Agnidatta - Agnishtoma
Puraanic contexts of words like Agnidatta and Agnishtoma etc. are described here .अग्निदत्त वराह १५५.६३( अग्निदत्त ब्राह्मण का इष्टकाओं की चोरी करने के कारण ब्रह्मराक्षस बनना, सुधना वणिक् द्वारा पुण्यदान से मुक्ति ), कथासरित् १.७.४२( गोविन्ददत्त ब्राह्मण की पत्नी अग्निदत्ता : पांच मूर्ख पुत्रों की माता ), ८.६.२००( अग्निदत्त द्वारा स्वकन्या सुन्दरी का गुणशर्मा से विवाह करना ) agnidatta
अग्निध्र वायु २९.१८( धिष्ण्य अग्नि का एक नाम, अग्नि व नदी - पुत्र ), ३.१.१७( स्वायम्भnव मनु - पुत्र ), ३३.९( अग्नीध्र : प्रियव्रत - पुत्र, जम्बू द्वीप का अधिपति ) द्र. आग्नीध्र agnidhra
अग्निबाहु मत्स्य ९.४( स्वायम्भnव मनु - पुत्र ), वायु १००.११६/२.३८.११६( १४वें मन्वन्तर में भौत्य मनु - पुत्र ), विष्णु २.१.७( प्रियव्रत - पुत्र, योग साधना में रत )
अग्निबिन्दु स्कन्द ४.२.६०( अग्निबिन्दु मुनि द्वारा पञ्चनद तीर्थ में विष्णु की स्तुति ), ४.२.६१( अग्निबिन्दु द्वारा विष्णु से काशी के तीर्थों के माहात्म्य का श्रवण, सुदर्शन चक्र के स्पर्श से ज्योति रूप में कौस्तुभ मणि से एकाकार होना ), लक्ष्मीनारायण १.४४६.५४( अग्निबिन्दु द्वारा बिन्दु तीर्थ में तप से श्रीहरि का बिन्दु तीर्थ में वास ) agnibindu
अग्निमन्थ भविष्य १.५७.१७( वरुण हेतु अग्निमन्थ बलि का उल्लेख )
अग्निमरुत हरिवंश १.४६.३२( पावक व मरुत द्वारा मय द्वारा सृष्ट पार्वती माया का शमन )
अग्नीमीड भविष्य ४.४६( नहुष - पुरोहित, मानमानिका - पति ) agnimeeda
अग्निमुख पद्म ५.१११( शिव/वीरभद्र - गण, दुष्ट विधृत राजा की मृत्यु से रक्षा, मृत्यु को शूली पर आरोपित करना ), ब्रह्माण्ड १.२.२०.२६( अग्निमुख दैत्य का तृतीय तल में वास ) agnimukha
अग्निवर्ण शिव ५.३९.२७( ध्रुव - पुत्र, शीघ्र| - पिता )
अग्निवेश्य भागवत ९.२.२१( देवदत्त - पुत्र, अग्नि का अवतार, जातूकर्ण्य व कानीन उपनाम ), वामन ९०, वायु २३.२०७( २४वें द्वापर में शूली - पुत्र ), शिव ३.५, स्कन्द १.२.९.४०( स्वकन्या के अपहरण पर कुशध्वज को गृध्र बनने का शाप देना ), योगवासिष्ठ १.१.९( कारुण्य - पिता, पुत्र को कर्म से मोक्ष प्राप्ति के उपाय का कथन ) agniveshya
अग्निशर्मा मत्स्य १९९.७( कश्यप कुल के गोत्र प्रवर्तक ऋषि अग्निशर्मायण ), वायु १०६.३३( गया में श्राद्ध हेतु ब्रह्मा के मानस से सृष्ट ऋत्विज अग्निशर्मा द्वारा मुख से गार्हपत्य आदि ५ अग्नियों की सृष्टि ), स्कन्द ५.१.२४( सुमति व कौशिकी - पुत्र, दुष्ट चरित्र, सप्तर्षियों में से अत्रि द्वारा बोध, वाल्मीकि बनना ), लक्ष्मीनारायण १.४.७९( सुमति व कौशिकी - पुत्र, दुष्ट चरित्र, सप्तर्षियों में से अत्रि द्वारा बोध, वाल्मीकि बनना ), कथासरित् १८.५.१०४( सोमशर्मा - पुत्र, मूर्ख, शकुन देवता द्वारा मृत्यु दण्ड से रक्षा की कथा ) agnisharmaa
अग्निशिख पद्म ५.११०( राजा द्वारा शिव पूजा से वीरभद्र का अग्निशिख नामक गण बनना ), कथासरित् १.२.३०( सोमदत्त ब्राह्मण का उपनाम, वसुदत्ता - पति, वररुचि - पिता ), ७.५.६०( बक रूप धारी राक्षस अग्निशिख द्वारा स्वकन्या रूपशिखा का राजकुमार शृङ्गभुज से विवाह करना ), १८.२.२३( राजा विक्रमादित्य के अनुचर अग्निशिख वेताल द्वारा दुराचारी कापालिक का वध तथा अन्य वेताल यमशिख से विक्रमादित्य के प्रभाव का वर्णन करना ), १८.२.५४( अग्निशिख द्वारा कितव से रूप व प्रभाव के बदले महामांस का क्रय करना ), १८.२.६४( कितव द्वारा अग्निशिख को कूप में धकेलना, अग्निशिख द्वारा ब्रह्मराक्षसों से युद्ध व मैत्री करना, ठिण्ठाकराल नामक कितव का वृत्तान्त सुनना ), १८.२.२०५( अग्निशिख का कूप से निकल कर ब्राह्मण के भक्षण को उद्धत होना, विक्रमादित्य द्वारा ब्राह्मण की रक्षा ) agnishikha
