२( प्रजा उत्सेध/ऊंचाई का अङ्गुल मान ), भविष्य १.१३२.७( आदित्य की ८४ अङ्गुल मान की मूर्ति में विभिन्न अङ्गों के अङ्गुल मान ), १.१४९.२( काल चक्र के ६४ अङ्गुल प्रमाण व ८ अङ्गुल नेमि आदि का उल्लेख ), २.१.१२.५( ८४ अङ्गुल प्रतिमा के विभिन्न अङ्गों के अङ्गुल मान ), २.१.१९.७( यज्ञ के स्रुवा आदि यज्ञ पात्रों के अङ्गुल मान ), २.१.२१.६८( अनन्त, वासुकि, तौलिक आदि नागों के अङ्गुल परिमाण का कथन ), मत्स्य १४५( विभिन्न युगों में अङ्गुल अनुसार शरीर परिमाण ), वायु ८.१०२( अङ्गुल मान ), ५९.६( शरीर का अङ्गुल परिमाण ), विष्णुधर्मोत्तर ३.३६.१( शरीर के अङ्गों के अङ्गुल परिमाण का वर्णन ) angula

Remarks on Angula

 

 

अङ्गुलि कूर्म २.१३.१५( अङ्गुष्ठमूल में ब्राह्म तीर्थ, तर्जनी मूल में पितृ तीर्थ, कनिष्ठिका मूल में प्राजापत्य तीर्थ, अङ्गुलि अग्र देवकामार्थ, मध्य अग्नि कर्मार्थ तथा मूल सोम कर्मार्थ होने का कथन ; आचमन कर्म में अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों के संयोग से शरीर के अङ्गों के स्पर्श का वर्णन - अङ्‌गुल्यग्रे स्मृतं दैवं तद्देवार्थं प्रकीर्त्तितः। मूले वा दैवमादिष्टम् ग्नेयं मध्यतः स्मृतं ।), गरुड १.९.८( दीक्षा में गुरु के हस्त की पद्म के रूप में कल्पना करने पर अङ्गुलियों का पद्म - पत्र तथा नखों का केशरों के रूप में कथन ), ३.१३.२७(अङ्गुलि पर्वों से ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का कथन), देवीभागवत ११.१५.८२( ऊर्ध्वपुण्ड्र के संदर्भ में अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों में गायत्री के अक्षरों का न्यास ), ११.२२.२७( प्राण, उदान आदि की आहुतियां देने में अङ्गुलियों का नियोजन - तर्जनीमध्यमाङ्‌गुष्ठैः प्राणस्यैवाहुतिं क्षिपेत् ॥ मध्यमानामिकाङ्‌गुष्ठैरपानस्याहुतिं क्षिपेत् । ), नारद १.५०.८०( सामगान में अङ्गुलियों व अङ्गुष्ठ द्वारा स्वरों के निर्देश का वर्णन - गात्रवीणा तु सा प्रोक्ता यस्यां गायंति सामंगाः ।। स्वरव्यंजनसंयुक्ता अंगुल्यंगुष्ठरंजिता ।। ), १.५०.१०३( सामगान में अङ्गुलियों में षडज आदि स्वरों की स्थिति - प्रदेशिन्यां तु गांधार ऋषभस्तदनंतरम् ।। अनामिकायां षड्जस्तु कनिष्ठायां तु धैवतः ।। ), १.५१.५५( मुद्राओं हेतु अङ्गुलि विन्यास का कथन - सर्वाङ्गुलीभिः क्रौडी स्याद्धंसी मुक्तकनिष्ठिका। मध्यमानामिकाङ्गुष्ठैर्मृगी मुद्रा प्रकीर्तिता ), पद्म ३.५२.१६( अङ्गुष्ठ मूल में ब्राह्म तीर्थ, अङ्गुष्ठ व प्रदेशिनी अङ्गुलि के बीच पितृ तीर्थ, कनिष्ठिका मूल में प्राजापत्य तीर्थ, अङ्गुल्यग्र में दैव, मूल में दैव - आर्ष व मध्य में आग्नेय तीर्थ की स्थिति ), ब्रह्म १.११३.९६( तर्जनी व अङ्गुष्ठ के बीच पितृतीर्थ, अङ्गुलि अग्र में दैव तथा कनिष्ठिका मूल में प्राजापत्य तीर्थों का उल्लेख ), २.२०.२२( गरुड का विष्णु की कराङ्गुलि के भार को वहन करने में असमर्थ होना, गर्व भङ्ग - वहाङ्गुलिं करस्याऽऽशु कनिष्ठां नन्दिनोऽन्तिके।।  ), २.९३.३०( नृसिंह से अङ्गुलि की रक्षा की प्रार्थना - बाहू रक्षतु वाराहः पृष्ठं रक्षतु कूर्मराट्। हृदयं रक्षतात्कृष्णो ह्यङ्गुली रक्षतान्मृगः।। ), ब्रह्मवैवर्त्त २.१६.१३६(रति के अङ्गुलीयक रत्न के हरण का उल्लेख), ३.४.४६( अङ्गुलियों के सौन्दर्य हेतु लक्ष अङ्गुलीयक दान का निर्देश ), ४.५९.