A - Akshara
Puraanic contexts of words like A, Amsha, Amshu, Akruura, Aksha/dice/gem, Akshara etc. are described here
Veda study on Akruura/non-cruel
३ द्र. त्रयी
६ द्र. कृत्तिका, षडानन, षड्गर्भ
७ गरुड २.३८.६(मोक्षदायिका ७ पुरियों के नाम), नारद १.१४.७५( विवाह में सप्तम पद में नारी के स्वगोत्र से भ्रष्ट होने के कारण नारी की पिण्डोदक क्रिया स्वामी के गोत्र में करने का निर्देश ), ब्रह्माण्ड १.२.१९.१९५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), भागवत १.१३.५१(गङ्गा के सप्तस्रोता होने का श्लोक), १२.४.५( प्राकृतिक प्रलय में प्रलय काल में ७ प्रकृतियों के लय का उल्लेख ), वराह ६७.२(पावक रूप पुरुष के सप्तधा विभाजित होने का प्रश्न व उत्तर), वायु ४९.१८५( सात प्रकृतियों द्वारा परस्पर धारण का कथन ; ७ संख्या का विस्तार ), स्कन्द १.२.२२.२७(तारकासुर की मृत्यु ७ दिन के बालक से होने का कथन)
८ गरुड २.४.९(छत्र आदि ८ पदों के नाम), महाभारत वन २.१८(अष्टाङ्ग बुद्धि का कथन), २.७५(अष्टविध धर्म का कथन)
१० गरुड २.४.४(दस दानों के नाम), ३.२.५.२०(१० यमों तथा १० नियमों के नाम)
११ गरुड २.४०.२९(११ पिण्डों हेतु मन्त्र), द्र. एकादश
१२ भविष्य ३.४.८.८८(अव्यक्त स्थिति में बुद्धि के १२ अंगों वाली होने का उल्लेख), भागवत ६.३.२१( भागवत धर्म को जानने वाले १२ व्यक्तियों के नाम )
१३ गरुड २.५.१४६(यम के श्रवण नामक १३ प्रतीहारों का गण), २.१८.१५(प्रेत हेतु १३ पदों का कथन)
१४ गरुड २.२२.५२(१४ लोकों का शरीर में न्यास), स्कन्द ७.१.५१.१४(५ लिङ्गों व ९ ग्रहों समेत १४ का कथन), लक्ष्मीनारायण ३.३.३७ (१४ स्तरों वाले मेरु के अतिभार से रसातल में धंसने पर मेरु के उद्धार हेतु मेरुनारायण अवतार का कथन),
१६ महाभारत शान्ति २६८.२६/२६०.२६(पशु, मनुष्य आदि यज्ञ के १६ अंगों के नाम, यजमान १६वां, अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन), ३०४( अज्ञानी के प्रकृति की १६ कलाओं में जन्म लेने तथा १६वीं कला के सूक्ष्म व सोम होने का कथन ), स्कन्द ७.१.११८.१० (हंस की १६ कलाओं के नाम) द्र. षोडश
१७ महाभारत शान्ति २६८.२६/२६०.२६(अग्नि गृहपति के १७वां होने का कथन)
१८ भविष्य ३.४.८.९०(अहंकार रूपी वृष के १८ अंगों का कथन)
२० गरुड २.१९.२(चित्रगुप्त पुर के २० योजन होने का उल्लेख)
२१ गरुड २.१८.३०(नरकों में २१ मुख्य नरकों के नाम), ब्रह्माण्ड २.३.३०.७३( रेणुका द्वारा २१(त्रि: सप्त) बार हृदय का ताडन करने से परशुराम द्वारा २१ बार क्षत्रियों का संहार करने की प्रतिज्ञा), द्र. एकविंशति