अग्निष्टोम कूर्म १.१४.९( अग्निष्टुत~ : मनु के १० पुत्रों में से एक ), पद्म १.३.१११( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम की उत्पत्ति ), १.३०.१११( बलि द्वारा पुरन्दर के दर्शन को अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल के तुल्य कहना ), ३.११.१९( तीर्थयात्रा के फल की अग्निष्टोम आदि के फल से श्रेष्ठता ), ३.१२.५( अगस्त्य आश्रम में आकर पितृ व देव अर्चना करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.१२.१३( नर्मदा नदी में पितरों व देवों के तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.३( दक्षिण सिन्धु में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.४( चर्मण्वती नदी में आने से रन्तिदेव द्वारा अनुज्ञात अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२४.७( प्रभास तीर्थ में अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२५.८( मणिमान् में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२५.१९( चमसोद्भेद में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति, शिवोद्भेद में स्नान से गो सहस्र फल का उल्लेख ), ३.२६.१०( पारिप्लव तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.४६( सूर्य तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.४९( लवर्णक द्वारपाल के तीर्थ में सरस्वती में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.६७( आपगा नदी में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२६.७१( सर्वक तीर्थ में समन्तक ह्रद आदि में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२७.४२( सरस्वती - अरुणा सङ्गम पर स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२७.६५( अस्थिपुर में पावन तीर्थ में तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.२८.४( कलापावन तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३२.१६( कार्तिक माघ तीर्थ में आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३२.४४( गोमती - गङ्गा सङ्गम पर आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३८.३४( विशाला नदी पर आने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.८( शोण व ज्योतिरथ्या के सङ्गम पर तर्पण से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.३५( कन्याश्रम में गमन मात्र से शत अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३९.५३( मेधावन में आकर तर्पण करने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ६.४३.५४( जया एकादशी से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.१२३.८( मास उपवास के फल की अग्निष्टोम के फल से श्रेष्ठता का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड २.३.१५.११( अतिथि को पायस दान से अग्निष्टोम फल प्राप्ति ), भविष्य १.१३५.४४( सूर्यदेव को वारि, पय: पायस, घृत, मधु व इक्षु रस से स्नान कराने पर क्रमश: अग्निष्टोम, गोमेध, ज्योतिष्टोम, वाजपेय, राजसूय व अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ४.५७.१८( कार्तिक कृष्ण अष्टमी को शिव की रुद्र नाम से अर्चना करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), भागवत ४.१३.१५( चक्षु व नड्वला - पुत्र ), मत्स्य ५३.३२( भविष्य पुराण दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वराह १४०.१९( कोकामुख/बदरी क्षेत्र में विष्णुधारा में स्नान से सहस्र अग्निष्टोमों के फल की प्राप्ति ), २१५.६८( पञ्चनद तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), वायु ९.४९( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम यज्ञ की उत्पत्ति ), विष्णु १.५.५३( ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से अग्निष्टोम यज्ञ की उत्पत्ति ), विष्णुधर्मोत्तर १.१०७.३६( अग्निष्टोम की ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से तथा अन्य मुखों से अन्य यज्ञों की उत्पत्ति ), १.१६६.३५( कार्तिक मास में द्विज गृह में दीप दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), १.१८१.२( षष्ठम चाक्षुष मन्वन्तर वर्णन के संदर्भ में चाक्षुष मनु के १० पुत्रों में से एक ), २.९५.१५( सोम संस्था वाले ७ यज्ञों में से एक ), ३.१८.१( २० मध्यम ग्रामिकों में से एक ), ३.२१८.९( कार्तिक में दशाह व्रत से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ३.२६७.