४८(लक्ष्मी के अङ्गुलीयक रत्नों की श्रेष्ठता का उल्लेख - भिक्षां कृत्वा च दास्यामि स्तुत्वा च कमलापतिम् । अङ्गुलीयकरत्नानि विश्वेषु दुर्लभानि च ।।), ४.५९.५१(कुबेर पत्नी के पादाङ्गुलि भूषण की श्रेष्ठता का उल्लेख - रत्नपाशकसंधं च विश्वकर्मविनिर्मितम् ।। कुबेरपत्न्या दास्यामि पादाङ्गुलिविभूषणम ।)४.९३.५३( राधा द्वारा उद्धव को रत्नसार निर्मित अङ्गुलीयक प्रदान करने का कथन ), ब्रह्माण्ड ३.४.२९.१२६( नरकासुर आदि के वध के लिए विष्णु का देवी की अनामिका के नख से उत्पत्ति का कथन - तान्विनाशयितुं सर्वान्वासुदेवः सनातनः । श्रीदेवीवामहस्ताब्जानामिकानखसंभवः ॥ ), भविष्य १.५.१४, १.५.४९( पाद व हस्त की अङ्गुलियों के शुभाशुभ लक्षण - रेखाः कनिष्ठिकामूलाद्यस्याः प्राप्ताः प्रदेशिनीम् । शतमायुर्भवेत्तस्यास्त्रयाणामुन्नतौ क्रमात् । ।), मत्स्य १८७.४२( बाण - पत्नी अनौपम्या की ननन्द कुम्भीनसी द्वारा सर्वदा अङ्गुलि भङ्ग कर्म करना - अस्तिकुम्भीनसी नाम ननान्दा पापकारिणी ।। दृष्ट्वा चैवाङ्गुलीभंगं सदा कालं करोति च। ), मार्कण्डेय ८२.१५/७९.१५( अर्क के तेज से देवी की पादाङ्गुलियों व वसुओं के तेज से कराङ्गुलियों की रचना - ब्रह्मणस्तेजसा पादौ तदङ्गुल्योऽर्कतेजसा । वसूनाञ्च कराङ्गुल्यः कौबेरेण च नासिका॥ ), लिङ्ग १.९.४१( वायु तत्त्व पर विजय होने पर अङ्गुलि अग्र निपात द्वारा भूमि के कम्पन का उल्लेख - अंगुल्यग्रनिघातेन भूमेः सर्वत्र कंपनम्।। ), १.२६.१३( अङ्गुलि के अग्र से देवों, कनिष्ठाङ्गुलि से ऋषियों और दक्षिणाङ्गुष्ठ द्वारा पितरों के तर्पण का उल्लेख - अंगुल्यग्रेण वै धीमांस्तर्पयेद्देवतर्पणम्।। ऋषीन् कनिष्ठांगुलिना श्रोत्रियः सर्वसिद्धये।।  ), १.८५.११४( मोक्ष, शत्रुनाश आदि लक्ष्यों के अनुसार माला जप में अङ्गुलियों का विनियोजन - .. मध्यमा धनदा शांतिं करोत्येषा ह्यनामिका।। कनिष्ठा रक्षणीया सा जपकर्मणिशोभने।। ), वराह ९८( सत्यतपा ऋषि की अङ्गुलि छिन्न होने पर रक्त के बदले भस्म निकलने का आश्चर्य ), वामन ३८.१५( शिव द्वारा अङ्गुष्ठ का अङ्गुलि से ताडन करके भस्म उत्पन्न करना और इस प्रकार हाथ से शाकरस स्रवण करने वाले मङ्कणक ऋषि को शान्त करना ), ६२.५०( वही), विष्णुधर्मोत्तर ३.२६.१३( अभिनय कर्म में अङ्गुलियों की विभिन्न मुद्राओं का वर्णन - प्रसारिताग्रा सहिता यस्याङ्गुल्यो भवन्ति हि ।। कुञ्चितश्च तथाङ्गुष्ठः स पताक इति स्मृतः ।।  ), ३.३२.१+ ( विभिन्न हस्त मुद्राओं में अङ्गुलियों के विन्यास का वर्णन ), ३.२३३.१( अङ्गुलियों में दैव, पितृ व मानुष तीर्थों की स्थिति ), ३.२३८.२१( अङ्गुलियों द्वारा श्रोत्रों को बन्द करने पर शब्द श्रवण न होने पर सद्य: मरण का उल्लेख ), ३.३४१.१९३( पादाङ्गुलीयक दान से गुह्यकाधिपति बनने का उल्लेख; हस्ताङ्गुलीयक दान से सौभाग्य प्राप्ति - पादाङ्गुलीयदानेन गुह्यकाधिपतिर्भवेत् ।।..हस्ताङ्गुलीयदानेन परं सौभाग्यमाप्नुयात् ।। ), शिव ७.२.१४.३९( माला जप में अङ्गुलि विशेष का महत्त्व : मोक्षप्रद, शत्रुनाशक, धनदायक, शान्तिदायक, क्षरणी आदि - अंगुष्ठं मोक्षदं विद्यात्तर्जनीं शत्रुनाशिनीम् ॥ मध्यमां धनदां शांतिं करोत्येषा ह्यनामिका ॥ ), स्कन्द १.२.५५.११४( योगी द्वारा वायु तत्त्व की सिद्धि होने पर अङ्गुलि अग्र निपात से भूमि के कम्पन का उल्लेख - अंगुल्यग्रनिपातेन भूमेः सर्वत्र कम्पनम् ।। ), ३.२.५.११०( अङ्गुलियों के अग्र, मध्य व मूल में दैव, प्राजापत्य व आर्ष तीर्थों की स्थिति आदि का उल्लेख ), ४.