२४ गरुड २.१९.३(वैवस्वत पुर २४ योजन होने का उल्लेख), स्कन्द ७.१.९.५३(ब्रह्मा के २४ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
२५ शिव ६.९.९( परा प्रकृति के २३ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख, पुरुष के २५ होने का उल्लेख ), महाभारत शान्ति ३१८.६८( अबुध्यमाना प्रकृति द्वारा २५ को न जानने तथा २५ द्वारा प्रकृति को जानने का कथन), स्कन्द ७.१.९.५३(विष्णु के २५ तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
२६ महाभारत शान्ति ३१८.५५(केवली भूत द्वारा २६वें तत्त्व का दर्शन करने का कथन), स्कन्द ७.१.९.५३( शिव के २६तत्त्वात्मक होने का उल्लेख)।
४० स्कन्द ३.२.४.५०(यम – पठित शिव के ४० नाम)
४९ लक्ष्मीनारायण १.३१४.१८(सन्ध्या को देखने से ४९ भावों की उत्पत्ति का उल्लेख)
५५ भागवत ९.२०.२५( भरत द्वारा गङ्गा तट पर ५५ अश्वमेध करने का उल्लेख ), मत्स्य २४.३१( भरत मुनि द्वारा उर्वशी को ५५ वर्षों तक सूक्ष्म लता होने का शाप )
६० ब्रह्माण्ड २.३.६३.१४७(सगर के षष्टि सहस्र पुत्रों का कपिल के तेज से भस्म होना, चार अवशिष्ट पुत्रों के नाम), शिव ७.१.१७.२९(क्रतु व सन्नति के ऊर्ध्वरेतस ६० हजार वालखिल्य पुत्रों का कथन),
६४ देवीभागवत १२.११.९२(६४ आगमों का उल्लेख), भागवत १०.४५.३६ (बलराम व कृष्ण द्वारा अहोरात्र में ६४ कलाओं को सीखने का उल्लेख), मत्स्य २७०.६( ६४ स्तम्भों वाले मण्डप के पुष्पक नाम का उल्लेख ),
७८ भागवत ९.२०.२६( भरत द्वारा यमुना तट पर ७८ अश्वमेधों का अनुष्ठान )
८४ स्कन्द ५.२.१+ (अवन्ती में ८४ लिङ्ग व उनका माहात्म्य),
९६ अग्नि २४२.१४( पुरुष का उत्सेध ९६ अंगुल होने का उल्लेख), गरुड ३.२२.५( विष्णु के एक लक्षणों में ९६ अंगुल अंग का उल्लेख), ब्रह्माण्ड ३.४.२.१२३(धनुष का प्रमाण ९६ अंगुल होने का उल्लेख), भागवत ५.२४.१६(बल असुर की ९६ मायाओं का उल्लेख), मत्स्य १४५.७(आठों देवयोनियों का उत्सेध ९६ अंगुल होने का उल्लेख), २२७.१४(छद्म रूप में दोषवती कन्या देने पर ९६ पण दण्ड का उल्लेख), वायु १०१.१२४ /२.३९.१२४(धनुष का प्रमाण ९६ अंगुल होने का उल्लेख), ६.२७१.३३०(कूर्म द्वारा स्वयं की आयु ९६ कल्प बताना),
१०० भागवत ४.१९(महाराज पृथु के १००वें अश्वमेध यज्ञानुष्ठान में इन्द्र द्वारा पुन: पुन: व्यवधान का वर्णन),