१४( सङ्ग्राम में शूरता का अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल से अधिक महत्त्व होने का उल्लेख ), ३.२९६.१३( वर्षा, शरद, हेमन्त, शिशिर, वसन्त व ग्रीष्म ऋतुओं में तडाग में जल उपलब्ध कराने पर क्रमश: अग्निष्टोम, द्वादशाह, गोसव, पौण्डरीक, वाजपेय व अश्वमेध फल की प्राप्ति ), ३.३१३.७( विभिन्न प्रकटर के वस्त्रों के दान के संदर्भ में मृग लोम से निर्मित वस्त्र दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.७८( आरण्य मतगों व पक्षियों के दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.१६६( बकुल निर्यास से जनार्दन का अनुलेप करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.३४१.१८२( दुकूलक दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), शिव ५.१३.२१( शिव कथा श्रवण मात्र से १०० अग्निष्टोमों के फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३०.१५( चाक्षुष मनु व नड्वला के १० पुत्रों में से एक ), ७.१.१२.५९( अग्निष्टोम की ब्रह्मा के पूर्व दिशा के मुख से तथा अन्य मुखों से अन्य यज्ञों की उत्पत्ति ), स्कन्द १.२.३४.६७( शिव लिङ्ग का क्षीर व पञ्चामृत से स्नान कराने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), २.१.३४.१९( मकर सङ्क्रान्ति को अग्निस्त्येश लिङ्ग के दर्शन से सहस्र अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ३.१.३६.९१, ३.१.३६.१७३( एकादशी को महालय श्राद्ध करने से अग्निष्टोम आदि यज्ञों के फल की प्राप्ति, न करने से किए हुए अग्निष्टोम यज्ञ का निष्फल होना ), ३.१.४२.४२( नल तीर्थ में स्नान से अग्निष्टोम आदि फल की प्राप्ति ), ५.२.२८.१२( अच्छिद्र वाक् से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.२.४०.४१( कुण्डेश्वर लिङ्ग पूजा से अग्निष्टोम फल प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.३८.७२( नर्मदेश्वर तीर्थ में सुवर्ण या रजत आदि दान से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.४०.१९( करञ्जेश्वर तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१२०.२४( कम्बु तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ५.३.१२२.३५( कोहनस्व तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ५.३.१२७.३( अग्नि तीर्थ में कन्या दान से अग्निष्टोम व अतिरात्रों से भी सौ गुने फल की प्राप्ति ), ५.३.१२८.४( भृकुटेश्वर तीर्थ में शिव की पूजा से अग्निष्टोम से ८ गुने फल की प्राप्ति ), ५.३.१४५.२( शिव तीर्थ में स्नान आदि से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ५.३.१४६.५९( अमावास्या को ब्रह्मशिला पर श्राद्ध करने से अग्निष्टोम फल की प्राप्ति का उल्लेख ), ६.९०.६७( अग्नि तीर्थ में अग्नि सूक्त का जप करने के पश्चात~ ब्रह्मा के दर्शन करने पर अग्निष्टोम फल की प्राप्ति ), ६.१७९.६६+ ( पुष्कर - त्रय की स्थिरता हेतु ब्रह्मा द्वारा अग्निष्टोम - त्रय के यजन का वर्णन : दीक्षा कर्म हेतु ब्रह्मा की पत्नी सावित्री के यज्ञ में न आने पर इन्द्र द्वारा गोपकन्या का गौ शरीर से पारण कर शुद्ध करके ब्रह्मा की पत्नी गायत्री बनाना ; यज्ञ के प्रथम दिन एकादशी को कपाली रुद्र का उपद्रव व शान्ति, दूसरे दिन सर्प द्वारा होता का वेष्टन आदि, तीसरे दिन नागर अतिथि का आगमन और अतिथि द्वारा सिद्धि प्राप्ति के हेतुभूत पिङ्गला, कुरर, सर्प, भ्रमर, इषुकार व कन्या रूपी ६ गुरुओं से शिक्षा प्राप्ति का वर्णन, यज्ञ के चतुर्थ दिन राक्षस द्वारा होम हेतु सुरक्षित पशु के अङ्गों में से गुद के भक्षण का वृत्तान्त, यज्ञ के पांचवें दिन पर्वत - कन्या औदुम्बरी द्वारा उद्गाता को शङ्कु प्रचार कर्म के सम्बन्ध में प्रबोधना और स्वर्ग गमन, सावित्री का यज्ञान्त में यज्ञ में आगमन और गायत्री को ब्रह्मा - पत्नी बनाने पर देवों को शाप, गायत्री द्वारा देवों को वरदान आदि ), महाभारत वन २२२.६( अग्निष्टोम में भरत/नियत अग्नि के निवास का उल्लेख ), अनुशासन १०६.३६( उपवास द्वारा अग्निष्टोम फल प्राप्ति का कथन ), लक्ष्मीनारायण २.२६१.३१( अग्निष्टोम शब्द की व्याख्या ) agnishtoma