१.३५.७१( शौच/शुद्धि प्राप्ति हेतु विभिन्न कराङ्गुलियों के संयोग से शरीर के विभिन्न अङ्गों को स्पर्श करने का वर्णन - ..अंगुष्ठानामिकाग्राभ्यां चक्षुः श्रोत्रे पुनः पुनः ।। कनिष्ठांगुष्ठयोगेन नाभिरंध्रमुपस्पृशेत् ।।), ४.१.३५.१७८( तर्पण प्रसंग में अङ्गुलियों में स्थित तीर्थों के नाम - अंगुल्यग्रे भवेद्दैवमार्षमंगुलि मूलगम् ।। ब्राह्ममंगुष्ठमूले तु पाणिमध्ये प्रजापतेः ।। ), ४.१.३७.८२( अङ्गुलियों की शुभ व अशुभ आकृतियों का उल्लेख ), ४.१.४०.११३( केवल अङ्गुलि द्वारा दन्त शोधन का निषेध ), ४.२.७२.६०( कमला देवी द्वारा हस्ताङ्गुलियों की रक्षा - हस्तांगुलीः कमलजा विरजा नखांश्च कक्षांतरं तरणिमंडलगा तमोघ्नी ।। ), ४.२.७२.६२( उग्रा देवी द्वारा पादाङ्गुलियों की रक्षा - पादौ रसातलचरांगुलिदेशमुग्रा चांद्री नखान्त्पदतलं तलवासिनी च ।। ), ५.१.३.२१( शिव द्वारा कपाल में संगृहीत विष्णु के रुधिर का अङ्गुलि द्वारा मन्थन करने पर अन्त में नर/अर्जुन की उत्पत्ति ), ५.१.४.९०( रुद्र द्वारा अग्नि को दक्षिण हस्त की अङ्गुलि के नख में स्थान देना? ), ५.१.४९( शिव द्वारा छिन्न विष्णु की अङ्गुलि के रक्त से शिप्रा नदी का प्राकट्य ), ५.३.१९३.२६( अप्सराओं द्वारा नारायण के पादतल व अङ्गुलियों आदि में पिशाच, यक्ष, उरग व सिद्धों के दर्शन करने का उल्लेख - जङ्घे वयं पादतलाङ्गुलीषु पिशाचयक्षोरगसिद्धसङ्घाः ॥ ), ७.१.१७.१९( अङ्गुलि द्वारा दन्त शोधन का निषेध ), महाभारत आदि १३१.५९( एकलव्य द्वारा द्रोणाचार्य को अङ्गुष्ठ दान पर अङ्गुलियों से तीर चलाना - छित्त्वाऽविचार्य तं प्रादाद्द्रोणायाङ्गुष्ठमात्मनः। ततः शरं तु नैषादिरङ्गुलीभिर्व्यकर्षत। ), वन ८३.१२५( शिव द्वारा स्व अङ्गुष्ठ का अङ्गुलि से ताडन करके शीतल भस्म उत्पन्न करना व हाथ से शाकरस स्रवित करने वाले मङ्कणक ऋषि को शान्त करना ), शल्य ३८.४८( वही), स्त्री १५.३०( गान्धारी द्वारा युधिष्ठिर की पादाङ्गुलियों पर दृष्टि डालने से नखों का काला पडना ), शान्ति २३६.२३( योगी द्वारा वायु तत्त्व की सिद्धि पर अङ्गुलि अङ्गुष्ठ मात्र से पृथिवी को कम्पित करने का उल्लेख - अङ्गुल्यङ्गुष्ठमात्रेण हस्तपादेन वा तथा।। पृथिवीं कम्पयत्येको गुणो वायोरिति श्रुतिः। ), योगवासिष्ठ १.२३.३५( काल की क्रिया रूपी अङ्गुलि - संचारयन्क्रियाङ्गुल्या कोणकेष्वर्कदीपिकाम् । जगत्सद्मनि कार्पण्यात्क्व किमस्तीति वीक्षते ।। ), ३.७०.३८( हस्ताङ्गुलियों में कर्कटी राक्षसी/विषूचिका के छिपने का स्थान - रजस्तिरोहिता भूमौ हस्तेऽङ्गुलितिरोहिता । ), वा.रामायण ४.४४.१२( अङ्गुलीयक : राम द्वारा अभिज्ञान हेतु हनुमान को अङ्गुलीयक देना ), लक्ष्मीनारायण १.२९.२( लक्ष्मी के पादाङ्गुष्ठों व अङ्गुलियों में शङ्ख, विमान, यव, कमल आदि चिह्नों का वर्णन - करयोर्मध्यांगुल्योस्तु शंखौ यस्य स्त उत्तमौ ।चक्रे द्वे प्रान्तभागेषु स स्याद्वै भगवान् स्वयम् । ), १.६८.१०, १.६८.३०( पादों की अङ्गुलियों के श्लिष्ट होने व हाथों की अङ्गुलियों के सूक्ष्म आदि होने से श्रेष्ठता का उल्लेख - हस्तांगुलय एव स्युः स्वर्णवर्णा धनेशितुः ॥ ताश्च मेधाविनां सूक्ष्मा भृत्यानां चिपिटाः स्मृताः । ), १.६९.७( लक्ष्मी के पदों में अङ्गुष्ठ व अङ्गुलियों में स्थित चिह्नों का कथन - अंगुल्या मूलके पश्य रेखां विमानसदृशीम् ।। कनिष्ठायाः पश्य मूलाधस्त्वं नौकां सुरेखया । ), १.६९.