अ अग्नि ३४८.१( अ का विष्णु व प्रतिषेध के अर्थों में उपयोग ), स्कन्द ४.१.२१.३४( अकार की अक्षरों में श्रेष्ठता का उल्लेख ), ५.१.४.२८( ब्रह्मा से उत्पन्न अकार अग्नि का ब्रह्मा से भोजन पाकर संतुष्ट होना, ब्रह्मा द्वारा अकार अग्नि को तेज में स्थान देना), ५.१.४.४१(अकार अग्नि के वाक् में स्थान, अचाक्षुष), ७.१.४.२८(अकार अग्नि की उत्पत्ति व देह में कार्य का कथन), द्र उकार, ओंकार
अंश अग्नि ३२५.१( अंशक : मन्त्रों के ब्रह्म, वैष्णव, रुद्र, यक्ष आदि अंशकों का वर्णन ), गरुड ३.१२.५०(सरस्वती व विष्णु का अंशावतरण न होने का उल्लेख), ब्रह्माण्ड १.२.३६.११( तुषित देवताओं में से एक ), विष्णु १.१५.१३१( द्वादश आदित्यों में से एक ), हरिवंश ३.५३.१४( अंश का कुजम्भ से युद्ध ), योगवासिष्ठ ६.२.१३.२९( इन्द्र के कुल के एक राजा अंशक का उल्लेख ), amsha, ansha
अंशु भविष्य ३.४.१८.१७( संज्ञा व सूर्य के विवाह के अवसर पर प्रांशु आदित्य के शकटासुर से युद्ध का उल्लेख ), मार्कण्डेय ११७.१/११४.१( प्रांशु : वत्सप्री व सुनन्दा के १२ पुत्रों में से एक ), वायु १००.८९/२.३८.८९( हरित गण के १० देवों में से एक ), विष्णु ४.१२.४३( पुरुमित्र - पुत्र, सत्वत - पिता, क्रोष्टु/यदु वंश ), लक्ष्मीनारायण ३.२९( अंशुक्रमथ राजर्षि की भक्ति से साधु नारायण व साध्वी नारायणी का प्राकट्य )amshu, anshu
अंशुमती स्कन्द ३.३.७( द्रविक गन्धर्व की कन्या अंशुमती का धर्मगुप्त राजकुमार से विवाह ), ४.१.२९.३९( गङ्गा सहस्रनामों में से एक ), ७.१.३४४.३( अंशुमती नदी की जरद्गव तीर्थ में स्थिति )amshumatee/anshumati
अंशुमान् नारद १.८.११८( असमञ्जा - पुत्र, सगर - पौत्र, कपिल को प्रसन्न करके वर प्राप्ति ), ब्रह्माण्ड २.३.५४.२३( असमञ्जा - पुत्र, सगर - पौत्र, कपिल को प्रसन्न करके वर प्राप्ति ), भागवत ९.८.२०( असमञ्ज - पुत्र, सगर - पौत्र अंशुमान् द्वारा कपिल की स्तुति - अंशुमांश्चोदितो राज्ञा तुरगान्वेषणे ययौ । पितृव्यखातानुपथं भस्मान्ति ददृशे हयम् ॥), मत्स्य २०.१८( जन्मान्तर में चक्रवाक बने कौशिक के सात पुत्रों में से एक का नाम - सुमनाः कुमुदः शुद्धश्छिद्रदर्शी सुनेत्रकः। सुनेत्रश्चांशुमांश्चैव सप्तैते योगपारगाः।। ), वामन ५६.७०( अंशुमान् द्वारा स्कन्द को ५ प्रमथगण प्रदान करना ), स्कन्द ५.३.१९१.१५( अंशुमान् आदित्य द्वारा विष्णु मुख से निकल कर जगत का दहन करते हुए इधर - उधर भ्रमण करने का उल्लेख - ऊर्ध्वतश्चैव सविता ह्यधः पूषा विशोषयन् । अंशुमांस्तु तथा विष्णुर्मुखतो निर्गतं जगत् ॥ प्रदहन्वै नरश्रेष्ठ बभ्रमुश्च इतस्ततः । ), हरिवंश १.१५.१३( पञ्चजन - पुत्र, दिलीप - पिता ), वा.रामायण १.३८, १.४१( असमञ्जस - पुत्र, रसातल से यज्ञीय अश्व को लाना, गङ्गा अवतरण हेतु तप ), amshumaan/anshuman
