Agha -Aghamarshana -Aghasura अघ- अघमर्षण- अघासुर
अघ
टिप्पणी : अघ शब्द के लिए अहंकार पर विचार करना चाहिए। वेद में अकेला घ अक्षर घनता को प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त होता है। विभिन्न देवों से अघ का नाश करने की प्रार्थना के अतिरिक्त, वेद में पांचों दिशाओं से अघ के नाश होने की प्रार्थना की गई है(ऋग्वेद १०.४२.११, अथर्ववेद ५.१०.१)। अथर्ववेद १२.८.५ के अनुसार ब्रह्मगवी गौ द्वारा अघों के भक्षण करने पर दुःस्वप्न स्वयं पक जाते हैं।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अघमर्षण
टिप्पणी : ऋग्वेद १.९७.१ इत्यादि में आपः से अघ को शुद्ध करने की प्रार्थना की गई है। ऋग्वेद १०.१९० अघमर्षण सूक्त है।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.
अघासुर
टिप्पणी : ऋग्वेद १.११६.६ तथा अथर्ववेद १०.४.१० में अघाश्व का उल्लेख है। अथर्ववेद १०.४.१० में इन्द्र से अघ करने वाले अहि को मारने की प्रार्थना की गई है। वेदों में कईं स्थानों पर अघशंस आया है जो अघासुर का पिता शंख प्रतीत होता है। जैमिनीय ब्राह्मण २.२६६ में अहियों और अजगरों को अघला कहा गया है। कृष्णोपनिषद १५ में अघासुर को महाव्याधि कहा गया है।
प्रथम प्रकाशन : १९९४ ई.