३३( पाद की कनिष्ठिका या अनामिका द्वारा भूमि स्पर्श न होने पर स्त्री के कुलटा लक्षण का उल्लेख ), १.१५५.५४( अलक्ष्मी की जलौका सदृश अङ्गुलियों का उल्लेख ), १.४६१.३४( कुलटा या पतिहन्ता आदि नारी की पादाङ्गुलियों के लक्षण ), ३.१३०.८२( ३ प्रकार के चक्रों में अङ्गुलीयक चक्र का महत्त्व, अङ्गुलीयक रूपी चक्र दान विधि व माहात्म्य - अथापि च तृतीयं वै चक्रं चांगुलिभूषणम् । स्वर्णभूषोर्मिकाचक्रं दाने देयं विशेषतः ।। ), ३.१८६.६५( साधु की अङ्गुलियों में ग्रहों का वास - साधोरङ्गुलिकासङ्घे चन्द्रसूर्यादयो ग्रहाः ।। ), कथासरित् २.२.५०( श्रीदत्त द्वारा दैत्य - कन्या से विष नाशक अङ्गुलीयक की प्राप्ति - अङ्गुलीयं विषघ्नं च सास्मै दैत्यसुता ददौ । ततः सोऽत्र स्थितस्तस्यां साभिलाषोऽभवद्युवा ।। ), १२.५.६१( विनीतमति द्वारा कालजिह्व यक्ष से ईति नाशक अङ्गुलीयक की प्राप्ति - ददौ च तस्मै मुक्तः सन्नीतिघ्नं स्वाङ्गुलीयकम् । प्रह्वो मुमोच दास्याच्च नागं तं गन्धमालिनम् ।। ) anguli

Remarks on Anguli

 

  

अङ्गुष्ठ अग्नि २५.२२(ऋग्वेदं व्यापकं हस्ते अङ्गुलीषु यजुर्न्यसेत् तलद्वयेथर्वरूपं शिरोहृच्चरणान्तकः ।।), २५.२५( अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में श्रोत्र, त्वक्, चक्षु आदि के न्यास का उल्लेख ), २५.२७( अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में भुव:, स्व: आदि लोकों का न्यास ), २५.३२( दोनों कराङ्गुष्ठों में जीव का तथा बुद्धि, अहंकार, मन आदि तत्त्वों का अङ्गुलियों में न्यास - तर्जन्यादिक्रमाच्छेषं यावद्वामप्रदेशिनीम् ।। देहे शिरोललाटास्यहृन्नाभिगुह्यजानुषु। ), २५.३६( अङ्गुष्ठ - द्वय में श्रोत्र तथा अङ्गुलियों में त्वक्, चक्षु, जिह्वा आदि का न्यास - उपस्थं मानसो व्यापी श्रोत्रमङ्गुष्ठकद्वये। तर्जन्यादिक्रमादष्टौ अतिरिक्तं तलद्वये ।। ), २५.४०( अङ्गुष्ठ तथा अङ्गुलियों में मधुसूदन, त्रिविक्रम, वामन आदि का न्यास ), २५.४३( अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में बुद्धि, अहंकार, मन, चित्त आदि का न्यास - उपस्थो भूर्जलन्तेजो वायुराकाशमेव च।पुरुषं व्यापकं न्यस्य अङ्गुष्ठादौ दश न्यसेत् ।।  ), २९५.१५( सर्प दंश की चिकित्सा के संदर्भ में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में क्रमश: पृथिवी आदि तत्त्वों का न्यास, तार्क्ष्य रूपी मुष्टि के निर्माण से अङ्गुष्ठ के विष का नाश होने का उल्लेख, तार्क्ष्य हस्त की अङ्गुलियों के चालन से विष का स्तम्भन आदि - मुष्टिस्तार्क्षकरस्यान्तः स्थिताङ्गुष्ठविषापहा तार्क्षं हस्तं समुद्यम्य तत्पञ्चाङ्गुलिचालनात् ।।), १०.३२( विभिन्न मुद्राओं में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों के विन्यास का वर्णन - ग्रथितौ तु करौ कृत्वा मध्येऽङ्गुष्ठौ निपातयेत् ।।.. ), गरुड २.१०.७४(मृत्यु पश्चात् अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के निष्क्रमण और पिण्डदान से अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के एकता को प्राप्त होने का कथन - अधूमकज्योतिरिवाङ्गुष्ठमात्रः पुमांस्ततः देहमेकं सद्य एव वायवीयं प्रपद्यते ), देवीभागवत ११.१५.८२( ऊर्ध्वपुण्ड्र/तिलक बनाने के संदर्भ में अङ्गुष्ठ तीन अङ्गुलियों की क्रमश: विशेषता : पुष्टिकर, मुक्तिदायक, आयुष्य, अन्नदायक - अङ्गुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्तो मध्यमायुष्करी भवेत् अनामिकान्नदा नित्यं मुक्तिदा प्रदेशिनी ), ११.१६.७९( अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में गायत्री मन्त्राक्षरों के न्यास का कथन - अङ्गुष्ठाभ्यां तत्सवितुस्तर्जनीभ्यां वरेण्यकम्