अंशुमाला नारद १.९१.६६( अंशुमालिनी : ईशान शिव की पञ्चम कला का नाम ), स्कन्द ४.१.२९.३९( गङ्गा सहस्रनामों में से एक )amshumaalaa/anshumala
अकबर भविष्य ३.४.२२( अकबर शब्द की निरुक्ति, पूर्व जन्म में मुकुन्द ब्राह्मण ), द्र. ऋग्वेद में अकवा अकवारि सरस्वती Akbar
अकम्पन ब्रह्माण्ड २.३.७.१३६( खशा - पुत्र ), वायु ६९.१६७( खशा - पुत्र, राक्षस ), वा.रामायण ३.३१( रावण को खर - दूषण की मृत्यु का समाचार देना, सीता हरण का परामर्श ), ६.५५( रावण - सेनानी, हनुमान द्वारा वध ), ६.५९.१४( रावण - सेनानी, स्वरूप ), ७.५.४०( सुमाली व केतुमाली - पुत्र ), स्कन्द ३.१.४४.३४(कुमुद वानर द्वारा अकम्पन के वध का उल्लेख), कथासरित् १५.२.१९( राजर्षि अकम्पन द्वारा स्व कन्या मन्दर देवी का नरवाहनदत्त से विवाह आदि )akampana द्र. कम्पन
अकूपार भागवत ५.१८.३०( कच्छप अवतार की अकूपार संज्ञा, अर्यमा देव द्वारा उपासना), महाभारत वन १९९.८(चिरजीवियों में अकूपार कच्छप द्वारा राजा इन्द्रद्युम्न का प्रत्यभिज्ञान करना), akupar/akuupaara
अकृतव्रण ब्रह्माण्ड २.३.२५.७४( परशुराम द्वारा व्याघ्र से मोचित द्विज पुत्र का नाम ), २.३.३४+ ( परशुराम - शिष्य ),भागवत १०.७४.९( युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के ऋत्विजों में से एक ), १२.७.५( पुराणों के ६ आचार्यों में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर १.४५( परशुराम द्वारा साल्व को प्रेषित दूत )akritavrana
अक्रम कथासरित् ८.७.२४( सूर्यप्रभ व श्रुतशर्मा विद्याधर के युद्ध में प्रियंकर द्वारा अक्रम का वध )akram
अक्रूर गर्ग १.५.२४( दक्ष प्रजापति का अंश ), ५.३( कंस की आज्ञा से नन्द ग्राम गमन ), ५.४( कृष्ण से भावी वियोग पर गोपियों द्वारा अक्रूर व उनके रथ का ताडन ), ५.५( यमुना जल में स्नान पर कृष्ण के परब्रह्म स्वरूप का दर्शन व स्तुति ), ५.९.३७( कृष्ण की आज्ञा से हस्तिनापुर से पाण्डवों का समाचार लाना ), ७.२.२०( प्रद्युम्न को विजय नामक शंख भेंट ), ७.८.१२( शिशुपाल् - मित्र द्युमान् से युद्ध ), ७.२०.३४( प्रद्युम्न - सेनानी, यज्ञकेतु से युद्ध ), १०.४९.१७( कर्ण से युद्ध ), नारद १.६६.११०( अक्रूर की शक्ति आस्या का उल्लेख ), पद्म ६.८९( पूर्व जन्म में चन्द्रशर्मा नामक देवशर्मा - शिष्य ), ब्रह्म १.१५( स्यमन्तक मणि हरण की कथा ), १.८३( कृष्ण दर्शन की लालसा, गोकुल गमन, यमुना जल में कृष्ण दर्शन आदि ), ब्रह्मवैवर्त्त ४.६५( कृष्ण को लाने की आज्ञा से हर्ष ), ४.