भर्गो देवस्य मध्याभ्यां धीमहीत्येव कीर्तयेत् .. ),
११.२२.२७( प्राणाग्निहोत्र के संदर्भ में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों के संयोग से प्राण, उदान आदि की आहुतियों का कथन - मध्यमानामिकाङ्गुष्ठैरपानस्याहुतिं क्षिपेत् कनिष्ठानामिकाङ्गुष्ठैर्व्यानस्य तदनन्तरम् ), नारद १.२७.२०( शौच के पश्चात् आचमन के संदर्भ में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों के परस्पर स्पर्श से स्वरों, मात्राओं, छन्दों आदि का कल्पन - तर्जन्यंगुष्ठयोगेन नासारंध्रद्वयं स्पृशेत् ।। अगुंष्ठानामिकाभ्यां चक्षुः श्रोत्रे यथाक्रमम् ।। ), १.९१.५२( अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों में ईशान, तत्पुरुष, अघोर आदि का न्यास - ईशानाख्यं तत्पुरुषमघोरं तदनंतरम् ।। वामदेवाह्वयं सद्योजातबीजं क्रमाद्विदुः ।। ), २.४५.२( गया में प्रेतशिला के अङ्गुष्ठ में स्थित ईश का प्रभासेश नाम, तत्स्थान पर पिण्ड दान के महत्त्व का कथन - प्रभासो मुनिभिस्तुष्टः शिलांगुष्ठानिर्गतः अंगुष्ठस्थित ईशोऽपि प्रभासेशः प्रकीर्तितः ), पद्म १.३०.१७५( विराट रूप धारी वामन के पादाङ्गुष्ठ से बलि के ब्रह्मरन्ध|/ब्रह्माण्ड के स्फोट परिणामस्वरूप गङ्गा के उद्भव का वृत्तान्त - अंगुष्ठाग्रेण भिन्नेंडे जलं भूरि विनिःसृतम्।प्लावयित्वा ब्रह्मलोकान्सर्वान्लोकाननुक्रमात् ), ५.८०.१४( कृष्ण के चरणों में अङ्गुष्ठ मूल में चक्र, मध्यमाङ्गुलि मूल में कमल, कनिष्ठा मूल में वज्र, अङ्गुष्ठ पर्व में यव आदि चिह्नों का कथन - दक्षिणस्य पदोंगुष्ठमूले चक्रं बिभर्ति यः..मध्यमांगुलिमूले तु धत्ते कमलमच्युतः   ), ५.८१.४६( कृष्ण स्वरूप के ध्यान के संदर्भ में राधिका द्वारा अङ्गुष्ठ तर्जनी से कृष्ण के मुखकमल में पूगफल आदि समर्पित करने का उल्लेख - अंगुष्ठतर्जनीभ्यां निजकांतमुखांबुजे ।अर्पयंतीं पूगफलं पर्णचूर्णसमन्वितम्  ), ६.२४०.१६( विप्र को अङ्गुष्ठ मात्र भूमि के दान मात्र से पृथिवीपति होने का उल्लेख - यो ददाति महीं राजा विप्रायाकिंचनाय वै ।अंगुष्ठमात्रामपि वा भवेत्पृथिवीपतिः ), ब्रह्म १.१.१०९( ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष वाम अङ्गुष्ठ से दक्ष - पत्नी की उत्पत्ति का उल्लेख - अङ्गुष्ठाद्ब्रह्मणो जज्ञे दक्षः किल शुभव्रतः वामाङ्गुष्ठात्तथा चैवं तस्य पत्नी व्यजायत ), १.३८.९०( सब देहधारियों में अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष की स्थिति का उल्लेख - अङ्गुष्ठमात्राः पुरुषा देहस्थाः सर्वदेहिनाम्। रक्षन्तु ते मां नित्यं नित्यं चाऽऽप्ययन्तु माम्॥), .११३.९५( दक्षिण पाणि में अङ्गुष्ठोत्तर रेखा के ब्राह्म तीर्थ होने का उल्लेख ; तर्जनी अङ्गुष्ठ के बीच पितृ तीर्थ होने का उल्लेख आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त २.३६.१५४( मृत्यु पर यम किङ्कर द्वारा अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष को ग्रहण करना - अंगुष्ठमात्रं पुरुषं गृहीत्वा यमकिङ्करः।।विन्यस्य भोगदेहे स्वस्थानं प्रापयेद् द्रुतम् ।। ), ब्रह्माण्ड ...९७( शरीर के अङ्गों के अङ्गुल मान के संदर्भ में हाथ पैरों के अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों का अङ्गुल मान ), भविष्य १.२४.२२( सामुद्रिक लक्षणों के संदर्भ में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों की विकृत आकृतियों का वर्णन - यस्य प्रदेशिनी दीर्घा अङ्गुष्ठं या अतिक्रमेत् स्त्रीभोगं लभते नित्यं पुरुषो नात्र संशयः ), १.३०.१( विभिन्न द्रव्यों के अङ्गुष्ठ पर्व मात्र गणपतियों के निर्माण का कथन - निम्बमयमङ्गुष्ठपर्वमात्रं गणपतिं कृत्वा नित्यधूपगन्धादिभिरर्चयित्वा प्रच्छन्नं शिरसि बद्ध्वा गच्छेत् सर्वजनप्रियो भवति ), ..२१.१०३( वरुण की अङ्गुष्ठ मात्र प्रतिमा की स्थापना का उल्लेख ), ३.४.१७.१२( मरुतों की उत्पत्ति के संदर्भ में अङ्गुष्ठ मात्र इन्द्र द्वारा वज्र से दिति के गर्भ का छेदन - अंगुष्ठमात्रो भगवान्महेन्द्रो वज्रसंयुतः ।। कुक्षिमध्ये समागम्य चक्रे गर्भं सप्तधा ।। ), ४.८९.६( मृत्यु पर यमदूतों द्वारा अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष का बन्धन करके ले जाने का उल्लेख - अंगुष्ठमात्रः पुरुषो बलदाकृष्य रोषितः ।।बद्धो यमभटैर्गाढं नीयते वेदवादिभिः ।। ), भागवत १.१२.८( उत्तरा के गर्भ में स्थित परीक्षित के अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से जलने पर अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष द्वारा गर्भ की रक्षा का वर्णन - अङ्गुष्ठमात्रममलं स्फुरत् पुरट मौलिनम् ।अपीच्यदर्शनं श्यामं तडिद् वाससमच्युतम् ), ३.१२.२३(  ब्रह्मा के अङ्गुष्ठ से दक्ष के जन्म का उल्लेख - उत्सङ्गान्नारदो जज्ञे दक्षोऽङ्गुष्ठात्स्वयम्भुवः ), ३.१३.१८( ब्रह्मा के नासाछिद्र से अङ्गुष्ठ परिमाण वराह का उत्पन्न होना विराट रूप होकर यज्ञ वराह बनना - इत्यभिध्यायतो नासा विवरात्सहसानघ ।वराहतोको निरगाद् अङ्गुष्ठपरिमाणकः ), मत्स्य ६१.४६(  अगस्त्य को अर्घ प्रदान के संदर्भ में कुम्भ में सुवर्ण निर्मित, चतुर्मुख अङ्गुष्ठ पुरुष को रखने का उल्लेख - अङ्गुष्ठमात्रं पुरुषं तथैव सौवर्णमेवायतबाहुदण्डम्। चतुर्मुखं कुम्भमुखे निधाय धान्यानि सप्ताम्बरसंयुतानि।। ), ७२.३४( अङ्गारक/मङ्गल की अर्चना के संदर्भ में पात्र में सुवर्ण निर्मित, चतुर्भुज अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष रखने का निर्देश - अङ्गुष्ठमात्रं पुरुषं तथैव सौवर्णमत्यायतबाहुदण्डम्। चतुर्भुजं हेममये निविष्टं पात्रे गुडस्योपरि सर्पियुक्तम्।। ), २५८.४७( शरीर के अङ्गों के अङ्गुल मान के संदर्भ में हाथ पैरों में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों के अङ्गुल मान का वर्णन - चतुर्दशांगुलौ पादावङ्गुष्ठौ तु त्रियंगुलौ। पञ्चांगुलपरीणाहमङ्गुष्ठाग्रं तथोन्नतम् ।। ), मार्कण्डेय ३४.१०७( आचमन के संदर्भ में दक्षिण पाणि में अङ्गुष्ठोत्तर रेखा के ब्राह्म तीर्थ, अङ्गुष्ठ तर्जनी मध्य में पितृ तीर्थ आदि होने का कथन - अङ्गुष्ठोत्तरतो रेखा पाणेर्या दक्षिणस्य तु एतद् ब्राह्ममिति ख्यातं तीर्थमाचमनाय वै॥ ), वराह ६२.१०(राजा अनरण्य द्वारा पद्म में अङ्गुष्ठमात्र पुरुष के दर्शन, पद्म तोडने के प्रयास पर कुष्ठ प्राप्ति की कथा - तत्र चाङ्गुष्ठमात्रं तु स्थितं पुरुषसत्तमम् रक्तवासोभिराछन्नं द्विभुजं तिग्मतेजसम् ।।), वायु ८.९८( अङ्गुष्ठ से अङ्गुलियों तक के आयामों के प्रादेश, ताल, गोकर्ण आदि नामों का कथन - अंगुष्ठस्य प्रदेशिन्या व्यासः प्रादेश उच्यते। तालः स्मृतो मध्यमया गोकर्णश्चाप्यनामया ।। ), १०८.