७०( कृष्ण के समीप गमन ), ४.१०४.९३( उग्रसेन के राज्याभिषेक के समय अक्रूर द्वारा छत्र धारण करने का उल्लेख ), ब्रह्माण्ड ३.४.४४.५०( लिपि न्यास प्रसंग में एक व्यञ्जन के देवता का नाम ), भागवत १०.३६( कंस द्वारा कृष्ण को लाने के लिए प्रेषण ), १०.३८( व्रज यात्रा, कृष्ण दर्शन की उत्कण्ठा ), १०.३९( स्नान करते समय कृष्ण व बलराम के दर्शन, कृष्ण की स्तुति ), १०.४८( कृष्ण का अक्रूर के गृह में आगमन, अक्रूर द्वारा स्तुति ), १०.४९( हस्तिनापुर गमन, धृतराष्ट्र को परामर्श ), १०.५७( स्यमन्तक मणि हरण के लिए शतधन्वा को प्रेरणा, द्वारका से पलायन, अनावृष्टि निवारण हेतु पुन: आगमन, कृष्ण को मणि देना ), ११.३०( भोज से युद्ध ), मत्स्य ४५.२६( वृषभ व जयन्ती - पुत्र ), वराह १५५( अक्रूर तीर्थ का माहात्म्य : सुधना वैश्य के ब्रह्मराक्षस द्वारा धर्षण की कथा ), विष्णु ४.१३.१०८( स्यमन्तक मणि प्राप्ति के पश्चात् यज्ञ में प्रवृत्ति, द्वारका त्याग व अनावृष्टि निवारण हेतु पुन: आगमन ), ५.१५+ ( कंस की आज्ञा से कृष्ण व बलराम को मथुरा लाने का उद्योग ), ५.१८( यमुना जल में स्नान के समय कृष्ण व बलराम के दर्शन, मोह ), स्कन्द २.४.१३( पूर्व जन्म में चन्द्र नामक देवशर्मा - शिष्य ), ५.१.२६.३५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य ), ५.२.३९.२५( अक्रूरेश्वर लिङ्ग का माहात्म्य, भृङ्गिरिटि द्वारा क्रूर बुद्धि विनाश हेतु स्थापना ), हरिवंश १.३४.११( श्वफल्क व गान्दिनी - पुत्र ), १.३९( स्यमन्तक मणि प्राप्ति, कृष्ण को दान व प्रतिदान ), १.३९.३१( अक्रूर की अनुपस्थिति से अनावृष्टि ), २.२२.८५( कंस द्वारा कृष्ण को मथुरा लाने की आज्ञा ), २.२५( कृष्ण का दर्शन ), २.२६( यमुना में अनन्त और विष्णु के दर्शन का प्रसंग ), २.३६.२( कैशिक से युद्ध ) कृष्णोपनिषद १६( सत्य का रूप )akrur
अक्ष नारद १.७१.७२( शत्रु के विरुद्ध अभिचार कर्म के अन्तर्गत शत्रु की प्रतिमा को अक्ष काष्ठों द्वारा प्रज्वलित अग्नि में फेंकने का उल्लेख ), ब्रह्म २.५३.२४( देवों की ओर से असुरों से युद्ध करते हुए राजा दशरथ के रथ के अक्ष के छिन्न होने और कैकेयी द्वारा स्वहस्त को अक्ष बनाने का वृत्तान्त ),ब्रह्माण्ड २.३.६.११( दनु - पुत्र ), भविष्य १.५२.१५( सूर्य के एक चक्र रथ में क्षणों के अक्ष दण्ड होने का उल्लेख ; चक्र के अक्ष में निबद्ध होने व अक्ष के ध्रुव में समर्पित होने आदि का कथन ), ४.६४.३( नल के अक्ष/द्यूत क्रीडा में पुष्कर से हारने का उल्लेख ), भागवत २.१.१८( मन व बुद्धि की सहायता से अक्षों को विषयों से हटाने का निर्देश ), ७.१५.४२( शरीर रूपी रथ में अक्ष रूपी १० प्राणों व धर्म- अधर्म रूपी चक्र-द्वय का कथन), १०.६१.२८( अनिरुद्ध के विवाह के पश्चात् रुक्मी व बलराम में अक्ष क्रीडा का वर्णन : रुक्मी द्वारा बलराम को अक्ष क्रीडा में अभिज्ञ कहना ), मत्स्य १३३.१७( त्रिपुर वधार्थ निर्मित शिव के रथ में मन्दर पर्वत के अक्ष व सूर्य – चन्द्र के चक्रद्वय होने का उल्लेख ), लिङ्ग १.५५.७( सूर्य के तीन नाभियों वाले एक चक्र रथ में चक्र के अक्ष में व अक्ष के ध्रुव में निबद्ध होने आदि का कथन ), वायु ९६.२३८( कृष्ण - पुत्र ), विष्णु २.८.६( सूर्य के रथ के दो अक्षों के युग प्रमाण का कथन ), विष्णुधर्मोत्तर २.८.४१( षोडशाक्ष पुरुष के लक्षण ), शिव ५.३४.४८( अक्षत्वान् : दशम मन्वन्तर में मनु के १० पुत्रों में से एक ), ५.३७.४१( अक्षाश्व : संहताश्व के २ पुत्रों में से एक ), ७.२.१४.३६( माला के अक्षों की संख्या अनुसार फल प्राप्ति का वर्णन ), स्कन्द १.२.३८.५( सूर्य के रथ के दो अक्षों के योजन प्रमाणों का कथन ; तु. विष्णु पुराण ), ४.२.५५.१२( पञ्चाक्षेश लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५५.१५( त्र्यक्ष लिङ्ग का संक्षिप्त माहात्म्य ), ४.२.५७.९१( कूणिताक्ष विनायक का संक्षिप्त माहात्म्य ), ५.३.२८.११( बाण के त्रिपुर नाश हेतु शिव के रथ में इन्द्र/सुरेश्वर के अक्ष बनने का उल्लेख ), महाभारत द्रोण १९०.१९, १५१.१०( युद्ध में बाणों की द्यूत में अक्षों से साम्यता का उल्लेख ), अनुशासन ४२.२५, ४३.५( विपुल ब्राह्मण द्वारा स्वर्ण - रजत अक्षों से द्यूतक्रीडा करते हुए ६ पुरुषों के दर्शन, पुरुषों का ऋतुओं के रूप में परिचय पाना ), योगवासिष्ठ १.१८.३५( देह में अक्षों की ऋक्षों से उपमा ), लक्ष्मीनारायण २.२३५.२६( कृष्ण द्वारा तामसाक्षि भक्त चाण्डाल के जलमहन परिवार की रक्षा ), २.२४५.४९( जीव रथ में विचार रूपी अक्ष ), ३.१३२.५९( ऋग्वेद की अक्षसूत्र सहित पूजा का उल्लेख ), कथासरित् १२.७.१४८( अक्षक्षपणक कितव की कर्कशा माता का वृत्तान्त ) द्र. अभयाक्ष, अमोघाक्ष, कमलाक्ष, काञ्चनाक्षी, कामाक्षा, कुटिलाक्ष, कोटराक्ष, ताम्राक्ष, तारकाक्ष, धूम्राक्ष, पिङ्गाक्ष, पुष्कराक्ष, बिडालाक्ष, मकराक्ष, यूपाक्ष, रत्नाक्ष, रुद्राक्ष, लम्बाक्ष, लोहिताक्ष, विरूपाक्ष, विशालाक्षी, शकटचक्राक्ष, शक्त्यक्षि, शताक्षी, शोणिताक्ष, षोडशाक्ष, सहस्राक्ष, सुचक्राक्ष, सुधूम्राक्ष, सुपर्णाक्ष, सुवर्णवर्माक्ष, सूर्पाक्षी, स्थूलाक्ष, हर्यक्ष, हिरण्याक्ष, द्यूत aksha,