१४( गयासुर पर स्थित शाला का प्रभास अद्रि द्वारा आच्छादन, शिलाङ्गुष्ठ का प्रभास का भेदन करके प्रकट होना, अङ्गुष्ठ प्रदेश में पिण्ड दानादि का महत्त्व - प्रभासं हि विनिर्भिद्य शिलाङ्गुष्ठो विनिर्गतः। अङ्गुष्ठोत्थित ईशोऽपि प्रभासेशः प्रकीर्त्तितः ।।  ), विष्णु १.१५.८०( ब्रह्मा के दक्षिण हस्त के अङ्गुष्ठ से दक्ष प्रजापति की उत्पत्ति का उल्लेख - अङ्गुष्ठाद्दक्षिणाद्दक्षः पूर्वं जातो मया श्रुतः कथं प्राचेतसो भूयः समुत्पन्नो महामुने  ), विष्णुधर्मोत्तर १.२.२३( विराट रूप धारी वामन के अङ्गुष्ठ द्वारा ब्रह्माण्ड का भेदन होने पर ब्रह्माण्ड के बाहर स्थित जल का अन्दर प्रवेश करना - अंगुष्ठाग्रक्षतादण्डाद्यत्प्रविष्टं जलं शुचि ।।प्राप्ता देवनदीत्वं तु सा तु विष्णुपदी नदी ।। ), १.६५.२३( चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल आत्मा में ध्यानयोग द्वारा अङ्गुष्ठ पुरुषों के दर्शन का निर्देश - ऊर्ध्वलक्षं बुधः कृत्वा चन्द्रमण्डलमध्यगे ॥अङ्गुष्ठमात्रे पुरुषे लक्षबन्धं तु कारयेत् ), १.९२.३३( हस्त प्रमाण स्रवा के होम स्थान को अङ्गुष्ठ मध्य समान बनाने का उल्लेख - अङ्गुष्ठमध्यप्रतिमं होमस्थानं स्रुवस्य तु।। ), १.१६५.५( रवि मध्य में स्थित सोम, उसके मध्य में स्थित अच्युत के अङ्गुष्ठ पुरुष होने का उल्लेख - तेजोमध्ये स्थितं सत्त्वं सत्त्वमध्ये स्थितोऽच्युतः ।।अंगुष्ठमात्रः पुरुषः पूर्वमेव मयेरितः ।। ), २.३७.४२( सावित्री - सत्यवान् आख्यान में यम द्वारा सुप्त सत्यवान् के अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष को पाशबद्ध करके ले जाने का उल्लेख - अङ्गुष्ठमात्रं पुरुषं पाशबद्धं वशङ्गतम् ।। आकृष्य दक्षिणामाशां प्रययौ सत्वरं तदा ।। ), २.१६५.१३( शरीर में अङ्गों के पुरुष, स्त्री नपुंसक लिङ्गों में विभाजन के संदर्भ में अङ्गुष्ठ के पुरुष होने का उल्लेख - अङ्गुष्ठनखपादोरुगुल्फमुष्कमुरस्तनाः ।।..पुन्नामान्येवमादीनि स्पृशतः पृच्छतः शुभम् ।। ), ३.२६.१३( अभिनय कर्म में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों की विभिन्न मुद्राओं का वर्णन - प्रसारिताग्रा सहिता यस्याङ्गुल्यो भवन्ति हि ।। कुञ्चितश्च तथाङ्गुष्ठः पताक इति स्मृतः ।।), ३.३२.१+ ( अङ्गुष्ठ मूल में ब्राह्म तीर्थ, अङ्गुलि अग्र में दैव, तर्जनी मूल में पितृ कनिष्ठा में मानुष तीर्थों का उल्लेख - वासस्य प्रसारिताङ्गुष्ठस्योपरि यदा कुब्जतर्जनी भवति तदोङ्कारः ।। ), शिव ..१५.२४( तारकासुर द्वारा अङ्गुष्ठ से भुव/भूमि का स्पर्श करके तप करने का उल्लेख ), ..२४.४५( शिव द्वारा पादाङ्गुष्ठ से निर्मित सुदर्शन चक्र द्वारा जलन्धर वध का उल्लेख ), ५.४०.३५( मार्कण्डेय द्वारा विमान में स्थित अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष रूप में सनत्कुमार के दर्शन - अपश्यं चैव तत्राहं शयानं दीप्ततेजसम् ।। अंगुष्ठमात्रं पुरुषमग्नावग्निमिवाहितम् ।। ), ७.२.१४.३९( माला जप के संदर्भ में अङ्गुष्ठ अङ्गुलियों की क्रमश: मोक्षप्रद, शत्रुनाशिनी, धनाप्रदा आदि संज्ञाएं - अंगुष्ठं मोक्षदं विद्यात्तर्जनीं शत्रुनाशिनीम् मध्यमां धनदां शांतिं करोत्येषा ह्यनामिका ), ७.२.३८.७१( भ्रूमध्य में शिव शिवा के अङ्गुष्ठ मात्र रूप के ध्यान का उल्लेख - तत्रैव देवं देवीं चिंतयेद्धीरया धिया अंगुष्ठमात्रममलं दीप्यमानं समंततः ), स्कन्द ५.१.५०.१३( सर्प द्वारा राजा दमन के अङ्गुष्ठ में काटने का उल्लेख - किमिदं कुत आश्चर्यं कृत्वा हस्तेन वारितः ।।