अक्षकुमार पद्म ५.३६.३१( मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी को हनुमान व अक्षकुमार के युद्ध होने का उल्लेख ), वा.रामायण ५.४७( रावण - पुत्र, रथ का वर्णन, प्रमदावन में हनुमान से युद्ध व मृत्यु )
अक्षत गणेश २.१०.१०( महोत्कट द्वारा अक्षतों में छिपे पिङ्गल आदि ५ राक्षसों का वध ), नारद १.६७.६०( अक्षत को विष्णु को अर्पण का निषेध ), ब्रह्म १.११०.४९( यज्ञ वराह द्वारा पितृ तर्पण में अक्षतों द्वारा देवताओं की रक्षा करने का उल्लेख ; अक्षतों के अक्षत नाम के कारण का कथन ), भविष्य १.५७.१९( मातृकाओं हेतु अक्षत बलि का उल्लेख ), विष्णुधर्मोत्तर २.१२७.४३( शान्ति, पुष्टिकर होमद्रव्यों में से एक ), ३.२२१.२४( वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षतों द्वारा विष्णु की पूजा, अक्षतों द्वारा स्नान आदि के कारण तिथि का अक्षता नाम होना ), लक्ष्मीनारायण १.४५१.७५( पूजा में करणों का प्रतीक ) akshata
अक्षपाद लिङ्ग १.२४.१२३( २७वें द्वापर में सोमशर्मा नामक शिव अवतार के शिष्यों में से एक ), शिव ३.५.४२( २७वें द्वापर में सोमशर्मा - शिष्य ), स्कन्द १.२.५५.५( अहल्या - पति गौतम ऋषि का नाम ), ४.२.९७.६९( अक्षपाद मुनि द्वारा वरुणा तट पर सिद्धि प्राप्ति का उल्लेख ) akshapaada
अक्षमाला भागवत ८.१८.१६( वामन अवतार के उपनयन संस्कार में सरस्वती द्वारा अक्षमाला प्रदान करने का उल्लेख ), १२.१०.१२( शिव के स्वरूप के ध्यान में शिव द्वारा धारित आयुधाx में से एक ), विष्णुधर्मोत्तर ३.५६.६( अग्नि रूप के वर्णन के अन्तर्गत अग्नि द्वारा अक्षमाला धारण का उल्लेख ), ३.६६.८( जयन्ती देवी के अक्षमाला धारी रूप का उल्लेख ), ३.७१.९( भद्रकाली देवी के आयुधों में से एक ), ३.७७.३( धर्म की मूर्ति के स्वरूप वर्णन में धर्म के दक्षिण कर में अक्षमाला होने का उल्लेख ; अक्षमाला काल का प्रतीक ),स्कन्द १.१.११.१०( गणेश द्वारा दस भुजाओं में धारित आयुधों में से एक ), ३.२.१८.६२( मातङ्गी देवी द्वारा भुजाओं में धारित आयुधों में से एक ), ६.१४३.२९( रम्भा अप्सरा के दर्शन से जाबालि ऋषि के हाथ से अक्षमाला का छूट कर पृथिवी पर गिरने का उल्लेख ), ७.१.१२९( अन्त्यज कन्या, दुर्भिक्ष में वसिष्ठ ऋषि से विवाह, अरुन्धती बनना, अक्षमाला लिङ्ग की पूजा ) akshamaalaa, akshamala