तेन वारयिता राजा दष्टोंऽगुष्ठे तदाऽहिना ),
५.२.२.२१( मङ्कणक के अङ्गुष्ठ ताडन से भस्म निर्गमन का कथन - अंगुष्ठस्ताडितः स्वीयोंगुल्यग्रेण पार्वति ।। ततो विनिर्गतं भस्म तत्क्षणाद्धिमपांडुरम् ।।), ५.२.६०.२३( मतङ्ग द्वारा १०० वर्ष तक अङ्गुष्ठ से बैठकर तप करने का उल्लेख - अतिष्ठत गयां गत्वा सोंगुष्ठेन शतं समाः ।। सुदुष्करं वहन्योगं प्राणायामपरायणः ।। ), ५.३.६७.५१(   विष्णु को जगाने के लिए उनके पादाङ्गुष्ठ का मर्दन करने का उल्लेख - नारदस्य वचः श्रुत्वा पदाङ्गुष्ठं व्यमर्दयत् नारदस्तिष्ठते द्वारि उत्तिष्ठ मधुसूदन   ), ५.३.१९२.६( नारायण के दक्षिण अङ्गुष्ठ से दक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख - नारायणस्य नाभ्यब्जाज्जातो देवश्चतुर्मुखः । तस्य दक्षोऽङ्गजो राजन् दक्षिणाङ्गुष्ठसम्भवः ), महाभारत आदि ३१.८( कश्यप के यज्ञ के संदर्भ में इन्द्र द्वारा अङ्गुष्ठोदर पर्व मात्र शरीर वाले वालखिल्य ऋषियों का दर्शन - अथापश्यदृषीन्ह्रस्वानङ्गुष्ठोदरवर्ष्मणः। ), ११४.२०( गान्धारी से उत्पन्न मांस पिण्ड का सिंचन होने पर उसका एक सौ अङ्गुष्ठ पर्वमात्र गर्भों में विभाजित होने का उल्लेख - सा सिच्यमाना ह्यष्ठीला ह्यभवच्छतधा तदा। अङ्गुष्ठपर्वमात्राणां गर्भाणां तत्क्षणं तथा।। ), वन २९७.१७( यम द्वारा सत्यवान् के अङ्गुष्ठ मात्रपुरुष का कर्षण - ततः सत्यवतः कायात्पाशबद्धं वशंगतम्। अङ्गुष्ठमात्रं पुरुषं निश्चकर्ष यमो बलात् ।। ), उद्योग ४६.२७( अङ्गुष्ठ मात्र पुरुष के सबके हृदय में स्थित होने पर भी दिखाई देने का उल्लेख - अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषो महात्मा; दृश्यतेऽसौ हृदये निविष्टः  ), १३१.५( दुर्योधन द्वारा कृष्ण के बन्धन की चेष्टा पर कृष्ण के शरीर में स्थित अङ्गुष्ठ मात्र देवों द्वारा आग की लपटें छोडना - अङ्गुष्ठमात्रास्त्रिदशा बभूवुः पावकार्चिषः तस्य ब्रह्मा ललाटस्थो रुद्रो वक्षसि चाभवत् ।। ), द्रोण १७५.६३( कर्ण से युद्ध में घटोत्कच का अङ्गुष्ठ मात्र रूप धारण करना - अङ्गुष्ठमात्रो भूत्वा पुनरेव राक्षसः। सागरोर्मिरिवोद्वूतस्तिर्यगूर्ध्वमवर्तत।। ), १८१.१९( एकलव्य के साङ्गुष्ठ होने पर देवों, दानवों आदि से अविजित होने का उल्लेख - एकलव्यं हि साङ्गुष्ठमशक्ता देवदानवाः। सराक्षसोरगाः पार्थ विजेतुं युधि कर्हिचित्।।), अनुशासन १०४.१००( भोजन के पश्चात दक्षिण चरण के अङ्गुष्ठ के अवसेचन का उल्लेख - अङ्गुष्ठं चरणस्याथ दक्षिणस्यावसेचयेत्।। ), १०४.१०३( अङ्गुष्ठ मूल में ब्राह्म तीर्थ, अङ्गुष्ठ तर्जनी के बीच पितृ तीर्थ होने का उल्लेख ), १४१.१०१( वालखिल्य ऋषियों के अङ्गुष्ठ पर्व मात्र होकर तपोरत होने का उल्लेख ), लक्ष्मीनारायण १.४३४.४९( विष्णुमती द्वारा पादाङ्गुष्ठ से वह्नि का उत्पादन कर पति सहित भस्म होना - सती पतिव्रता भार्या विष्णुमती सतीत्वतः ।पादाङ्गुष्ठात् समुत्पाद्य वह्निं नत्वा महाजनान् ।। ), १.४३८.१०८( पुण्यनिधि - पत्नी विन्ध्यावली द्वारा पादाङ्गुष्ठ से वह्नि प्रज्वलित करने का उल्लेख - पतिव्रता पतिप्राणा लक्ष्मीकृष्णपरायणा समुत्पाद्य सती वह्निं पादाङ्गुष्ठाच्चितोपरि ।। ) angushtha

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