अक्षय नारद १.११८.२३( अक्षय नवमी को अश्वत्थ मूल में तर्पण, कार्तिक शुक्ल तृतीया ), पद्म १.३६.४४( अक्षयराज नतप : प्रजा के रक्षणार्थ देवों के तेज से उत्पत्ति का वर्णन ), ब्रह्म २.९१.६७(यूप से अक्षय वट की उत्पत्ति का कथन), भविष्य ४.३०( अक्षय तृतीया व्रत के अन्तर्गत धर्म वणिक् का दृष्टान्त ), मत्स्य ६५( अक्षय तृतीया व्रत विधि, वैशाख शुक्ल तृतीया, विष्णु पूजा ), वायु १०५.४५/२.४३.४२( गया में अक्षय वट पर श्राद्ध की महिमा ), स्कन्द २.७.२३( वैशाख में अक्षय तृतीया, माहात्म्य ), ५.१.५९.२९( गया तीर्थ में अक्षय न्यग्रोध की स्थिति का उल्लेख ) akshaya
अक्षर देवीभागवत ७.३६.५( उपनिषद धनुष, उपासना शर व अक्षर लक्ष्य - लक्ष्यं तदेवाक्षरं सौम्य विद्धि ॥ ), ब्रह्म १.१३३.३६( कराल जनक - वसिष्ठ संवाद में २४-२५ तत्त्वों के माध्यम से क्षर - अक्षर जगत का निरूपण - कृत्स्नमेतावतस्तात क्षरते व्यक्तसंज्ञकः। अहन्यहनि भूतात्मा यच्चाक्षर इति स्मृतम्।।.. ), ब्रह्माण्ड २.३.७०.२३( सुयज्ञ - पिता ), भविष्य १.१४४.१५( सूर्य के क्षर व अक्षर रूपों का निरूपण - क्षराक्षरस्तु विज्ञेयो महासूर्यस्तथैव च । निष्कलः सकलश्चापि द्वौ च तस्य प्रकल्पितौ ।।.. ), लक्ष्मीनारायण १.७.३१( बदरिकाश्रम में अक्षर प्रदेश द्वारा नारायण सेवा हेतु नर रूप धारण का कथन ), १.११३( कृष्ण के अक्षर बदरी धाम में कृष्ण - पत्नियों का नर स्वरूप होना ), १.२६३.९( अक्षरा : पुरुषोत्तम की पत्नी, एकादशी व्रत प्रसंग ), २.८५.६१+ ( कृष्ण द्वारा पुलस्त्य - पत्नी ऐलविला से अक्षर क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन - स्थानानामुत्तमं स्थानं क्षेत्रं मेऽक्षरसंज्ञितम् ।। भूतले नैव संलग्नं चिदाकाशस्थितं हि तत् । ), २.९२.७४( अक्षर परम ब्रह्म का निरूपण - प्रद्युम्न! त्वयि यच्चास्ते पोषणैश्वर्यमित्यपि ।। अक्षरस्यैव तद् बोध्यं ब्रह्मणः कोटिभागजम् । ), २.१६८.१( अक्षर नामक कृष्ण - पार्षद द्वारा यज्ञ में आमन्त्रण पत्र का वितरण ), २.१७३.२०( अक्षर धाम का निरूपण - तस्माच्च परधामाद्वै तेजो यन्निर्गतं पुरः । तदक्षरं बृहद्धाम भण्यते सर्वबुद्धिषु ।। ), २.२५५.७५( क्षर - अक्षर जगत का निरूपण - किं तद्धामाऽक्षरं विद्वन् यस्मान्नावर्तते पुनः । किं च क्षरं ततो भिन्नं यस्मादावर्तते पुनः ।। ), २.२५६.२( जीव को क्षर से अक्षर प्राप्त न होने का कारण - मुहुः पतति चाऽज्ञात्मा मुहुर्मोदं च वाञ्छति ।। नाऽस्यैवं वर्तमानस्य क्षरान्मुक्तिः क्वचिद् भवेत् । ), ४.११५.८७( कृष्ण के अक्षर बदरी धाम की शोभा व माहात्म्य - अक्षरः पुरुषः सोऽपि निजालये परेश्वरम् । अनन्तमुक्तसहितः सेवते स्वामिनं हरिम् ।। ) द्र. एकाक्षर, वर्णमातृका, स्वर akshara